।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि
चैत्र कृष्ण एकादशी, वि.सं.२०७३, शुक्रवार
पापमोचनी एकादशी-व्रत (सबका)
गीतामें सनातनधर्म



(गत ब्लॉगसे आगेका)

सनातनधर्ममें जितने साधन कहे गये हैं, नियम कहे गये हैं, वे भी सभी सनातन है, अनादिकालसे चलते आ रहे है । जैसे भगवान्‌ने कर्मयोगको अव्यय कहा है‒‘इमं विवस्वते योगं प्रोक्तवानहमव्ययम्’ (४ । १) तथा शुक्ल और कृष्ण गतियों-(मार्गों-) को भी सनातन कहा है‒ ‘शुक्लकृष्णे गती ह्येते जगतः शाश्वते मते’ (८ । २६) । गीताने परमात्माको भी सनातन कहा है‒‘सनातनस्त्वम्’ (११ । १८), जीवात्माको भी सनातन कहा है‒‘जीवभूतः सनातनः’ (१५ । ७), धर्मको भी सनातन कहा है‒ ‘शाश्वतस्य च धर्मस्य’ (१४ । २७), परमात्माके पदको भी सनातन कहा है‒‘शाश्वतं पदमव्ययम्’ (१८ । ५६) । तात्पर्य है कि सनातनधर्ममें सभी चीजें सनातन हैं, अनादिकालसे हैं । सभी धर्मोंमें और उनके नियमोंमें एकता कभी नहीं हो सकती, उनमें ऊपरसे भिन्नता रहेगी ही । परंतु उनके द्वारा प्राप्त किये जानेवाले तत्त्वमें कभी भिन्नता नहीं हो सकती ।

पहुँचे   पहुँचे  एक   मत,  अनपहुँचे   मत  और ।
संतदास   घड़ी  अरठकी,   ढुरे  एक   ही   ठौर ॥
जब लगि काची खीचड़ी, तब लगि खदबद होय ।
संतदास   सीज्यां  पछे,  खदबद  करै  न   कोय ॥

जबतक साधन करनेवालोंका संसारके साथ सम्बन्ध रहता है, तबतक मतभेद, वाद-विवाद रहता है । परंतु तत्त्वकी प्राप्ति होनेपर तत्त्वभेद नहीं रहता ।

जो मतवादी केवल अपनी टोली बनानेमें ही लगे रहते है, उनमें तत्त्वकी सच्ची जिज्ञासा नहीं होती और टोली बनानेसे उनकी कोई महत्ता बढ़ती भी नहीं । टोली बनानेवाले व्यक्ति सभी धर्मोंमें हैं । वे धर्मके नामपर अपने व्यक्तित्वकी ही पूजा करते और करवाते हैं । परंतु जिनमें तत्त्वकी सच्ची जिज्ञासा होती है, वे टोली नहीं बनाते । वे तो तत्त्वकी खोज करते है । गीताने भी टोलियोंको मुख्यता नहीं दी है, प्रत्युत जीवके कल्याणको मुख्यता दी है । गीताके अनुसार किसी भी धर्मपर विश्वास करनेवाला व्यक्ति निष्कामभावपूर्वक अपने कर्तव्यका पालन करके अपना कल्याण कर सकता है । गीता सनातनधर्मको आदर देते हुए भी किसी धर्मका आग्रह नहीं रखती और किसी धर्मका विरोध भी नही करती । अतः गीता सार्वभौम ग्रन्थ है ।

नारायण !     नारायण !!     नारायण !!!


‒ ‘गीता-दर्पण’ पुस्तकसे