।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि
ज्येष्ठ शुक्ल प्रतिपदा, वि.सं.२०७४, शुक्रवार
सबका कल्याण कैसे हो ?



(गत ब्लॉगसे आगेका)

अभिप्राय यह कि जो होता है, उसमें तो कोई अनिष्टकी सम्भावना है नहीं, उसमें तो प्रसन्नता लानी है; क्योंकि वह भगवान्‌के हाथमें है और जो हमें करना है, वह उसकी आज्ञासे करना है, उसकी आज्ञासे विरुद्ध नहीं करना है–यह हमारा उद्देश्य है । इन दोके सिवा और कोई बात है नहीं–एक होना और दूसरा करना । तो फिर हमारा जीवन सब-का-सब साधनामय हो गया । अब हम सब समय मस्त रहें । किंतु हम मस्त नहीं रहते, तभी तो कहना पड़ता है–इधर लक्ष्य नहीं है, लक्ष्य हो तो ऐसे हो सकता है ।

इसलिये चौबीस घंटोंमें एक मिनट भी ऐसा नहीं, जिस समयमें साधन न होता हो । अब बताओ, कौन-सा समय ऐसा रहा, जिसमें साधन न हो । सब समय साधन ही हो रहा है । और अब कौन-सी प्रवृत्ति, कौन-सी क्रिया है, जो भगवान्‌का भजन न हो । इससे ‘सर्वेषु कालेषु मामनुस्मर’ हो जायगा । जब यह कहा है–

यत्क्षणं यन्मुहूर्तं वा वासुदेवं न चिन्तयेत् ।’

कह हनुमंत बिपति प्रभु सोई । जब तब सुमिरन भजन न होई ॥

–तब अपनी विपत्ति तो दूर हो गयी । अब विपती कहाँ रही ? सब-का-सब समय भगवान्‌का, सब-का-सब काम भगवान्‌का, सब-की-सब वस्तुएँ भगवान्‌की, सब व्यक्ति भगवान्‌के, सब-के-सब सम्बन्ध भगवान्‌के और हमारी कोई वस्तु है ही नहीं । मन भगवान्‌का, बुद्धि भगवान्‌की, शरीर भगवान्‌का, प्राण भगवान्‌के, सब भगवान्‌के हैं–

त्वदीयं वस्तु गोविन्द तुभ्यमेव समर्पये ।’

‘आपकी वस्तु ही, प्रभो ! आपके चरणोंमें समर्पित है ।’ ऐसे होकर मस्त रहें ।

हमारी क्या है ? हमारे तो भगवान्‌ हैं और भगवान्‌ हैं इसलिये आनन्द हैं । फिर मौज और मस्ती रहेगी ही ।

चिन्ता दीनदयालको मो मन सदा अनन्द ।

भगवान्‌ और हम दो हैं । हमारा, उनका बँटवारा हो गया । मौज-मौज हमारे हिस्से आ गयी और चिन्ता-चिन्ता भगवान्‌के । तुम चिन्ता नहीं करते, मैं क्यों करू ! भगवान्‌ करें । भगवान्‌ बड़े हैं, बड़े चिन्ता किया करें । भक्त नरसीजीके पत्र आया, बहुत बड़ा चिट्ठा कि इतना-इतना सामान लाओ तो आना । पत्रमें ऊपर भगवान्‌का नाम लिखनेकी रिवाज अनादि कालसे चली आ रही है । पत्र पढ़ा तो ऊपर भगवान्‌का नाम लिखा ही था, नरसीजी नाचने लगे–

‘पाती तो बाँच नरसी मगन भया ।’

–लाखों-करोडोंकी वस्तु चाहिये । पत्रमें इतनी वस्तुएँ लिखीं थी कि उनकी बात पढ़-सुनकर नरसीजी नाचने लगे और खुश हो गाये एवं गाने लगे–

ऊपर नाम लिख्यो सो तो मायरो भरसी ।

नरसीलो तो बैठ्यो बैठ्यो भजन करसी ॥

  (शेष आगेके ब्लॉगमें)
–‘एकै साधै सब सधै’ पुस्तकसे