।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि
वैशाख शुक्ल नवमीवि.सं.२०७४, गुरुवार
संसारमें रहनेकी विद्या



(गत ब्लॉगसे आगेका)

         माँने जितना कष्ट सहा है, बालक उतनी माँकी सेवा नहीं कर सकता । सब कुछ माँने दिया । कोई कहे कि मैं मेरे चमड़ेकी जूती बनाकर माँको पहना दूँ । कोई उनसे पूछे, यह चमड़ा भी बाजारसे लाये हो क्या ? यह तो माँका ही है । इसपर तू अधिकार क्या करता है ? माँसे मिला है । आज हम बड़ी-बड़ी बातें बनाते हैं । लोगोंमें विद्वान, सज्जन कहलाते हैं, यह शरीर मिला किससे है ? माँसे मिला है । माँसे पालन हुआ है ।

         आप कितने भी विद्वान हो जायँ । बचपनमें बैठना नहीं आता था, माँने बिठाकर मुखमें ग्रास दिया । भोजन करना सिखाया । यह दशा थी बहिनोंकी और भाइयोंकी भी । उस अवस्थामें माँने पालन किया और बड़े-बड़े कष्ट सहे । खेलमें इधर-उधर जाते, तोड़-फोड करते, वृक्षोंमें उलझते, बिच्छुको भी पकड़ने दौड़ते, आगमें हाथ डालना चाहते । माँने रक्षा की । टट्टी-पेशाब करते उसमें ही लकीरें खीचने लगते । अब ऐसा देखकर मन खराब होता है । उस समय होश नहीं था कुछ भी, यह सब माँने ज्ञान कराया । बड़ी विलक्षणतासे पालन किया ।

         कभ-कभी भाई लोग अभिमानमें आकार कह देते हैं कि क्या बड़ी बात है ! उनसे मैं कहता हूँ कि बच्चेको दो दिन गोदमें रखकर देखो । माँमें मातृत्व शक्ति है तब हमारा पालन हुआ । इसलिए जितनी अपनी सामर्थ्य हो माँ-बापकी सेवा करो । जो माँ-बापका आदर नहीं करते, उनका भगवान् भी आदर नहीं करते । कोई उनका विश्वास नहीं करते, क्योंकि जो माँ-बापका नहीं है, वह किसका होगा ? माँ-बापकी सेवा करनेसे भगवान् राजी होते हैं । आज्ञापालन करनेसे सिद्धि प्राप्त होती है । अर्थात् परमात्माकी प्राप्ति होती है । इस कारण भाई-बहिनोंको आज्ञापालन करना चाहिये । आज्ञापालनसे क्या होगा ? उनकी सेवा होगी और हम निरहंकार हो जायेंगे । चीज-वस्तुओंसे उनकी सेवा करनेसे निर्मम हो जायेंगे । जितनी-जितनी चीजोंको सेवामें लगा देंगे, उतना अपना अहंकार नष्ट हो जायगा । आराम-बुद्धि और अपनेमें बड़प्पनका अहंकार पतन करनेवाले हैं । संसारकी सेवा करते-करते अभिमानको सुगमतासे दूर कर सकते हो । ऐसे ही समान उम्रवालोंकी सेवा करो । छोटी अवस्थावाले हैं, उनकी भी सेवा करो । छोटोंका पालन-पोषण करना भी सेवा है । सदाचारकी शिक्षा देना भी सेवा है । वे उम्रभर सुख पाएंगे, इसलिए बालकोंको अच्छी शिक्षा दो । बेटा-बेटीको अच्छी शिक्षा दो, जिससे वे अच्छे बन जायँ ।

               (शेष आगेके ब्लॉगमें)
—‘जीवनोपयोगी प्रवचन’ पुस्तकसे