‒ध्यानपूर्वक पढ़ें तथा विचार करें
१.परिवार-नियोजन कार्यक्रमसे जीवन-निर्वाहके साधनोंमें तो वृद्धि
नहीं हुई है, पर ऐसी अनेक बुराइयोंकी वृद्धि अवश्य हुई है,
जिनसे समाजका घोर पतन हुआ है ।
२. जीवन-निर्वाहके साधनोंमें कमी (बेरोजगारी, निर्धनता आदि)
होनेका कारण जनसंख्याकी वृद्धि नहीं है, प्रत्युत अपने सुखभोगकी इच्छाओंकी वृद्धि है । भोगेच्छाकी वृद्धि
होनेसे मनुष्य आरामतलब, आलसी और अकर्मण्य हो जाता है,
जिससे वह जीवन-निर्वाहके साधनोंका उपभोग (खर्चा) तो अधिक करता
है, पर उत्पादन कम करता है ।
३. परिवार-नियोजनका कारण है कि मनुष्यका न तो ‘ईश्वर’
पर विश्वास है कि ईश्वर सबका पालन करनेवाला है,
न अपने ‘भाग्य’ पर विश्वास है कि हरेक व्यक्ति अपने भाग्यके अनुसार पाता है
और न अपने ‘पुरुषार्थ’ पर विश्वास है कि मैं अपने पुरुषार्थसे कमाकर परिवारका पालन-पोषण
कर सकता हूँ ।
४. सरकारका कर्तव्य अपने देशमें जन्म लेनेवाले प्रत्येक नागरिकके
जीवन-निर्वाहका प्रबन्ध करना है, न कि उसके जन्मपर ही रोक लगा देना । जन्मपर रोक लगाना वास्तवमें
अपनी पराजय (प्रबन्ध करनेमें असमर्थता) स्वीकार करना है ।
५. जनताकी आवश्यकताओंके अनुसार जीवन-निर्वाहके साधनोंमें वृद्धि
न करके जनसंख्याको ही कम करना वैसे ही है,
जैसे शरीरपर कोई कपड़ा ठीक न आये तो कपड़ेका आकार ठीक करनेकी अपेक्षा
शरीरको ही काटकर छोटा करना ! अथवा भोजनालयमें ज्यादा आदमी आने लगें तो ज्यादा भोजन
न बनाकर आदमियोंको ही मारना शुरू कर देना !
६. मनुष्योंको पैदा होनेसे रोककर अधिक अन्न पैदा करनेकी चेष्टा
वैसे ही है, जैसे बच्चेको गर्भमें न आने देकर माँका दूध अधिक पैदा करनेकी
चेष्टा करना !
७. जहाँ वृक्ष अधिक होते हैं,
वहाँ वर्षा अधिक होती है,
फिर मनुष्य अधिक होंगे तो क्या अन्न अधिक नहीं होगा ?
प्रत्यक्ष बात है कि पहले जनसंख्या कम थी तो अनाज विदेशोंसे
मँगाना पड़ता था; परन्तु अब जनसंख्या बढ़ गयी तो अनाज,
फल आदि वस्तुएँ विदेशोंमें भेजी जाती हैं ।
८. आवश्यकता ही आविष्कारकी जननी है । यदि जनसंख्या बढ़ेगी तो
उसके पालन-पोषणके साधन भी बढ़ेंगे, अन्नकी पैदावार भी बढ़ेगी,
वस्तुओंका उत्पादन भी बढ़ेगा,
उद्योग भी बढ़ेगा । फिर जनसंख्या-वृद्धिकी चिन्ता क्यों ?
९. मनुष्यके पास केवल पेट ही नहीं होता,
प्रत्युत दो हाथ, दो पैर और एक मस्तिष्क भी होता है,
जिनसे वह केवल अपना ही नहीं,
प्रत्युत कई प्राणियोंका भरण-पोषण कर सकता है । फिर जनसंख्या-वृद्धिकी
चिन्ता क्यों ?
(शेष आगेके
ब्लॉगमें)
‒ ‘आवश्यक चेतावनी’ पुस्तकसे
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