।। श्रीहरिः ।।




आजकी शुभ तिथि–
     पौष शुक्ल त्रयोदशी, वि.सं.-२०७४, रविवार  
मैं नहीं, मेरा नहीं 


(गत ब्लॉगसे आगेका)

सब भाई-बहन विचार करो कि हमारा वश किसपर चलता है ? हमारी स्वतन्त्रता किसपर चलती है ? हम अपने मनके अनुसार किन वस्तुओंको, व्यक्तियोंको रख सकते हैं ? बोलने, चलने, देखने, सुनने आदि किन क्रियाओंको अपने मनके अनुसार कर सकते हैं ? आपको साधन करना हो तो कम-से-कम इस एक बातपर विचार करो कि हमारा वश किसपर चलता है ? स्वयं इस बातपर विचार करो तो आप उन्नत हो जाओगे । अभी जिस स्थितिमें हो, उससे ऊँचे उठ जाओगे । आपको बहुत लाभ होगा ।

जिसपर हमारा वश नहीं चलता, वह हमारा कैसे ? शरीरको बीमार न होने दें, कमजोर न होने दें, मरने न देंऐसा हमारा वश चलता है क्या ? जिसपर हमारा वश नहीं चलता, उसको अपना मानना ठीक है क्या ? छोटे-बड़े सबसे हाथ जोड़कर प्रार्थना है कि इस बातपर विचार करो । अगर आप अपनी आध्यात्मिक उन्नति चाहते हो, सत्संगसे लाभ लेना चाहते हो, परमात्माकी प्राप्ति चाहते हो, तत्त्वज्ञान चाहते हो, भगवान्का प्रेम चाहते हो तो इसपर सोचो । जिनपर अपना वश नहीं चलता, उनको अपना मान सकते हो क्या ? उनको अपना कैसे मानोगे ? उनके मालिक कैसे बनोगे ? इसपर गहरा विचार करो तो आपकी आध्यात्मिक उन्नति जरूर होगी, इसमें सन्देह नहीं है । बहुत लाभ होगा ! आप वर्षोतक सत्संग करते रहे और लाभ नहीं हुआ, वह लाभ एक दिनमें हो जायगा !

वस्तु, व्यक्ति और क्रियाये तीन हैं । इन तीनोंपर आपका वश चलता है क्या ? क्रियाएँ अनेक हैं । शरीरकी क्रिया है, इन्द्रियोंकी क्रिया है, मनकी क्रिया है, प्राणोंकी क्रिया है । चलना-फिरना, उठना-बैठना, सोना-जगना, जाना-आना, लेना-देना आदि किस क्रियापर आपका वश चलता है ? केवल बातें न सुनकर इसपर गहरा विचार करो ।

आप साक्षात् परमात्माके अंश हैं । आप साकार हैं ही नहीं ! कोई भी साधक साकार नहीं होता । शरीर साकार होता है । कोई साधक शरीर है ही नहीं । साधक शरीर नहीं होता और शरीर साधक नहीं होता । शरीर तो मर जायगा । साधक निराकार होता है ।

श्रोताजब भगवान्के दर्शनसे कल्याण होता है, तो जिस समय भगवान् राम और कृष्णका अवतार हुआ, उस समय उनका दर्शन करनेवाले सब मनुष्योंकी मुक्ति हो गयी क्या ?

स्वामीजीजिसने भगवान् समझकर दर्शन किया, उसका कल्याण हुआ । दुर्योधन भगवान् कृष्णको एक चालाक आदमी समझता था, फिर कैसे मुक्ति होगी ? दुर्योधनको भगवान्के दर्शन नहीं हुए प्रत्युत चालाक आदमीके दर्शन हुए । सब जग ईश्वररूप है, तो क्या इसको देखनेसे सबकी मुक्ति हो गयी ? जैसे इसको देखनेसे मुक्ति नहीं हुई, ऐसे भगवान् राम और कृष्णको देखनेसे भी सबकी मुक्ति नहीं हुई ।

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘मैं नहींमेरा नहीं’ पुस्तकसे