।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि
ज्येष्ठ कृष्ण दशमी, वि.सं.२०७४, रविवार
एकादशी-व्रत कल है
सबका कल्याण कैसे हो ?



(गत ब्लॉगसे आगेका)

इसमें एक खास बात समझनेकी है । हम अलग-अलग काम किसलिये करते हैं ? वह ‘लिये’–उद्देश्य हमारे अनेक हो जाते हैं, तब हम फँसते हैं । कभी हमारा उद्देश्य विद्या हो जाती है, कभी यश हो जाता है, कभी धन हो जाता है, कभी मान-बड़ाई और स्वास्थ्य उद्देश्य हो जाता है । कभी भगवत्प्राप्ति उद्देश्य हो जाता है, कभी भजन-ध्यान करना उद्देश्य होता है । ऐसा होनेसे हम साधन नहीं कर सकते । ‘सब साधे सब जाय’–कोई-सा भी काम सिद्ध नहीं हो पाता । इसलिये हमारा भाव एक ही होना चाहिये कि हम सभी काम करेंगे और करेंगे प्रभुकी प्रीतिके लिये, भगवान्‌की प्रसन्नताके  लिये । सोकर उठनेपर यह सोचें कि अब काम क्या करना है, भगवान्‌की आज्ञाका पालन करना है, भगवान्‌के लिये करना है और मैं भगवान्‌का ही काम कर रहा हूँ । मान लें वह काम आप हाथ-मुँह धोनेका कर रहे हैं, तो उसमें यह अनुभव होना चाहिये कि यह भगवान्‌का काम है । यदि आप कहें कि इसे हम भगवान्‌का काम कैसे मानें, हम तो अपना मुँह धोते हैं, अपने हाथ धोते हैं । तो समझना चाहिये आप अपने हाथ-मुँह धोते हैं–इससे सिद्ध हुआ कि आप अपनेको स्वयं अपना मानते हैं, भगवान्‌का नहीं मानते । अतः इस प्रकार अपनेको भगवान्‌का नहीं माननेसे उद्देश्यकी सिद्धि नहीं होगी । तो क्या होगा ? बन्धन होगा, और क्या होगा ? जो होता आया है, वही होगा । प्रश्न होता है कि इस शरीरको भगवान्‌का कैसे मान लें ? इसका उत्तर यह है–जब हम भगवान्‌को प्राप्त करना चाहते हैं और हम भगवान्‌के हैं तो हमारा शरीर भी भगवान्‌का है । हम हाथ धोनेके समय यह समझें कि भगवान्‌की अनन्त सृष्टिमें यह भी उनका एक छोटा-सा क्षुद्र अंश है । जैसे छोटे-से-छोटा रज (बालू) का एक कण भी पृथ्वीसे अलग नहीं है, ऐसे ही एक शरीर यह है । बहुत छोटा है अनन्त ब्रह्माण्डमें । परन्तु यह भी है भगवान्‌का । अतः यह अनुभव होना चाहिये कि मैं मुँह धो रहा हूँ, यह भगवान्‌का काम कर रहा हूँ । यह मैं बहुत महत्त्वकी बात समझनेके लिये कहता हूँ, हँसी-दिल्लगीकी बात नहीं है । आप टट्टी जा रहे हैं, पेशाब कर रहे हैं–उसमें भी यह अनुभव होना चाहिये कि मैं भगवान्‌का काम कर रहा हूँ । स्वतः भीतरसे ही यह वृत्ति रहनी चाहिये । यह शरीर जब भगवान्‌का है, तब इसको साफ करना क्या भगवान्‌का काम नहीं है ? हम किसीके घरकी टट्टी साफ करते हैं तो क्या उस घरके मालिकका काम नहीं कर रहे हैं ? उसमें झाड़ू लगाते हैं तो उस घरका मालिक है, उसीका तो काम कर रहे हैं । इसी प्रकार जब यह शरीर भगवान्‌का है तो इससे टट्टी-पेशाब करके इसको साफ करना भी भगवान्‌का ही काम करना है । ऐसे ही स्नान कर रहे हैं–यह भगवान्‌का काम कर रहे हैं । कपड़ा धो रहे हैं, यह भगवान्‌का काम कर रहे हैं । अब रसोई बनाते हैं तो भगवान्‌का काम करते हैं । भोजन करते हैं तो यह भी भगवान्‌का काम करते हैं । ऐसी कोई क्रिया न हो, जो क्रिया भगवान्‌की न होती हो । यदि हमें यह अनुभव न हो कि प्रत्येक काम हम भगवान्‌का ही कर रहे हैं तो हम इसे मानना शुरू कर दें कि हम प्रत्येक काम भगवान्‌का ही कर रहे हैं ।

  (शेष आगेके ब्लॉगमें)
–‘एकै साधै सब सधै’ पुस्तकसे