।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि
ज्येष्ठ कृष्ण नवमी, वि.सं.२०७४, शनिवार
सबका कल्याण कैसे हो ?



प्रश्नसबका कल्याण कैसे हो ?

उत्तर–ऐसा मनमें आता है कि मैं जो बात कहता हूँ, इसको आप और हम सब करें तो सबका कल्याण हो जाय । सबसे पहले तो हमारा यह उद्देश्य हो कि हमें अपना उद्धार करना है । हमारी यह एक ही इच्छा है, एक ही माँग है, जरूरत है, आवश्यकता है । कहावत भी है–

एकै साधे सब सधै, सब साधे सब जाय ।

–एकके सिद्ध करनेसे सब काम सिद्ध हो जाते हैं और सब कामोंको सिद्ध करना चाहें तो कोई-सा भी सिद्ध नहीं होता । अतः सबसे पहली आवश्यकता तो इस बातकी है कि सब ओरसे वृत्तियोंको हटाकर एक अपने कल्याणकी ओर ही कर लिया जाय । अब इस उद्देश्यके अनुसार निरन्तर साधन होना चाहिये । उस निरन्तरताके लिये विचार करना है ।

हमारे सामने ये चीजें आती हैं–काम-धन्धा, समय, व्यक्ति, वस्तु आदि-आदि । भाव यह रहे कि हमारे सामने अनेक तरहके काम-धन्धे कर्त्तव्यरूपसे आते हैं और हमारे पास है समय (वक्त) यानी हमें जो रात-दिन, महीना-वर्ष आदिके रूपमें आयु मिली है । तीसरी हमारे सामने माता-पिता, स्त्री-पुत्र, कुटुम्बी आदि व्यक्ति आते हैं । चौथी आती है धन, मकान आदि वस्तुएँ । इनके लिये हमें अलग-अलग क्रिया करनी पड़ती है । कभी ऐसा होता है कि अभी सत्संगका समय है सत्संग करो, अभी समय भोजनका हो गया तो भोजन कर लो, अब आरामका समय है, आराम कर लो, अब पुस्तक पढ़ना है तो यह कर लो । इसी प्रकार जीविकाका काम है, रसोइका काम करना है, बाल-बच्‍चोंके पालन-पोषणका काम होता है, सोनेका काम होता है, शारीरिक शुद्धिका काम है, गंगा-स्नान आदिका काम होता है । ऐसे अलग-अलग धन्धे सामने आते हैं, वे समय-समयपर आते हैं । अतः कामका विभाग होगा और समयका विभाग होगा । ऐसे ही व्यक्तियोंका और वस्तुओंका भी विभाग होगा कि ये हमारी हैं और ये हमारी नहीं हैं । किंतु ये जो अलग-अलग हैं, इन सबको एक कर देना तो हमारे वशकी बात नहीं है और उचित भी नहीं है । तब फिर उद्देश्य एक कैसे हो ? तो हम विचारसे इस अलग-अलगपनेको मिटा दें । यह कैसे हो ? वस्तुएँ भी अलग-अलग रहेंगी, व्यक्ति भी अलग-अलग रहेंगे, उनका उपयोग भी अलग-अलग होगा, समय भी अलग-अलग रहेगा और काम-धन्धा भी अलग-अलग रहेगा ही । यह रहना ही चाहिये । यह रहना कोई अन्याय नहीं है । तब हम एक साधन क्या और कैसे करें ? क्योंकि हमारा उद्देश्य एक होता है तो वस्तुएँ इतनी सामने आती हैं । हमें कुटुम्ब-पालनके लिये धन भी कमाना है, अपने परिवारके लिये वस्तुएँ भी लानी है, वक्तपर आराम भी करना है, सोना भी है, खाना-पीना भी है । यह सब अलग-अलग होगा । तब फिर एक उद्देश्य कैसे हो ? यह प्रश्न आता है ।

  (शेष आगेके ब्लॉगमें)
–‘एकै साधै सब सधै’ पुस्तकसे