।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि
वैशाख अमावस्या, वि.सं.२०७३, बुधवार
अमावस्या
बिन्दुमें सिन्धु



(गत ब्लॉगसे आगेका)

जो गायको मारते हैं, मछलियोंको मारते हैं, अण्डा खाते हैं, मांस खाते हैं, ऐसे लोग सत्संगमें नहीं आते । सत्संग उनको सुहाता नहीं । सत्संग उनके विरुद्ध पड़ता है । अगर वे सत्संगमें आयेंगे तो उनको नींद आ जायगी ! वे सुनेंगे ही नहीं, सुन सकते ही नहीं ! एक मेरे परिचित सज्जन थे । वे मांस खाते थे । उन्होंने मेरेसे कहा कि आप हमारे यहाँ आते नहीं ! मैंने कहा कि तुम्हारे हृदयमें मरे हुए मुर्देका जितना आदर है, उतना आदर हमारा नहीं है, फिर हम क्यों आयें ? मुर्देको हाथ भी लग जाय तो कपड़ोंसहित स्नान करना चाहिये । तुम्हारी तो थालीमें मसान (श्मशान) है ! जब उनका अन्त समय आया, तब (मरते समय) उनको भगवान्‌का नाम सुनाया तो उनको गुस्सा आ गया, वे चिढ़ गये ! तात्पर्य है कि जो पाप करते हैं, उनको भगवान्‌का नाम सुहाता नहीं, वे सत्संग करते नहीं । उनका अन्तःकरण मैला हो जाता है । मैले अन्तःकरणवालेको मैली बात ही अच्छी लगती है । बांकुड़ाकी बात है । एक बंगाली नदीके किनारे बैठा मछलियाँ पकड़ रहा था । बद्रीदासजीने उससे पूछा कि इससे कितना पैसा पैदा होता है ? उसने लगभग चार आना बताया । बद्रीदासजीने उससे कहा कि उतना पैसा हम तुझे दे देंगे, तुम हमारे यहाँ बैठकर राम-राम करो । वह राम-राम नहीं कर सका और होरे-होरे’ (हरि-हरि) करने लगा । वह दो दिन आया, तीसरे दिन आया ही नहीं ! जाकर देखा तो वह पुनः मछलियाँ पकड़ रहा था ! उससे पूछा कि तू नामजप करने आया नहीं ? वह बोला कि ना बाबा, यह काम हमसे नहीं होता !

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गायको हम माता मानते हैं । अतः उसका दूध पीनेमें दोष नहीं है । गायका दूध पीयेंगे, तभी गायकी रक्षा होगी ! परन्तु उसके बछड़ा-बछड़ीको दूध न पिलाकर खुद दूध पी लेना ठीक नहीं है । यह अन्याय है ! अगर बछड़ीको गायका पर्याप्त दूध पिलाया जाय तो गाय बननेपर उसका दूध भी ज्यादा होगा । बछड़ीको कम दूध दोगे तो आगे उसका दूध ज्यादा नहीं होगा । अतः बछड़ा-बछड़ीको दूध पिलाकर ही खुद दूध पीना चाहिये । दूसरी बात, दूध दुहनेसे गायका दूध बढ़ता है । यदि दूध न दुहें, केवल बछड़ा-बछड़ी ही दूध पियें तो गायका दूध स्वतः ही कम होगा । यदि गायको ठीक खिलाया जाय और तीन समय दूध दुहा जाय तो दूध ज्यादा होगा ।

    (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒ ‘बिन्दुमें सिन्धु’ पुस्तकसे