(गत ब्लॉगसे आगेका)
परिवारमें रहना क्या है ? आपके कर्तव्यका आपपर दायित्व है ।
आपका कर्तव्य क्या है ? स्त्री मानें, न मानें; पुत्र मानें, न मानें; भाई मानें,
न मानें; माँ-बाप मानें, न मानें; भौजाई और भतीजे मानें, न मानें; आप अपने कर्त्तव्यका ठीक तरह पालन करें । वे अपना कर्त्तव्य
पालन करते हैं या नहीं करते, उधर आप देखो ही मत । क्योंकि जब आप उनके
कर्त्तव्यको देखते हो कि ‘ये उदण्ड न हो जायँ ।’ ऐसे समयमें आप अपने कर्त्तव्यसे
च्युत ही हैं, आप अपने कर्त्तव्यसे गिरते हो; क्योंकि आपको
दूसरोंका अवगुण देखनेके लिये कर्त्तव्य कहाँ बताया है ? शास्त्रोंमें कहीं भी यह
नहीं बताया है कि तुम दूसरोंका अवगुण देखा करो; प्रत्युत यह बताया है कि यह संसार
गुण-दोषमय है–
सुनहु तात माया कृत गुन
अरु दोष अनेक ।
गुन यह उभय न देखिअहिं देखिअ सो अबिबेक ॥
(मानस ७/४१)
दूसरोंमें गुण है, उनको तो भले ही देखो, पर अवगुण मत देखो ।
अवगुण देखोगे तो वे अवगुण आपमें आ जायेंगे और अवगुण
देखकर उनको उद्दण्डतासे बचानेके लिये क्रोध करते हो तो आप क्रोधसे नहीं बच सकते । इसलिये
आप अपना कर्त्तव्यका पालन करो । दूसरोंका न कर्त्तव्य
देखना है और न अवगुण देखना है । हाँ, लड़का है तो उसको अच्छी शिक्षा देना आपका
कर्त्तव्य है, पर वह वैसा ही करे–यह आपका कर्त्तव्य नहीं है । यह तो उसका
कर्त्तव्य है । उसको
कर्त्तव्य बताना–यह आपका कर्त्तव्य नहीं है । आपको तो सिर्फ इतना ही
है कि भाई, ऐसा करना ठीक नहीं है । अगर वह कहे–‘नहीं-नहीं बाबूजी, ऐसे करेंगे’; तो
कह दो–‘अच्छा ऐसे करो !’ –यह
बहुत बढ़िया दवाई है । मैं नहीं कहने योग्य एक बात कहा रहा हूँ कि ‘इस दवाईका मैं
भी सेवन कर रहा हूँ ।’ आपको जो दवाई बताई, यह बहुत बढ़िया दवाई है । आप कहो–‘ऐसा
करो’ और अगर वह कहे नहीं, हम तो ऐसा करेंगे । अच्छा, ठीक है, ऐसा करो ।
रज्जब रोस न कीजिये कोई कहे क्यूँ ही ।
हँसकर उत्तर दीजिये हाँ बाबाजी यूँ ही ॥
अन्याय हो, पाप हो तो उसको अपने स्वीकार नहीं
करेंगे । अपने तो शास्त्रके अनुसार बात कह दी और वे नहीं मानते तो शास्त्र क्या
कहता है ? क्या उनके साथ लड़ाई करो ! या उनपर रोब जमाओ ! आपको तो केवल कहनेका
अधिकार है–‘कर्मण्येवाधिकारस्ते’ (गीता २/४७) और वे ऐसा ही मान लें–यह फल है, आपका
अधिकार नहीं है । ‘मा फलेषु कदाचन’ (गीता २/४७) । आपने अपनी बारी निकाल दी, बस ! कर्त्तव्य तो आपका कहना ही
था, उनसे वैसा करा लेना आपका कर्त्तव्य थोडा ही है ! वैसा करे, यह उनका कर्त्तव्य
है । अपने तो कर्त्तव्य समझा देना है । उसने कर्त्तव्य-पालन कर लिया तो आपके
कल्याणमें कोई बाधा नहीं और वह नहीं करेगा तो उसका नुकसान है, आपके तो नुकसान है
नहीं, क्योंकि आपने तो हितकी बात कह दी । –यह बहुत मूल्यवान बात है !
नारायण ! नारायण
!! नारायण !!!
—‘जीवनोपयोगी प्रवचन’ पुस्तकसे
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