(गत ब्लॉगसे आगेका)
मेरे मनमें आती है कि आप इस बातको पकड़ लें कि ‘हम भगवान्के हैं’ । जैसे अपनी
माँ दीखती है, ऐसे ही मनमें दीखना चाहिये कि मेरी माँ भगवान्
हैं !
त्वमेव माता च पिता त्वमेव
त्वमेव बन्धुश्च
सखा त्वमेव ।
त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव
त्वमेव सर्वं मम
देव देव ॥
भगवान्का नाता विलक्षण है ! संसारके नाते कई कर लिये, पर कोई टिकेगा नहीं । भगवान्का सम्बन्ध कभी मिटेगा नहीं । भगवान् मेरे माँ-बाप हैं‒यह मानना बड़ा सुगम है । ऐसा मानकर सब जगह निःशंक, निधड़क
रहो । आपको यह बात दीखती होगी कि स्वामीजी रोजाना-रोजाना यही बात कहते हैं, पर रोजाना कहनेपर भी आप नहीं मानते तो फिर कैसे मानोगे ! माँ होकर भगवान् सदा साथ रहते हैं‒यह बात भी याद रखनेकी
है ! वे सब प्राणियोंके हृदयमें रहते हैं ।
सिवाय भगवान्के कोई हमारा नहीं है । सेवा करनेके लिये
सब हमारे हैं, पर हमारा कोई नहीं है । ‘मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई’‒यह बात हृदयमें पकड़ लेनेकी है । जिसमें आपका स्नेह हो, उसकी सेवा करो, पर उससे कुछ भी चाहो मत । सेवा करनेसे
कर्जा उतर जाता है । किसी मरे हुए आदमीकी विशेष याद आती है तो उसका अर्थ यह हुआ कि
उससे जितना सुख लिया है, उतना उसको सुख दिया नहीं । उस सुखका
कर्जा है । कर्जा रहनेसे उसकी याद आती है । इसलिये यह बात
सदा ही याद रखो, सबकी सेवा करो
और कुछ चाहो मत । शान्ति मिल जायगी ।
अगर आप आध्यात्मिक उन्नति, तत्त्वज्ञान,
मुक्ति चाहते हो तो गीता ‘साधक-संजीवनी’ का सातवाँ
और नवाँ अध्याय जरूर पढ़ना चाहिये । इनमें आध्यात्मिक उन्नतिके लिये बहुत लाभकी बातें
आयी हैं ! सातवाँ अध्याय प्रेमपूर्वक पढ़कर उसके अनुसार आचरण करे
तो कल्याण हो जायगा । ‘परिशिष्ट’ में बहुत ज्यादा अच्छी बातें आयी हैं । गीतामें
ज्यों-ज्यों गहरा उतरते हैं,
त्यों-त्यों नयी-नयी विलक्षण
बातें मिलती हैं ।
अगर आप ध्यान दें तो ‘सब जग ईस्वररूप
है’‒यह साफ दीखेगा । कारण कि जब अपरा प्रकृति अर्थात् पृथ्वी, जल, तेज, वायु, आकाश आदि भगवान्का स्वरूप है तो भगवान्के सिवाय क्या बाकी रहा ? जो मिलने
और बिछुड़नेवाला होता है, वह अपना नहीं
होता‒यह एक बात भी इतनी विलक्षण है कि इसकी जितनी महिमा कही जाय,
उतनी थोड़ी है ! संसारकी मात्र वस्तु ऐसी
ही है । इसलिये अनन्त ब्रह्माण्डोमें तिल-जितनी चीज भी अपनी नहीं
है । केवल परमात्मा अपने हैं, और कोई अपना नहीं है । दूसरोंको अपना समझनेसे बहुत धोखा, विश्वासघात होता है ! इसलिये रात-दिन भगवान्से कहते
रहो कि ‘हे मेरे नाथ ! मैं आपको भूलूँ नहीं’ । मेरा आप सबसे यही
कहना है कि एक भगवान्की तरफ ख्याल रखो । केवल भगवान् ही अपने
हैं और हरदम अपने साथ रहते हैं । नरकमें जाओ तो भी वे साथ हैं, स्वर्गमें जाओ तो भी साथ हैं, चौरासी लाख योनियोंमें
जाओ तो भी साथ हैं ! ऐसा सदा साथ रहनेवाला भगवान्के सिवाय और कोई नहीं है । संसारके साथ जितना सम्बन्ध जोड़ोगे, उतना ही पतन होगा ।
(शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘मैं नहीं, मेरा नहीं’ पुस्तकसे
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