।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि
चैत्र कृष्ण सप्तमी, वि.सं.२०७३, सोमवार
बिन्दुमें सिन्धु



(गत ब्लॉगसे आगेका)

जैसे बालक माँको मानता है, ऐसे आप भगवान्‌को मान लो । इससे आपके जीवनमें फर्क पड़ेगा, भीतरसे एक बड़ा सन्तोष होगा, शान्ति मिलेगी । आप रात-दिन नामजप करो और भगवान्‌से बार-बार कहो कि हे नाथ ! मैं आपको भूलूँ नहीं’ पाँच मिनटमें, सात मिनटमें, दस मिनटमें, आधे घण्टेमें, एक घण्टेमें कहते रहो कि हे नाथ ! मैं आपको भूलूँ नहीं’ । एक घण्टेसे अधिक समय न निकले । निहाल हो जाओगे ! इसमें लाभ-ही-लाभ है, हानि है ही नहीं । यह सभीके लिये बहुत बढ़िया चीज है । आपका लोक और परलोक सब सुधर जायगा । भगवान् सुग्रीवसे कहते हैं‒

सखा सोच त्यागहु  बल  मोरें ।
सब बिधि घटब काज मैं तोरें ॥
                               (मानस, किष्किन्धा ७ । ५)

इस तरह भगवान् सब काम करनेको तैयार हैं । आप विचार करके देखो, भगवान्‌ने मनुष्यजन्म दिया है, सत्संग दिया है, सत्संगमें अच्छी-अच्छी बातें दी हैं तो यह हमें उनकी कृपासे मिला है, अपने उद्योगसे नहीं मिला है । इतना काम जिसने किया है, वही आगे भी काम करेगा ! हमारे द्वारा प्रार्थना किये बिना, माँगे बिना जब भगवान्‌ने अपने-आप इतना दिया है, तो फिर हे नाथ ! मैं आपको भूलूँ नहीं’ ऐसी प्रार्थना करनेपर क्या वे हमें छोड़ेंगे ? अपने-आप कृपा करेंगे ! जरूर कृपा करेंगे !
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हरेक भाई-बहन विचार करे कि यह मकान, यह कुटुम्ब, ये भोग, ये रुपये हमारे साथ कितने दिन रहनेवाले हैं ? और भगवान्‌का आश्रय ले लें तो वह कितने दिन रहनेवाला है ? भगवान् तो सदाके लिये हमारे साथ रहनेवाले हैं । महान् लाभके लिये थोड़ा लाभ छोड़ना, बड़ी चीजके लिये छोटी चीज छोड़ना सुगम होता है । एक तरफ हजार रुपये मिलते हों और एक तरफ एक रुपया मिलता हो तो क्या एक रुपया छोड़नेमें जोर आता है ? आप भगवान्‌का आश्रय ले लो तो सदाके लिये मौज रहेगी ! ये सांसारिक वस्तुएँ तो थोड़े दिनोंके लिये हैं और एक दिन याद भी नहीं रहेंगी । अगर याद रहती हों तो बताओ इस जन्मसे पहले आप कहाँ थे ? आपका कुटुम्ब, रुपये, मकान आदि क्या थे ? नहीं बता सकते तो यही दशा इस कुटुम्ब, रुपये, मकान आदिकी होगी ! आप खुद सोचो, एक सहारा थोड़े दिन रहनेवाला है और एक सहारा सदा रहनेवाला है, दोनोमें कौन-सा बढ़िया है ? एक रुपया और हजार रुपये तो एक जातिके (नाशवान्) हैं, पर संसार और भगवान् एक जातिके नहीं हैं । संसार जड़ तथा नाशवान् है, पर भगवान् चेतन तथा अविनाशी हैं । संसारका सहारा एकतरफा है । आप उसका सहारा लेते हो, पर वह आपको सहारा नहीं देता । परन्तु भगवान् सबको सहारा देते हैं‒

सर्वधर्मान्परित्यज्य    मामेकं     शरणं    व्रज ।
अहं त्वा सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः
                                                  (गीता १८ । ६६)

सम्पूर्ण धर्मोंका आश्रय छोड़कर तू केवल मेरी शरणमें आ जा । मैं तुझे सम्पूर्ण पापोंसे मुक्त कर दूँगा, चिन्ता मत कर ।’

    (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒ ‘बिन्दुमें सिन्धु’ पुस्तकसे