।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि
चैत्र शुक्ल नवमी, वि.सं.२०७४, बुधवार
भगवान् गणेश



(गत ब्लॉगसे आगेका)
महाभारतका लेखन-कार्य गणेशजीने ही किया है । वेदव्यासजीने गणेशजीसे प्रार्थना की कि ‘मैंने मन-ही-मन महाभारतकी रचना कर ली है, आप उसको लिखनेकी कृपा करें । मैं बोलता जाऊँगा और आप उसको लिखते जायें ।’ गणेशजीने उनकी प्रार्थना स्वीकार कर ली, पर यह शर्त रखी कि मेरी कलम एक क्षणके लिये भी नहीं रुकनी चाहिये । वेदव्यासजीने भी इसको स्वीकार करके अपनी एक शर्त रखी कि आप भी बिना समझे कोई श्लोक न लिखें । गणेशजीने इसको स्वीकार करके लिखना आरम्भ कर दिया । वेदव्यासजी बीच-बीचमें ऐसे कूट श्लोक बोलते थे, जिनका अर्थ समझनेके लिये गणेशजीकी कलम एक क्षणके लिये रुक जाती थी, उतनेमें ही वेदव्यासजी दूसरे बहुत-से श्लोकोंकी रचना कर देते थे । इस प्रकार गणेशजीने महाभारतके साथ-साथ उसमें सम्मिलित भगवद्‌वाणी गीताको भी लिखा, जिससे संसारका महान् उपकार हुआ है और होता रहेगा ।

गणेशजी बुद्धिके देवता हैं और उत्तम बुद्धि प्रदान करनेवाले हैं । पहले विद्यार्थी वर्णमाला सीखते थे तो ‘ग’ से गणेश पढ़ा करते थे । परन्तु आजकल ‘ग’ से गदहा पढ़ते हैं । इसलिये विद्यार्थियोंकी बुद्धि भी गदहेकी तरह तामसी हो रही है । तामसी बुद्धिका लक्षण गीतामें इस प्रकार आया है‒

अधर्मं   धर्ममिति  या    मन्यते   तमसावृता ।
सर्वार्थान्विपरीतांश्च बुद्धिः सा पार्थ तामसी ॥
                                                      (१८ । ३२)

‘हे पार्थ ! तमोगुणसे घिरी हुई जो बुद्धि अधर्मको धर्म और सम्पूर्ण चीजोंको उलटा मानती है, वह तामसी है ।’

विद्यार्थियोंके लिये गणेशजीका एक अनुष्ठान है । प्रतिदिन प्रातः शौच-स्नानादि करनेके बाद लाल आसनपर पूर्वकी ओर मुख करके बैठ जाय और रुद्राक्ष या मूँगेकी मालासे ‘ॐ गं गणपतये नमः’इस मन्त्रका कम-से-कम इक्कीस माला जप करे । यह अनुष्ठान शुक्लपक्षकी चतुर्थीसे आरम्भ करना चाहिये । अगर भाद्रपद महीनेके शुक्लपक्षकी चतुर्थी हो तो बहुत बढ़िया है । अनुष्ठानके आरम्भमें गणेशजीका पूजन कर लेना चाहिये । अनुष्ठानकालमें चतुर्थीका व्रत भी करना चाहिये । यह अनुष्ठान छः महीनेतक लगातार करनेसे बुद्धि तेज होती है ।

नारायण !     नारायण !!     नारायण !!!


‒ ‘सन्त-समागम’ पुस्तकसे