(गत ब्लॉगसे आगेका)
थोड़े समयमें, थोड़े खर्चेमें बढ़िया काम हो जाय, ऐसा स्वाभाव
बनाओ तो सब लोग खुश हो जायँ, प्रसन्न हो जायँ । गृहस्थोंसे ऐसी बातें हमने सुनी हैं, जो माताएँ-बहिनें
चीजें अच्छी बनाती हैं, उनका सब आदर करते हैं, पर इस बातका अभिमान नहीं करना
चाहिये । अभिमान तो पतन करनेवाला होता है । ‘निर्ममो
निरहंकारः’, अहंकार तो छोड़ना है । अरे ! काम-धन्धा करके फिर उससे भी अहंकार
कर लो ! इसलिये सुन्दर रीतिसे काम करो, सुचारुरूपसे काम
करो । मान-बड़ाईके लिये नहीं, रुपये-पैसोंके लिये नहीं, वाह-वाहके लिये नहीं । अपना
अन्तकरण शुद्ध करनेके लिये, निर्मल बनानेके लिये, जिससे भगवान्में प्रेम बढ़े ।
प्रेम बढ़ानेके लिये काम-धन्धा करो, सेवा करो । काममें चातुर्य बढ़ानेसे आपकी माँग
हो जायगी ।
तीसरी बात–व्यक्तिगत
खर्चा कम करो ।
दान-पुण्य करो । बड़े-बूढोंकी रक्षा करो । अभावग्रस्तोंको दो । सेवा करो, पर अपने
शरीरके निर्वाहके लिये साधारण वस्त्र, साधारण भोजन, साधारण मकान–उससे अपना निर्वाह
करो । भाई-बहिन सबके लिये यह बड़े
कामकी बात है । जो खर्चीला जीवन बना लेते हैं, वह पराधीन
हो जाता है । खर्चा कम करना हाथकी बात है और ज्यादा पैदा करना हाथकी बात
नहीं । आजकल लोग खर्चा तो करते हैं ज्यादा और पैदाके लिये सहारा लेते हैं झूठ-कपट,
बेईमानी-धोखेबाजी, विश्वासघातका । इससे क्या अधिक कमा लेते हैं ? अधिक कमा लें यह हाथकी बात नहीं, खर्चा कम करना हाथकी बात है ।
जो हाथकी बात है उसे करते नहीं और जो हाथकी नहीं, वह होती नहीं । दुःख पाते रहते
हैं उम्रभर । इस बातको समझ लें कि भाई, अपने व्यक्तिगत कम खर्चेसे ही काम
चला सकते हैं । बढ़िया-से-बढ़िया माल खा लो और चाहे साधारण दाल-रोटी खा लो, निर्वाह
हो जायगा । यदि शरीर बीमार है तो दवाई ले लो । निर्वाहकी दृष्टिसे तो कोई बात
नहीं, परन्तु स्वाद और शौकीनीकी दृष्टी ठीक नहीं है । यह बहुत बड़ी गलती है । इससे
बचनेके लिये, स्वतन्त्र जीवन बितानेके लिये खर्चा कम करो ।
धन कमाना आजकल होशियारी कहलाती है । लोग कहते हैं कि बड़ा
होशियार है, कितना धन कमा लिया इसने । अरे ! धन क्या कमा लिया ? उम्र गँवा दी । आप
मरेंगे तो कौड़ी एक साथ चलेगी नहीं । धन कमानेके कारण जो
झूठ-ठगी, बेईमानी, धोखेबाजी, विश्वासघात आदि अपनाना पडा, वह जमा हुआ है
अन्तःकरणमें और धन रह जायगा बैंकोंमें, आलमारियोंमें, बक्सोंमें । यह साथ जायगा
नहीं । धन संग्रह करनेमें जो-जो पाप किये वे साथ चलेंगे । तो यह पापकी पोट सिरपर
रहेगी, साथ चलेगी । काले बजारसे धन कमा लिया । आयकरकी चोरी कर ली,
बिक्रीकरकी चोरी कर ली, बड़ी होशियारी की । किया क्या ? महान् नाश कर लिया, महान्
पतन कर लिया । साथ चलनेवाली पूँजी नष्ट कर दी और यहीं छूटनेवाली पूँजी संग्रह कर
ली । मरनेपर कुछ साथ नहीं चलेगा । सब धन यहीं धरा रह जायगा । पीछे लोग खायेंगे और
दुःख पाओगे आप । नरकोंमें जाना पड़ेगा आपको । यह होशियारी है ? यह कोई समझदारी है ?
कितनी बड़ी भारी बेसमझी है, मूर्खता है । तो अब क्या करें ? अब पाप छोड़ दो । अब बेईमानी, ठगी, झूठ-कपट, विश्वासघात,
धोखेबाजी नहीं करेंगे । परिश्रम करेंगे, जितना मिलेगा उसीसे काम चलायेंगे । पाप
नहीं करेंगे–यह है चौथी बात ।
(शेष आगेके ब्लॉगमें)
—‘जीवनोपयोगी प्रवचन’ पुस्तकसे
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