।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि
वैशाख कृष्ण द्वादशी, वि.सं.२०७३, रविवार
बिन्दुमें सिन्धु



संसारका सहारा इस एक जन्ममें भी सदा साथ नहीं रहेगा, पर भगवान्‌का सहारा सदा साथ रहेगा, चाहे किसी योनिमें जाओ, किसी लोकमें जाओ । आप खुद सोचते नहीं, दूसरेकी बात मानते नहीं, तीसरा कोई उपाय है नहीं ! इससे नुकसान किसका है ? इसलिये अनन्यभावसे भगवान्‌के चरणोंके शरण हो जाओ, सदाके लिये मौज हो जायगी ! दुःख सदाके लिये और सर्वथा मिट जायगा !

श्रोता‒कोई व्यक्ति भक्तिरसमें डूबता है और दुनियासे उदास होता है तथा मौन रहना चाहता है, एकान्तमें रहना चाहता है, तो लोग कहते हैं कि यह पागल हो गया है !

स्वामीजी‒बहुत अच्छी बात है ! लोग पागल कहें तो बहुत ही आनन्दकी बात है ! लोग अच्छा समझें तो उसमें नुकसान है ! लोग पागल समझें तो उसमें नुकसान नहीं है, फायदा-ही-फायदा है ! कोई आदमी पासमें नहीं आयेगा, भजनमें बाधा नहीं देगा । इस मार्गमें तो अकेले रहनेमें बहुत मौज है ।

श्रोता‒अपने घरका ही आदमी हमारी उन्नतिमें बाधक बनता है तो क्या करना चाहिये ?

स्वामीजी‒बाधा माननी नहीं चाहिये । पक्का रहना चाहिये । वे आपपर कृपा कर रहे हैं, आपका मोह मिटा रहे हैं ! फिर भी आप मोह नहीं छोड़ते !

श्रोता‒मोक्ष मृत्युके समय ही प्राप्त होता है या पहले भी प्राप्त होता है ?

स्वामीजी‒मोक्ष अभी-अभी प्राप्त हो सकता है ! मोक्ष क्या है ? सब चाहना छोड़ी, मोक्ष हुआ ! संसारकी चाहना ही मोक्षमें बाधक है ।

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श्रोता‒परमात्माकी प्राप्तिका उपाय क्या है ?

स्वामीजी‒उपाय है‒असली भीतरकी लगन । जैसे प्यास लगे तो जल याद आता है, भूख लगे तो अन्न याद आता है, ऐसे भगवान्‌की याद आये । आप पापी, दुराचारी कैसे ही हों, एक भगवान्‌की लगन लग जाय तो सब ठीक हो जायगा । एक भगवान्‌के सिवाय कोई चाहना न हो तो भगवान् मिल जायँगे । कारण कि मनुष्यशरीरका प्रयोजन ही भगवान्‌को प्राप्त करना है । सब काम करते हुए भी भीतर लगन भगवान्‌की ही रहे ।

हाथ काम मुख राम है,   हिरदै साची प्रीत ।
दरिया गृहस्थी साध की, याही उत्तम रीत ॥

    (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒ ‘बिन्दुमें सिन्धु’ पुस्तकसे