।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि
चैत्र कृष्ण षष्ठी, वि.सं.२०७३, शनिवार
बिन्दुमें सिन्धु



(गत ब्लॉगसे आगेका)

भगवान् हमारे खास माता-पिता हैं । ऐसे माता-पिता आपको मिलेंगे नहीं । ऐसे माता-पिता दूसरे हैं ही नहीं, फिर मिलेंगे कैसे ? भगवान् कहते हैं‒पिताहमस्य जगतो माता धाता पितामहः’ (गीता ९ । १७) ‘इस सम्पूर्ण जगत्‌का पिता, धाता, माता और पितामह भी मैं ही हूँ ।’ आश्चर्यकी बात है कि आपके मनमें अपने माता-पितासे मिलनेकी नहीं आती ! माता-पितापर बालकका स्वतः-स्वाभाविक हक लगता है । जीवमात्र भगवान्‌का पुत्र है । कपूत-से-कपूत हो, तो भी वह पूत तो है ही ! चिन्ता माता-पिता करते हैं, बालक नहीं । बालक तो मौज करता है । इसलिये अपनेपर कोई भार मत लो । सब भार भगवान्‌पर सौंप दो । हर समय याद रखो कि हम भगवान्‌के हैं । आप दूसरेका चेला बन जाते हो तो क्या भगवान्‌का होना उससे कम है ? दूसरेका होनेमें धोखा भी हो सकता है; क्योंकि दूसरेका कुछ पता नहीं कि वह कैसा है । पर आप भगवान्‌के हो जाओ तो धोखा नहीं होगा । भगवान्‌के तो हम सदासे हैं, केवल उधर हमने ध्यान नहीं दिया ।
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प्रेमकी प्राप्तिके लिये मैंने बहुत-सी बातें सुनी हैं, पर सबसे श्रेष्ठ बात यह सुनी है कि अपनेपनसे प्रेम होता है । सब बालकोंको माँ इसलिये अच्छी लगती है कि वह मेरी माँ’ है । माँ कुरूप हो, उसके पास अच्छे कपड़े-गहने भी नहीं हों, तो भी वह अच्छी लगती है । ऐसे ही हमें अपने परमपिता परमात्मा प्यारे लगने चाहिये । यह हमारी गलती है कि हमारे पिता तो परमात्मा हैं, पर अच्छा लगता है संसार ! नित्य रहनेवाले अविनाशी परमात्मा अच्छे न लगें, पर नित्य बदलनेवाला नाशवान् संसार अच्छा लगे‒यह हमारी बहुत बड़ी गलती है । इसका सुधार करना चाहिये । हमारेसे सुधार न हो तो भगवान्‌से कहना चाहिये ।

संसार इसलिये अच्छा लगता है कि संसारकी चीजोंको हमने अपना मान लिया । संसारकी कोई भी चीज हमारे साथ नहीं रहती‒यह हम जानते हैं, पर इस जानकारीका हम आदर नहीं करते । शरीर संसारका अंश होनेके कारण संसारमें स्थित है, पर हम परमात्माके अंश होते हुए भी संसारमें स्थित हो जाते हैं ! यह हमारी बड़ी गलती है । इसलिये इसको सुधारनेकी जिम्मेवारी हमारेपर आ गयी । अगर हम परमात्मासे विमुख नहीं होते तो उनके सम्मुख होनेकी जिम्मेवारी हमारेपर नहीं आती और हम मौजसे रहते !


हम भगवान्‌के अंश हैं, भगवान् हमारे हैं‒यह बात सत्संगके द्वारा मालूम होती है । भगवान् हमारे हैं‒यह समझमें नहीं आये तो भी स्वीकार कर लें । भगवान् पहले समझमें नहीं आते; क्योंकि हमारी समझ छोटी है, भगवान् बहुत बड़े हैं; इसलिये वे हमारी समझके अन्तर्गत नहीं आते । परन्तु संसार कितना ही बड़ा हो, वह हमारे सामने तुच्छ है । इसलिये भगवान् माननेका विषय है, संसार जाननेका विषय है । अपने माता-पिताको हम मान ही सकते हैं, जान नहीं सकते । भगवान् हमारे हैं‒इसको मान लें, और संसार हमारा नहीं है‒इसको जान लें । यदि संसारको जान लें तो भगवान्‌को माननेकी शक्ति आ जायगी, और भगवान्‌को मान लें तो संसारको जाननेकी शक्ति आ जायगी ।

    (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒ ‘बिन्दुमें सिन्धु’ पुस्तकसे