।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि
वैशाख पूर्णिमा, वि.सं.२०७४, बुधवार
श्रीबुद्ध-जयन्ती, वैशाख-स्नान समाप्त, पूर्णिमा
संसारमें रहनेकी विद्या



(गत ब्लॉगसे आगेका)

एक लड़कीकी बात हमने सुनी । उस लड़कीकी शादी हो गयी । लड़की थी गरीब घरकी, लड़केवालोंने पैसा माँगा ज्यादा । उसका जी ऊब गया । लड़कीकी बड़ी अवस्था हो गयी थी । उसने कहा, पिताजी ! आप उधार लेकर उनसे विवाह कर दीजिये, अभी कोई बात नहीं, फिर मैं ठीक कर लूँगी । परन्तु आप मेरे लिये दान रूपसे मत देना । कन्याको उधर देता हूँ, ऐसा देना । कर दी शादी, शादी करनेके बाद धन खूब दिया । शादीके बाद वह गयी ससुरालमें तो खाटपर बैठ गयी और पतिसे कहा –‘लाओ मेरी जूती लाओ ।’

‘तेरी जूती मैं उठाऊँ !’ आश्चर्यसे पूछा ।

‘मेरे बापने पैसा दिया है, आपको ख़रीदा है । पता है कि नहीं ?’

‘कितने रुपये लगे ?’

‘हजारों रुपये लगे हैं ।’ कन्याने उत्तर दिया ।

अब उस लड़केने भोजन नहीं किया । माँने पूछा क्या बात है ? ‘माँ ! मेरी जो स्त्री आयी है वह यहाँतक कहती है कि मेरी जूती उठाकर लाओ ।’

‘बहू ! ऐसा क्यों कहती हो ?’ माँने पूछा ।

‘हमारे बापने इतना खर्चा किया है, कर्जा लेकर खर्च किया है, इसलिए यह नौकर है हमारा, इसे लाना पड़ेगा ।’

लड़केने कहा–‘मैं तो जूती नहीं उठाऊँगा, अगर ऐसी बात है तो मैं रोटी नहीं खाऊँगा ।’

मेरे बापके नौकर हो, मेरे बापने पैसे दिये हैं । पता है कि नहीं । ऐसे मुफ्त आये हैं क्या आप ! इतना इन्तजाम किया है, सोलह हजार रुपये उधार लिये थे ।’

इस प्रकार कहने-सुनानेसे लड़केवालोंने रूपया वापिस किया और लड़की बहूकी तरह रहने लगी । कन्याएँ लज्जाकी मूर्ति हैं । इनका इस प्रकार तिरस्कार करना, समाजमें बड़ा अपमान होता है ।

बड़े दुःखकी बात है ! खर्चा तो पूरा करते हो, फिर काम नहीं चलता तो बेईमानी करते हो । बड़े अन्यायकी बात है । इसका नतीजा खराब होगा । जो अन्याय करते हैं उनकी आत्माको शान्ति नहीं मिलेगी । जो धन दुःख देकर लिया जायगा, वह धन आकर आग लगायेगा ।

               (शेष आगेके ब्लॉगमें)
—‘जीवनोपयोगी प्रवचन’ पुस्तकसे