।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि
वैशाख शुक्ल त्रयोदशीवि.सं.२०७४, सोमवार
संसारमें रहनेकी विद्या



(गत ब्लॉगसे आगेका)

थोड़े समयमें, थोड़े खर्चेमें बढ़िया काम हो जाय, ऐसा स्वाभाव बनाओ तो सब लोग खुश हो जायँ, प्रसन्न हो जायँ । गृहस्थोंसे ऐसी बातें हमने सुनी हैं, जो माताएँ-बहिनें चीजें अच्छी बनाती हैं, उनका सब आदर करते हैं, पर इस बातका अभिमान नहीं करना चाहिये । अभिमान तो पतन करनेवाला होता है । ‘निर्ममो निरहंकारः’, अहंकार तो छोड़ना है । अरे ! काम-धन्धा करके फिर उससे भी अहंकार कर लो ! इसलिये सुन्दर रीतिसे काम करो, सुचारुरूपसे काम करो । मान-बड़ाईके लिये नहीं, रुपये-पैसोंके लिये नहीं, वाह-वाहके लिये नहीं । अपना अन्तकरण शुद्ध करनेके लिये, निर्मल बनानेके लिये, जिससे भगवान्‌में प्रेम बढ़े । प्रेम बढ़ानेके लिये काम-धन्धा करो, सेवा करो । काममें चातुर्य बढ़ानेसे आपकी माँग हो जायगी ।

तीसरी बात–व्यक्तिगत खर्चा कम करो । दान-पुण्य करो । बड़े-बूढोंकी रक्षा करो । अभावग्रस्तोंको दो । सेवा करो, पर अपने शरीरके निर्वाहके लिये साधारण वस्त्र, साधारण भोजन, साधारण मकान–उससे अपना निर्वाह करो । भाई-बहिन सबके लिये यह बड़े कामकी बात है । जो खर्चीला जीवन बना लेते हैं, वह पराधीन हो जाता है । खर्चा कम करना हाथकी बात है और ज्यादा पैदा करना हाथकी बात नहीं । आजकल लोग खर्चा तो करते हैं ज्यादा और पैदाके लिये सहारा लेते हैं झूठ-कपट, बेईमानी-धोखेबाजी, विश्वासघातका । इससे क्या अधिक कमा लेते हैं ? अधिक कमा लें यह हाथकी बात नहीं, खर्चा कम करना हाथकी बात है । जो हाथकी बात है उसे करते नहीं और जो हाथकी नहीं, वह होती नहीं । दुःख पाते रहते हैं उम्रभर । इस बातको समझ लें कि भाई, अपने व्यक्तिगत कम खर्चेसे ही काम चला सकते हैं । बढ़िया-से-बढ़िया माल खा लो और चाहे साधारण दाल-रोटी खा लो, निर्वाह हो जायगा । यदि शरीर बीमार है तो दवाई ले लो । निर्वाहकी दृष्टिसे तो कोई बात नहीं, परन्तु स्वाद और शौकीनीकी दृष्टी ठीक नहीं है । यह बहुत बड़ी गलती है । इससे बचनेके लिये, स्वतन्त्र जीवन बितानेके लिये खर्चा कम करो ।

धन कमाना आजकल होशियारी कहलाती है । लोग कहते हैं कि बड़ा होशियार है, कितना धन कमा लिया इसने । अरे ! धन क्या कमा लिया ? उम्र गँवा दी । आप मरेंगे तो कौड़ी एक साथ चलेगी नहीं । धन कमानेके कारण जो झूठ-ठगी, बेईमानी, धोखेबाजी, विश्वासघात आदि अपनाना पडा, वह जमा हुआ है अन्तःकरणमें और धन रह जायगा बैंकोंमें, आलमारियोंमें, बक्सोंमें । यह साथ जायगा नहीं । धन संग्रह करनेमें जो-जो पाप किये वे साथ चलेंगे । तो यह पापकी पोट सिरपर रहेगी, साथ चलेगी । काले बजारसे धन कमा लिया । आयकरकी चोरी कर ली, बिक्रीकरकी चोरी कर ली, बड़ी होशियारी की । किया क्या ? महान् नाश कर लिया, महान् पतन कर लिया । साथ चलनेवाली पूँजी नष्ट कर दी और यहीं छूटनेवाली पूँजी संग्रह कर ली । मरनेपर कुछ साथ नहीं चलेगा । सब धन यहीं धरा रह जायगा । पीछे लोग खायेंगे और दुःख पाओगे आप । नरकोंमें जाना पड़ेगा आपको । यह होशियारी है ? यह कोई समझदारी है ? कितनी बड़ी भारी बेसमझी है, मूर्खता है । तो अब क्या करें ? अब पाप छोड़ दो । अब बेईमानी, ठगी, झूठ-कपट, विश्वासघात, धोखेबाजी नहीं करेंगे । परिश्रम करेंगे, जितना मिलेगा उसीसे काम चलायेंगे । पाप नहीं करेंगे–यह है चौथी बात ।

               (शेष आगेके ब्लॉगमें)
—‘जीवनोपयोगी प्रवचन’ पुस्तकसे