।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि
आजकी शुभ तिथि
चैत्र पूर्णिमा, वि.सं.२०७४, मंगलवार
पूर्णिमा, वैशाख-स्नान प्रारम्भ
श्रीहनुमज्जयन्ति
आवश्यक चेतावनी



‒ध्यानपूर्वक पढ़ें तथा विचार करें

१९. संतति-निरोधके कृत्रिम उपायोंके प्रचार-प्रसारसे समाजमें प्रत्यक्षरूपसे व्यभिचार, भोगपरायणता आदि दोषोंकी वृद्धि हो रही है, कन्याएँ और विधवाएँ भी गर्भवती हो रही हैं, लोगोंमें चरित्र, शील, संयम, लज्जा, ब्रह्मचर्य आदि गुणोंका ह्रास हो रहा है, जिससे देशका सब दृष्टियोंसे घोर पतन हो रहा है ।

२०. संतति-निरोधके द्वारा नारीके मातृरूपको नष्ट करके उसको केवल भोग्या बनाया जा रहा है । भोग्या स्त्री तो वेश्या होती है । यह नारी-जातिका कितना महान् अपमान है !

२१. संतति-निरोधके मूलमें केवल सुखभोगकी इच्छा विद्यमान है । अपनी सन्तान इसलिये नहीं सुहाती कि वह हमारे सुखभोगमें बाधक है, फिर अपने माँ-बाप, भाई- बहन कैसे सुहायेंगे ?

२२. अगर सन्तानकी इच्छा न हो तो संयम रखना चाहिये । संयम रखनेसे स्वास्थ्य ठीक रहता है, उम्र बढ़ती है, शारीरिक-पारमार्थिक सब तरहकी उन्नति होती है । हल तो चलाये, पर बीज डाले ही नहीं‒यह कैसी बुद्धिमानी है ?

२३. संतति-निरोधकी भावनासे मनुष्य इतना क्रूर, निर्दय, हिंसक हो जाता है कि गर्भमें स्थित अपनी सन्तानकी भी हत्या (भ्रूणहत्या या गर्भपात) करनेमें हिचकता नहीं, जो कि ब्रह्महत्यासे भी दुगुना पाप है !

२४. गर्भपातके समान दूसरा कोई भयंकर पाप है ही नहीं । संसारका कोई भी श्रेष्ठ धर्म इस महान् पापको समर्थन नहीं देता और न दे ही सकता है । कारण कि यह काम मनुष्यताके विरुद्ध है । क्रूर और हिंसक पशु भी ऐसा काम नहीं करते ।

२५. गर्भमें स्थित शिशु अपने बचावके लिये कोई उपाय नहीं कर सकता, प्रतीकार भी नहीं कर सकता, अपनी रक्षाके लिये पुकार भी नहीं सकता, चिल्ला भी नहीं सकता, उसका कोई अपराध, कसूर भी नहीं है । ऐसी अवस्थामें उस निर्बल, असहाय, निरपराध, निर्दोष, मूक शिशुकी हत्या कर देना कितना महान् पाप है !

२६. एक कहावत है कि अपने द्वारा लगाया हुआ विषवृक्ष भी काटा नहीं जाता । जिस गर्भको स्त्री-पुरुष मिलकर पैदा करते हैं, उसकी अपने ही द्वारा हत्या कर देना कितनी कृतघ्नता है ! कसूर (असंयम) तो खुद करते हैं, पर हत्या बेकसूर गर्भकी करते हैं, यह कितना बड़ा अन्याय है !

२७. गर्भमें आया जीव जन्म लेकर न जाने कितने अच्छे लौकिक तथा पारमार्थिक कार्य करता, समाज तथा देशकी सेवा करता, अनेक लोगोंकी सहायता करता, सन्त-महात्मा बनकर अनेक लोगोंको सन्मार्गमें लगाता, अनेक तरहके आविष्कार करता आदि-आदि । परन्तु जन्म लेनेसे पहले ही उसकी हत्या कर देना कितना महान् पाप है, अपराध है !

    (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒ ‘आवश्यक चेतावनी’ पुस्तकसे