(गत ब्लॉगसे आगेका)
इसमें एक खास बात समझनेकी है । हम अलग-अलग काम किसलिये करते हैं ? वह ‘लिये’–उद्देश्य
हमारे अनेक हो जाते हैं, तब हम फँसते हैं । कभी हमारा उद्देश्य विद्या हो
जाती है, कभी यश हो जाता है, कभी धन हो जाता है, कभी मान-बड़ाई और स्वास्थ्य
उद्देश्य हो जाता है । कभी भगवत्प्राप्ति उद्देश्य हो जाता है, कभी भजन-ध्यान करना
उद्देश्य होता है । ऐसा होनेसे हम साधन नहीं कर सकते । ‘सब
साधे सब जाय’–कोई-सा भी काम सिद्ध नहीं हो पाता । इसलिये हमारा भाव एक ही होना चाहिये कि हम सभी काम करेंगे और करेंगे
प्रभुकी प्रीतिके लिये, भगवान्की प्रसन्नताके
लिये । सोकर उठनेपर यह सोचें कि अब काम क्या करना है, भगवान्की
आज्ञाका पालन करना है, भगवान्के लिये करना है और मैं भगवान्का ही काम कर रहा हूँ
। मान लें वह काम आप हाथ-मुँह धोनेका कर रहे हैं, तो
उसमें यह अनुभव होना चाहिये कि यह भगवान्का काम है । यदि आप कहें कि इसे हम भगवान्का
काम कैसे मानें, हम तो अपना मुँह धोते हैं, अपने हाथ धोते हैं । तो समझना चाहिये
आप अपने हाथ-मुँह धोते हैं–इससे सिद्ध हुआ कि आप अपनेको स्वयं अपना मानते हैं, भगवान्का
नहीं मानते । अतः इस प्रकार अपनेको भगवान्का नहीं माननेसे उद्देश्यकी सिद्धि नहीं
होगी । तो क्या होगा ? बन्धन होगा, और क्या होगा ? जो होता आया है, वही
होगा । प्रश्न होता है कि इस शरीरको भगवान्का कैसे मान लें ? इसका उत्तर यह है–जब
हम भगवान्को प्राप्त करना चाहते हैं और हम भगवान्के हैं तो हमारा शरीर भी भगवान्का
है । हम हाथ धोनेके समय यह समझें कि भगवान्की अनन्त सृष्टिमें यह भी उनका एक
छोटा-सा क्षुद्र अंश है । जैसे छोटे-से-छोटा
रज (बालू) का एक कण भी पृथ्वीसे अलग नहीं है, ऐसे ही एक शरीर यह है । बहुत छोटा है
अनन्त ब्रह्माण्डमें । परन्तु यह भी है भगवान्का । अतः यह अनुभव होना चाहिये कि
मैं मुँह धो रहा हूँ, यह भगवान्का काम कर रहा हूँ । यह मैं बहुत महत्त्वकी बात समझनेके लिये कहता हूँ,
हँसी-दिल्लगीकी बात नहीं है । आप टट्टी जा रहे हैं, पेशाब कर रहे हैं–उसमें
भी यह अनुभव होना चाहिये कि मैं भगवान्का काम कर रहा हूँ । स्वतः भीतरसे ही यह वृत्ति रहनी
चाहिये । यह शरीर जब भगवान्का है, तब इसको साफ करना क्या भगवान्का काम
नहीं है ? हम किसीके घरकी टट्टी साफ करते हैं तो क्या उस घरके मालिकका काम नहीं कर
रहे हैं ? उसमें झाड़ू लगाते हैं तो उस घरका मालिक है, उसीका तो काम कर रहे हैं ।
इसी प्रकार जब यह शरीर भगवान्का है तो इससे टट्टी-पेशाब करके इसको साफ करना भी
भगवान्का ही काम करना है । ऐसे ही स्नान कर रहे हैं–यह भगवान्का काम कर रहे हैं
। कपड़ा धो रहे हैं, यह भगवान्का काम कर रहे हैं । अब रसोई बनाते हैं तो भगवान्का
काम करते हैं । भोजन करते हैं तो यह भी भगवान्का काम करते हैं । ऐसी कोई क्रिया न हो, जो क्रिया भगवान्की न होती हो । यदि
हमें यह अनुभव न हो कि प्रत्येक काम हम भगवान्का ही कर रहे हैं तो हम इसे मानना
शुरू कर दें कि हम प्रत्येक काम भगवान्का ही कर रहे हैं ।
(शेष आगेके ब्लॉगमें)
–‘एकै साधै सब सधै’ पुस्तकसे
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