।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि–
  फाल्गुन कृष्ण एकादशी, वि.सं.-२०७४, रविवार
विजया एकादशी-व्रत (सबका)
मैं नहीं, मेरा नहीं 


(गत ब्लॉगसे आगेका)

श्रोतास्वर्ग-नरक यहींपर हैं या और भी स्वर्ग-नरक हैं ?

स्वामीजीस्वर्ग-नरक यहाँ भी हैं और दूसरी जगह भी हैं, दोनों बातें हैं । दूसरी जगह जो स्वर्ग हैं, उनमें यहाँसे ज्यादा सुख है और जो नरक हैं, उनमें यहाँसे ज्यादा दुःख है ! अनेक प्रकारके नरकोमें तरह-तरहकी बहुत भयंकर यातनाएँ दी जाती हैं ।

आपका स्वरूप हैसत्ता अर्थात् होनापन, जिसको ‘है’ भी कहते हैं । वह सत्ता सब जगह है । उसको शरीरमें आपने माना है । आपका स्वरूप असंग है‘असङ्गो ह्ययं पुरुषः’ (बृहदारण्यक ४ । ३ । १५) । संग आपने किया है । इस बातको शास्त्रमें दो तरहसे बताया हैईश्वरकृत सृष्टि और जीवकृत सृष्टि । ईश्वरकृत सृष्टि बाधक नहीं है, किसीको बाँधती नहीं है । ईश्वरकृत सृष्टिमें मैं-मेरापनका सम्बन्ध करना जीवकृत सृष्टि है, जिससे जीव बँधता है । कई लोग कहते हैं कि भगवान्ने हमारेको दुःख दे दिया । परन्तु भगवान्के खजानेमें दुःख है ही नहीं, फिर तुम्हारेको दुःख कहाँसे दे दिया ? दुःख आपका ही माना हुआ है । आपने ही मनचाही होनेपर सुख मान लिया और मनचाही न होनेपर दुःख मान लिया ।

हम ईश्वरके अंश हैंयह सदा याद रखो । हमारे असली माँ-बाप ईश्वर हैं । आपका सम्बन्ध, अपनापन ईश्वरके साथ है । आप ईश्वरके हैं, ईश्वर आपका है । आप संसारमात्रसे बिल्कुल निर्लेप हैं । शरीर तो ईश्वरकृत है, पर उससे अपना सम्बन्ध जोड़ना जीवकृत है । यह जीवकृत सम्बन्ध ही बाँधनेवाला है । अगर आप सम्बन्ध न जोड़े तो कभी बन्धन होगा ही नहीं । आपका सम्बन्ध केवल ईश्वरके साथ है । आप जानें तो है, न जानें तो है, मानें तो है, न मानें तो है, आप स्वीकार करें तो है, स्वीकार न करें तो है, ईश्वरका सम्बन्ध सदा है ।


आप विचार करें कि सदा आपके साथ रहनेवाला कौन है ? क्या माँ साथ रहेगी ? क्या पिता साथ रहेंगे ? क्या भाई साथ रहेंगे ? क्या स्त्री साथ रहेगी ? क्या बेटा साथ रहेगा ? रह सकते ही नहीं । रहनेकी ताकत ही नहीं है ! अतः ये अपने नहीं हैं, हम इनके नहीं हैं । इसलिये मीराबाईने सच्ची बात कह दी‘मेरे तो गिरधर गोपाल, दूसरो न कोई’ । परदेमें रहनेवाली मीराबाई अकेली वृन्दावन और द्वारका चली गयी ! कोई भय नहीं लगा ! शरीर मेरा नहीं है और भगवान् मेरे हैंये दो ही बातें हैं । दूसरोंकी सेवा कर दो । सेवा करनेका मौका केवल मनुष्यशरीरमें ही मिलता है । आपके पास जो सामग्री है, वह सुख भोगनेके लिये नहीं है, प्रत्युत सेवा करनेके लिये है ।

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘मैं नहींमेरा नहीं’ पुस्तकसे