।। श्रीहरिः ।।




आजकी शुभ तिथि–
     माघ कृष्ण एकादशी, वि.सं.-२०७४, शुक्रवार
              षट्तिला एकादशी-व्रत (सबका)  
मैं नहीं, मेरा नहीं 


(गत ब्लॉगसे आगेका)

मेरे मनमें आती है कि आप इस बातको पकड़ लें कि ‘हम भगवान्के हैं’ । जैसे अपनी माँ दीखती है, ऐसे ही मनमें दीखना चाहिये कि मेरी माँ भगवान् हैं !

                  त्वमेव माता च पिता त्वमेव
                                  त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव ।
                  त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव
                                  त्वमेव  सर्वं  मम  देव देव ॥

भगवान्का नाता विलक्षण है ! संसारके नाते कई कर लिये, पर कोई टिकेगा नहीं । भगवान्का सम्बन्ध कभी मिटेगा नहीं । भगवान् मेरे माँ-बाप हैंयह मानना बड़ा सुगम है । ऐसा मानकर सब जगह निःशंक, निधड़क रहो । आपको यह बात दीखती होगी कि स्वामीजी रोजाना-रोजाना यही बात कहते हैं, पर रोजाना कहनेपर भी आप नहीं मानते तो फिर कैसे मानोगे ! माँ होकर भगवान् सदा साथ रहते हैंयह बात भी याद रखनेकी है ! वे सब प्राणियोंके हृदयमें रहते हैं ।

सिवाय भगवान्के कोई हमारा नहीं है । सेवा करनेके लिये सब हमारे हैं, पर हमारा कोई नहीं है । ‘मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई’यह बात हृदयमें पकड़ लेनेकी है । जिसमें आपका स्नेह हो, उसकी सेवा करो, पर उससे कुछ भी चाहो मत । सेवा करनेसे कर्जा उतर जाता है । किसी मरे हुए आदमीकी विशेष याद आती है तो उसका अर्थ यह हुआ कि उससे जितना सुख लिया है, उतना उसको सुख दिया नहीं । उस सुखका कर्जा है । कर्जा रहनेसे उसकी याद आती है । इसलिये यह बात सदा ही याद रखो, सबकी सेवा करो और कुछ चाहो मत । शान्ति मिल जायगी ।

अगर आप आध्यात्मिक उन्नति, तत्त्वज्ञान, मुक्ति चाहते हो तो गीता ‘साधक-संजीवनी’ का सातवाँ और नवाँ अध्याय जरूर पढ़ना चाहिये । इनमें आध्यात्मिक उन्नतिके लिये बहुत लाभकी बातें आयी हैं ! सातवाँ अध्याय प्रेमपूर्वक पढ़कर उसके अनुसार आचरण करे तो कल्याण हो जायगा । ‘परिशिष्ट’ में बहुत ज्यादा अच्छी बातें आयी हैं । गीतामें ज्यों-ज्यों गहरा उतरते हैं, त्यों-त्यों नयी-नयी विलक्षण बातें मिलती हैं ।


अगर आप ध्यान दें तो ‘सब जग ईस्वररूप है’यह साफ दीखेगा । कारण कि जब अपरा प्रकृति अर्थात् पृथ्वी, जल, तेज, वायु, आकाश आदि भगवान्का स्वरूप है तो भगवान्के सिवाय क्या बाकी रहा ? जो मिलने और बिछुड़नेवाला होता है, वह अपना नहीं होतायह एक बात भी इतनी विलक्षण है कि इसकी जितनी महिमा कही जाय, उतनी थोड़ी है ! संसारकी मात्र वस्तु ऐसी ही है । इसलिये अनन्त ब्रह्माण्डोमें तिल-जितनी चीज भी अपनी नहीं है । केवल परमात्मा अपने हैं, और कोई अपना नहीं है । दूसरोंको अपना समझनेसे बहुत धोखा, विश्वासघात होता है ! इसलिये रात-दिन भगवान्से कहते रहो कि ‘हे मेरे नाथ ! मैं आपको भूलूँ नहीं’ । मेरा आप सबसे यही कहना है कि एक भगवान्की तरफ ख्याल रखो । केवल भगवान् ही अपने हैं और हरदम अपने साथ रहते हैं । नरकमें जाओ तो भी वे साथ हैं, स्वर्गमें जाओ तो भी साथ हैं, चौरासी लाख योनियोंमें जाओ तो भी साथ हैं ! ऐसा सदा साथ रहनेवाला भगवान्के सिवाय और कोई नहीं है । संसारके साथ जितना सम्बन्ध जोड़ोगे, उतना ही पतन होगा ।

  (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘मैं नहींमेरा नहीं’ पुस्तकसे