(गत ब्लॉगसे आगेका)
आपके घरमें जो पढ़नेवाले, स्कूल-कॉलेजमें जानेवाले लड़के-लड़कियाँ
हों, उनसे गीताप्रेसकी पुस्तकें सुनो । आजकलके
बालक प्रायः खुद ऐसी पुस्तकें नहीं पढ़ते । अतः आप उनसे कहो कि बेटा ! मेरेको अमुक पुस्तक
या ग्रन्थ सुनाओ । आप उनसे सुनोगे तो उनके भीतर अच्छे संस्कार बैठ जायेंगे, जिससे उनके स्वभावका सुधार होगा । बालकोंको भक्तोंके चरित्र पढ़नेको दो; क्योंकि कहानी पढ़नेसे बालक बहुत राजी होते हैं । बालकोंके लिये गीताप्रेससे ‘वीर
बालक’, ‘वीर बालिकाएँ’, ‘गुरु और माता-पिताके भक्त
बालक’, ‘सच्चे और ईमानदार बालक’ आदि कई पुस्तकें छपी हैं । ‘कल्याण’
का ‘बालक-अंक’ भी छपा है । उन्हें बालकोंको पढ़नेके लिये दो ।
भक्तोंके चरित्र पढनेसे बड़ा विलक्षण लाभ होता है
। गीताप्रेससे ऐसी बहुत-सी पुस्तकें
प्रकाशित हुई हैं; जैसे‒‘भक्त बालक’, ‘भक्त नारी’, ‘भक्त महिलारत्न’, ‘भक्त सप्तरत्न’, ‘भक्त पंचरत्न’ आदि । इन पुस्तकोंको पढ़नेसे हृदय गद्गद हो जाता है, आँसू आने लगते हैं, एक मस्ती आ जाती है ! इस प्रकार गीताप्रेससे मनुष्यमात्रका कल्याण
करनेवाली अनेक पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं । उनको स्वयं पढ़ना चाहिये तथा
उत्साहपूर्वक उनका प्रचार करना चाहिये । इससे संसारका बड़ा भारी उपकार होगा, संसारमें शान्तिका विस्तार होगा ।
नारायण ! नारायण
!! नारायण !!!
‒‘सन्त-समागम’ पुस्तकसे
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