।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि
वैशाख कृष्ण त्रयोदशी, वि.सं.२०७३, सोमवार
बिन्दुमें सिन्धु



(गत ब्लॉगसे आगेका)

हरदम भगवान्‌से प्रार्थना करते रहो कि हे नाथ ! मैं आपको भूलूँ नहीं’ । भगवान्‌के दर्शनके बिना हरदम बेचैनी रहे, कहीं भी मन नहीं लगे, कोई बात सुहाये नहीं । भगवान्‌के सिवाय और कोई बात याद ही नहीं आये । वास्तवमें भगवान् हमारे भीतर हैं । उनको बार-बार हे मेरे नाथ ! हे मेरे प्रभो पुकारो और समझो कि भगवान् मेरे भीतर हैं; उनसे मैं कह रहा हूँ और वे सुन रहे हैं, मुझे देख रहे हैं । एक जन्मकी माँ भी पुकारनेसे आ जाती है, फिर भगवान् तो सदाकी माँ हैं ! वे जरूर आयेंगे !

भगवान्‌को प्रकट करनेके लिये, उनका प्रेम प्राप्त करनेके लिये भगवान्‌को अपना मानना बहुत जरूरी है । जैसे बालक कहता है कि माँ मेरी है, ऐसे भगवान् मेरे हैं । भगवान्‌में मेरापन प्रेमका मन्त्र है, जिससे भगवान् प्रकट हो जाते हैं । आपके भीतर यह भाव आना चाहिये कि मेरी माँ मेरेको गोदमें क्यों नहीं लेती ?

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श्रोता‒भगवान् सभीके हृदयमें विराजमान हैं, फिर भी मनुष्यके द्वारा गलत काम क्यों होता है ?

स्वामीजी‒क्या आपने भगवान्‌से प्रार्थना की है कि महाराज, मेरे द्वारा गलत काम न हो ? भगवान्‌का जबर्दस्ती करनेका स्वभाव बिल्कुल नहीं है । अच्छे सन्त-महात्मा भी बात कह देते हैं, पर जबर्दस्ती नहीं करते । हरेकको बात कहनेमें भी वे संकोच करते हैं । विशेष कृपा होती है, तब कहते हैं । भगवान्‌ने अठारह अक्षौहिणी सेनामें केवल अर्जुनको ही उपदेश दिया, दूसरोंको क्यों नहीं दिया ? चोर-डाकू जबर्दस्ती करते हैं । आपके घर साधु आयेगा तो भिक्षाके लिये आवाज दे देगा, आप नहीं बोलो तो चल देगा । परन्तु डाकूको नहीं बोलो तो क्या वह चल देगा ?


भगवान् सम्पूर्ण प्राणियोंके हृदयमें रहते हैं । उनके बिना कोई प्राणी-पदार्थ है ही नहीं । वे स्वतः-स्वाभाविक सबमें परिपूर्ण हैं । पर वे विधि-निषेध करनेके लिये सबमें परिपूर्ण नहीं हैं । जैसे गायके भीतर रहनेवाला घी गायके काम नहीं आता, ऐसे ही भगवान् सबमें व्यापक रहते हुए भी काम नहीं आते । प्रार्थना करनेपर वे काम आते हैं । अगर भगवान् विधि-निषेध करें तो सब शास्त्र निरर्थक हो जायँगे, गुरु निरर्थक हो जायगा, शिक्षा निरर्थक हो जायगी !

    (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒ ‘बिन्दुमें सिन्धु’ पुस्तकसे