।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि
वैशाख शुक्ल तृतीया, वि.सं.२०७३, शनिवार
अक्षयतृतीया
बिन्दुमें सिन्धु



(गत ब्लॉगसे आगेका)

अपनी गलतियोंको सहनेसे परमात्मप्राप्तिमें बाधा लगती है । संसारमें विघ्न देनेवाले तो बहुत मिल जायँगे, पर साथ देनेवाला कोई नहीं मिलेगा । इसलिये हरदम सावधान रहनेकी बहुत आवश्यकता है । जिस चीजसे परमात्माकी प्राप्तिमें बाधा लगती है, विलम्ब होता है, उसको सहना नहीं चाहिये । उसका बिल्कुल, बिना विलम्ब किये त्याग कर देना चाहिये । उसमें चाहे लाखों, करोड़ों रुपये लगते हों, परवाह मत करो । परमात्माकी प्राप्ति रुपयोंसे आँकी नहीं जा सकती । परमात्मप्राप्तिके समान संसारमें कुछ है ही नहीं ।

जो भोग और संग्रहमें लगे हुए हैं, वे परमात्माकी प्राप्ति नहीं कर सकते । अतः भोग तथा संग्रहके विषयमें कोई बात करना चाहे तो उससे हाथ जोड़ लो । उसकी बात मत सुनो । उसमें अपना समय बर्बाद मत करो । अपने सच्चे हृदयसे भगवान्‌में लगे रहो । अन्तमें सब काम ठीक हो जायगा । आपको दीखता है कि भगवान् सुनते नहीं, पर भगवान् आपकी एक-एक बात सुनते हैं । उनको हे नाथ ! हे मेरे नाथ !’ कहकर पुकारो । वे आपके हृदयकी पुकारको सुनते हैं । उनके सिवाय आपकी पुकारको सुननेवाला कोई नहीं है । आजतक जिसने सँभाला है, वही आगे भी संभालेगा । इसलिये निश्चिन्त रहो ।

ऐसे कलियुगके समयमें भगवान्‌की तरफ वृत्ति हो जाय, उनका चिन्तन हो जाय, उनको प्राप्त करनेकी मनमें आ जाय तो समझो कि भगवान्‌की कृपामें भी विशेष कृपा हो गयी !

☀☀☀☀☀

श्रोता‒पहले तो भगवान्‌का भजन करनेका समय मिल जाता था, पर आजकल समय नहीं मिलता !

स्वामीजी‒पहले समय मिलता था, अब नहीं मिलता, ऐसी बात बिकुल नहीं है । वास्तवमें भजन करनेकी इच्छा नहीं है, नीयत नहीं है । वास्तवमें भगवत्प्राप्तिके लिये नया काम कुछ करना ही नहीं है ! भगवत्प्राप्तिके लिये समयकी जरूरत नहीं है । हम भगवान्‌के हैं और भगवान्‌का काम करते हैं‒यह मान लो । मैं पंचामृत’ बताया करता हूँ‒

१.   हम भगवान्‌के ही हैं ।
२.   हम जहाँ भी रहते हैं, भगवान्‌के ही दरबारमें रहते हैं ।
३.   हम जो भी शुभ काम करते हैं, भगवान्‌का ही काम करते हैं ।
४.   शुद्ध-सात्त्विक जो भी पाते हैं, भगवान्‌का ही प्रसाद पाते हैं ।
५.   भगवान्‌के दिये प्रसादसे भगवान्‌के ही जनोंकी सेवा करते हैं ।
ये पाँच बातें मान लो तो आप बिल्कुल भगवान्‌का नाम मत लो, कल्याण हो जायगा !

    (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒ ‘बिन्दुमें सिन्धु’ पुस्तकसे