संसारका सहारा इस एक जन्ममें भी सदा साथ नहीं रहेगा,
पर भगवान्का सहारा सदा साथ रहेगा,
चाहे किसी योनिमें जाओ,
किसी लोकमें जाओ । आप खुद सोचते नहीं,
दूसरेकी बात मानते नहीं,
तीसरा कोई उपाय है नहीं ! इससे नुकसान किसका है ?
इसलिये अनन्यभावसे भगवान्के चरणोंके शरण हो जाओ,
सदाके लिये मौज हो जायगी ! दुःख सदाके लिये और सर्वथा मिट जायगा
!
श्रोता‒कोई
व्यक्ति भक्तिरसमें डूबता है और दुनियासे उदास होता है तथा मौन रहना चाहता है, एकान्तमें
रहना चाहता है, तो लोग कहते हैं
कि यह पागल हो गया है !
स्वामीजी‒बहुत अच्छी बात है ! लोग पागल कहें तो बहुत ही आनन्दकी बात है ! लोग अच्छा समझें
तो उसमें नुकसान है ! लोग पागल समझें तो उसमें नुकसान नहीं है,
फायदा-ही-फायदा है ! कोई आदमी पासमें नहीं आयेगा,
भजनमें बाधा नहीं देगा । इस मार्गमें
तो अकेले रहनेमें बहुत मौज है ।
श्रोता‒अपने
घरका ही आदमी हमारी उन्नतिमें बाधक बनता है तो क्या करना चाहिये ?
स्वामीजी‒बाधा माननी नहीं चाहिये । पक्का रहना चाहिये । वे आपपर कृपा कर रहे हैं,
आपका मोह मिटा रहे हैं ! फिर भी आप मोह नहीं छोड़ते !
श्रोता‒मोक्ष
मृत्युके समय ही प्राप्त होता है या पहले भी प्राप्त होता है ?
स्वामीजी‒मोक्ष अभी-अभी प्राप्त हो सकता है ! मोक्ष क्या है ?
सब चाहना छोड़ी, मोक्ष
हुआ ! संसारकी चाहना ही मोक्षमें बाधक है ।
☀☀☀☀☀
श्रोता‒परमात्माकी
प्राप्तिका उपाय क्या है ?
स्वामीजी‒उपाय है‒असली भीतरकी लगन । जैसे प्यास लगे तो जल याद आता है,
भूख लगे तो अन्न याद आता है,
ऐसे भगवान्की याद आये । आप पापी,
दुराचारी कैसे ही हों,
एक भगवान्की लगन लग जाय तो सब ठीक हो जायगा । एक भगवान्के सिवाय कोई चाहना न हो तो भगवान् मिल जायँगे ।
कारण कि मनुष्यशरीरका प्रयोजन ही भगवान्को प्राप्त करना है । सब काम करते हुए भी भीतर
लगन भगवान्की ही रहे ।
हाथ काम मुख राम है, हिरदै साची प्रीत ।
दरिया गृहस्थी साध की, याही उत्तम
रीत ॥
(शेष आगेके
ब्लॉगमें)
‒ ‘बिन्दुमें सिन्धु’ पुस्तकसे |