।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि
चैत्र शुक्ल षष्ठी, वि.सं.२०७४, रविवार
धर्मकी महत्ता और आवश्यकता



(गत ब्लॉगसे आगेका)

यदि सिद्धि-असिद्धिमें सम होकर अपने धर्मका पालन किया जाय तो मनुष्य पाप और पुण्य दोनोंसे ऊँचा उठकर जन्म-मरणसे मुक्ति पा लेता है । इसलिये भगवान् कहते हैं‒

सुखदुःखे समे कृत्वा लाभालाभौ जयाजयौ ।
ततो युद्धाय युज्यस्व  नैवं पापमवाप्स्यसि ॥
                                              (गीता २ । ३८)

‘जय-पराजय, लाभ-हानि और सुख-दुःखको समान करके फिर युद्धमें लग जा । इस प्रकार युद्ध करनेसे (अपने धर्मका पालन करनेसे) तू पापको प्राप्त नहीं होगा ।’

योगस्थः कुरु  कर्माणि   सङ्गं  त्यक्त्वा  धनञ्जय ।
सिद्ध्यसिद्ध्योः समो भूत्वा समत्वं योग उच्यते ॥
                                                     (गीता २ । ४८)

‘हे धनंजय ! तू आसक्तिका त्याग करके सिद्धि-असिद्धिमें सम होकर योगमें स्थित हुआ कर्मोंको कर; क्योंकि समत्व ही योग कहलाता है ।’

वर्ण, आश्रम आदिके अनुसार सभी मनुष्योंका अपना-अपना धर्म (कर्तव्य) कल्याणकारक है । परन्तु दूसरे वर्ण, आश्रम आदिका धर्म देखनेसे उसकी अपेक्षा अपना धर्म कम गुणोंवाला दीख सकता है । जैसे, ब्राह्मणके धर्म (शम, दम, तप, क्षमा आदि)-की अपेक्षा क्षत्रियके धर्म (युद्ध आदि)-में अहिंसा आदि गुणोंकी कमी दीख सकती है । ऐसा दीखनेपर वास्तवमें अपना धर्म ही कल्याण करनेवाला है । इसलिये भगवान् कहते हैं‒

श्रेयान्स्वधर्मो विगुणः परधर्मात्स्वनुष्ठितात् ।
स्वधर्मे  निधनं  श्रेयः   परधर्मो   भयावहः ॥
                                                (गीता ३ । ३५)

‘अच्छी तरह आचरणमें लाये हुए दूसरेके धर्मसे गुणोंकी कमीवाला अपना धर्म श्रेष्ठ है । अपने धर्ममें तो मरना भी कल्याणकारक है और दूसरेका धर्म भयको देनेवाला है ।’

जो धर्मकी रक्षा करता है, उसकी रक्षा धर्म करता है‒‘धर्मो रक्षति रक्षितः’ (मनु ८ । १५) । अतः जो धर्मका पालन करता है, उसकी रक्षा अर्थात् कल्याणका भार धर्मपर और धर्मके उपदेष्टा भगवान्, वेदों, शास्त्रों, ऋषियों, मुनियों आदिपर होता है तथा उन्हींकी शक्तिसे उसका कल्याण होता है । जैसे, शास्त्रोंमें आया है कि पातिव्रतधर्मका पालन करनेसे स्त्रीका कल्याण हो जाता है तो वहाँ पातिव्रतधर्मकी आज्ञा देनेवाले भगवान्, वेद, शास्त्र आदिकी शक्तिसे ही कल्याण होता है, पतिकी शक्तिसे नहीं । पति चाहे कैसा ही हो, सदाचारी हो अथवा दुराचारी हो, तो भी पातिव्रतधर्मके कारण स्त्रीका कल्याण हो जाता है ।

    (शेष आगेके ब्लॉगमें)

‒ ‘सन्त-समागम’ पुस्तकसे