।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि
फाल्गुन शुक्ल एकादशी, वि.सं.२०७३, बुधवार
आमलकी एकादशी-व्रत
गुरु और शिष्य


(गत ब्लॉगसे आगेका)

शिष्य दुर्लभ है, गुरु नहीं । सेवक दुर्लभ है, सेव्य नहीं । जिज्ञासु दुर्लभ है, ज्ञान नहीं । भक्त दुर्लभ है, भगवान् नहीं ।
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जो हमारेसे धन-सम्पत्ति, सुख-सुविधा, मान-आदर, पूजा-सत्कार आदि कुछ भी चाहता है, वह हमारा कल्याण नहीं कर सकता ।
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जगत्‌, जीव और परमात्मा‒इन तीनोंको न जानना अन्धकार है । जो इस अन्धकारको मिटा दे, वह गुरु है ।
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गुरु शिष्यके लिये होता है, शिष्य गुरुके लिये नहीं होता । राजा प्रजाके लिये होता है, प्रजा राजाके लिये नहीं होती ।
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भगवान् जगद्‌गुरु होते हुए भी मनुष्यको कभी चेला नहीं बनाते, प्रत्युत सखा ही बनाते हैं ।
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गुरु शिष्यको कोई नया ज्ञान नहीं देता, प्रत्युत उसके भीतर पहलेसे विद्यमान जो ज्ञान है, उसको ही जाग्रत् करता है ।
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सच्चा गुरु दूसरेको गुरु ही बनाता है, चेला नहीं बनाता । जो चेला बनाना चाहता है, वह चेलादास होता है ।
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हमारा वास्तविक गुरु हमारे भीतर है, वह है‒विवेक । यह विवेक भगवान्‌ने दिया है । भगवान्‌ने अपने कल्याणके लिये मनुष्यशरीर दे दिया, सब साधन-सामग्री दे दी तो क्या गुरुको बाकी छोड़ दिया !

  (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘अमृतबिन्दु’ पुस्तकसे