।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि–
श्रावण शुक्ल चतुर्दशी, वि.सं.-२०७४, रविवार
मनकी चंचलता कैसे मिटे ?



आजकल यह बड़ी शिकायत रहती है कि मन नहीं लगता, मन बहुत चंचल है ! अतः मनको रोकनेके लिये, मनकी चंचलता मिटानेके लिये बहुत बढ़िया उपाय बताया जाता है ।

आप अध्ययन करें कि मनमें क्या आता है ? मनमें विशेषरूपसे बीती हुई बातोंकी याद आती है । बीती हुई बातें चाहे बालकपनकी हों, चाहे अभी एक क्षण पहलेकी हों, वह सब भूतकाल है । भूतकालमें जो बातें सुनीं, देखीं, पढ़ीं, विचारमें आयीं, उन बातोंकी याद आती है । ऐसे ही कुछ भविष्यकी बातें भी याद आती हैं कि हमें वह काम करना है, वहाँ जाना है, उससे मिलना है, इतना धंधा करना है आदि । इस तरह भूतकी और भविष्यकी बातें याद आती हैं । इस चिन्तनको मिटानेके लिये बहुत तरहकी युक्तियाँ और उपाय हैं । उनमें सबसे बढ़िया उपाय है कि मनमें जो भी याद आये, वह अब है ही नहीं–ऐसा समझकर उसकी उपेक्षा कर दें और उससे तटस्थ हो जायँ अर्थात् वर्तमानमें उससे हमारा सम्बन्ध है ही नहीं–यह दृढ़ विचार कर लें । यह सीखनेकी बात नहीं है, प्रत्युत अनुभव करनेकी बात है ।

भूतकालका सर्वथा अभाव है । जैसे उस कालका अभाव है, ऐसे ही उस कालकी (बीती हुई) घटनाओंका भी अभाव है । बीती हुई घटनाओंमें दो तरहकी बातें हैं । एक हमने भोगोंको भोगा और एक हमने ऐसे ही देख लिया, सुन लिया, पढ़ लिया और छोड़ दिया । अतः मनोराज्यके दो भेद बताये गये हैं–मन्द और तीव्र । बिना भोगे हुए जो भोग याद आते हैं, वह मन्द मनोराज्य है और भोगे हुए भोग याद आते हैं, वह तीव्र मनोराज्य है । भोग जितना ही आसक्तिपूर्वक, लगनपूर्वक भोग है, उतना ही उसका स्मरण ज्यादा होता है और जल्दी नहीं मिटता[1]
   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
–‘वासुदेवः सर्वम्’ पुस्तकसे


[1] सांसारिक भोगोंको बाहरसे भी भोगा जा सकता है और मनसे भी । बाहरसे भोग भोगना और मनसे उनके चिन्तनका रस (सुख) लेना–दोनोंमें कोई फर्क नहीं है । बाहरसे रागपूर्वक भोग भोगनेसे जैसा संस्कार पड़ता है, वैसा ही मनसे भोग भोगनेसे अर्थात् मनसे भोगोंके चिन्तनमें रस लेनेसे पड़ता है । भोगकी याद आनेपर उसकी यादसे रस लेते हैं तो कई वर्ष बीतनेपर भी वह भोग ज्यों-का-त्यों (ताजा) बना रहता है । अतः भोगके चिन्तनसे भी एक नया भोग बनता है ! इतना ही नहीं, मनसे भोगोंके चिन्तनका सुख लेनेसे विशेष हानि होती है । लोक-लिहाजसे, व्यवहारमें गड़बड़ी आनेके भयसे मनुष्य बाहरसे तो भोगोंका त्याग का सकता है, पर मनसे भोग भोगनेमें बाहरसे कोई बाधा नहीं आती । अतः मनसे भोग भोगनेका विशेष अवसर मिलता है ।