।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि–
श्रावण शुक्ल दशमी, वि.सं.-२०७४, बुधवार
एकादशी-व्रत कल है
मनुष्य-जीवनकी सफलता



(गत ब्लॉगसे आगेका)
   श्रोता–विद्या पढ़नेके बाद स्थितिमें फरक पड़ गया; विद्याकी जानकारी हुई ।

  स्वामीजी–अब मेरेको विद्या नहीं पढ़नी है–यह जो आपकी खुदकी स्थिति है, उस स्थितिमें क्या फरक पड़ा ? विद्याका तो बुद्धिमें संग्रह हुआ । जैसे, धन कमानेकी पहले इच्छा नहीं थी । फिर इच्छा हुई कि धन कमा करके इकठ्ठा कर लूँ । फिर धन कमाया और धन इकठ्ठा कर लिया । इसके बाद फिर धन कमानेकी मनमें नहीं रही, तो आपमें खुदमें क्या फरक पड़ा ? यह थोड़ी गहरी बात है । गहरा उतरकर देखो तो विद्या पढ़नेपर बुद्धिमें विद्याका संग्रह होता है । बुद्धिके साथ घुले-मिले होनेसे ऐसा दीखता है कि हमारेको विद्या आ गयी । अगर लकवा मार जाय तो सब भूल जाओगे । अतः वास्तवमें विद्या आपके पास नहीं आयी है, बुद्धिके पास आयी है । उससे आपको क्या मिला ? शरीरसे आपको क्या मिला ? इन्द्रियोंसे आपको क्या मिला ? मनसे आपको क्या मिला ? बुद्धिसे आपको क्या मिला ? अहंतासे भी आपको क्या मिला ? आप तो अहंता (मैं-पन) के भी प्रकाशक हैं ।

    जैसे यह संसार दीखता हैं, ऐसे ही यह शरीर भी दीखता है, प्राण भी दीखते हैं, कर्मेद्रियाँ और ज्ञानेन्द्रियाँ भी दीखती हैं, मन-बुद्धि भी दीखते हैं । सूक्ष्मतासे देखनेपर मैं-पन भी दीखता है, पर आप मैं-पनमें नहीं हैं । आपकी स्थिति तो स्वरूपमें हैं । वह स्वरूपमें स्थिति पहलेसे ही है । कुछ-न-कुछ करनेकी मनमें आनेसे संसारमें स्थिति हुई और कार्य पूरा होनेपर पुनः अपने स्वरूपमें स्थिति हुई । जैसे घाणी-(कोल्हू-) का बैल जहाँसे चलना शुरू करता है, वहाँ ही वापस आ जाता है और इस प्रकार उम्रभर चलता है, पर कहीं नहीं जाता, वहाँ-का-वहाँ ही रहता है । ऐसे ही उम्रभर करते रहो, कुछ नहीं मिलेगा, वहाँ-के-वहाँ ही रहोगे । परन्तु अपने लिये कुछ करना है ही नहीं–ऐसा होनेपर कृत्यकृत्य हो जाओगे । क्या बाधा लगी कृत्यकृत्य होनेमें ?

    क्या कहें सज्जनो ! बात बहुत विलक्षण है । मेरे मनमें आती है कि आप सब-के-सब लोग इस बातको समझ सकते हो । सब-के-सब कृत्यकृत्य हो सकते हैं, सब-के-सब ज्ञात-ज्ञातव्य हो सकते हो और सब-के-सब प्राप्त-प्राप्तव्य हो सकते हो । इसके सिवा आप कुछ नहीं हो सकते हो । ऐसा होनेकी पूरी ताकत आपमें है । इसके सिवा कोई ताकत आपमें नहीं है । इसको हरेक आदमी कर सकता है । वह पापी है कि धर्मात्मा है, विद्वान है कि अविद्वान है, योग्य है कि अयोग्य है, धनी है कि निर्धन है, किसी डिग्रीको प्राप्त है कि नहीं है, किसीकी किंचिन्मात्र भी जरूरत नहीं है । किसी तरहकी योग्यताकी जरूरत नहीं, किसीके बलकी जरूरत नहीं, किसी विद्वताकी जरूरत नहीं । जरूरत केवल यही है कि ‘ऐसा मैं हो जाऊँ’–यह लगन लग जाय । इसपर आप विचार करो, अपनी उलझनको सुलझाओ । यह करना है, वह पाना है, वह लाना है, वहाँ जाना है, उससे मिलना है, उससे यह कराना है आदि आफत मोल ले रहे हो ! गहरा विचार करो तो बिलकुल सुलझ जाओगे, शान्ति मिल जायगी, आनन्द हो जायगा । आपके लिये करना कुछ बाकी नहीं रहेगा । आज मर जाओ तो कोई चिन्ता नहीं; क्योंकि काम हमारा पूरा हो गया । आप कृपा करके इस बातको समझो ।

  (शेष आगेके ब्लॉगमें) 
–‘भगवत्प्राप्तिकी सुगमता’ पुस्तकसे