(गत ब्लॉगसे आगेका)
श्रोता‒स्वर्ग-नरक यहींपर
हैं या और भी स्वर्ग-नरक हैं ?
स्वामीजी‒स्वर्ग-नरक यहाँ भी हैं और
दूसरी जगह भी हैं, दोनों बातें हैं । दूसरी जगह जो स्वर्ग हैं,
उनमें यहाँसे ज्यादा सुख है और जो नरक हैं, उनमें
यहाँसे ज्यादा दुःख है ! अनेक प्रकारके नरकोमें तरह-तरहकी बहुत भयंकर यातनाएँ दी जाती हैं ।
आपका स्वरूप है‒सत्ता अर्थात् होनापन, जिसको ‘है’ भी कहते हैं । वह सत्ता सब जगह है । उसको शरीरमें आपने माना है
। आपका स्वरूप असंग है‒‘असङ्गो ह्ययं पुरुषः’ (बृहदारण्यक॰ ४ । ३ । १५) । संग आपने किया है । इस बातको शास्त्रमें
दो तरहसे बताया है‒ईश्वरकृत सृष्टि और जीवकृत सृष्टि । ईश्वरकृत
सृष्टि बाधक नहीं है, किसीको बाँधती नहीं है । ईश्वरकृत सृष्टिमें
मैं-मेरापनका सम्बन्ध करना जीवकृत सृष्टि है, जिससे जीव बँधता है । कई लोग कहते हैं कि भगवान्ने हमारेको
दुःख दे दिया । परन्तु भगवान्के खजानेमें दुःख है ही नहीं,
फिर तुम्हारेको दुःख कहाँसे दे दिया ? दुःख आपका
ही माना हुआ है । आपने ही मनचाही होनेपर सुख मान लिया और मनचाही न होनेपर दुःख मान
लिया ।
हम ईश्वरके अंश हैं‒यह सदा याद रखो । हमारे असली माँ-बाप ईश्वर हैं । आपका सम्बन्ध, अपनापन ईश्वरके साथ है
। आप ईश्वरके हैं, ईश्वर आपका है । आप संसारमात्रसे बिल्कुल निर्लेप
हैं । शरीर तो ईश्वरकृत है, पर उससे अपना सम्बन्ध जोड़ना जीवकृत
है । यह जीवकृत सम्बन्ध ही बाँधनेवाला है । अगर आप सम्बन्ध न जोड़े तो कभी बन्धन होगा
ही नहीं । आपका सम्बन्ध केवल ईश्वरके साथ है । आप जानें तो है, न जानें तो है, मानें तो है, न
मानें तो है, आप स्वीकार करें तो है, स्वीकार
न करें तो है, ईश्वरका सम्बन्ध सदा है ।
आप विचार करें कि सदा आपके साथ रहनेवाला कौन है ? क्या माँ साथ रहेगी
? क्या पिता साथ रहेंगे ? क्या भाई साथ
रहेंगे ? क्या स्त्री साथ रहेगी ? क्या
बेटा साथ रहेगा ? रह सकते ही नहीं । रहनेकी ताकत ही नहीं है !
अतः ये अपने नहीं हैं, हम इनके नहीं हैं । इसलिये
मीराबाईने सच्ची बात कह दी‒‘मेरे तो गिरधर
गोपाल, दूसरो न कोई’ । परदेमें रहनेवाली मीराबाई अकेली वृन्दावन
और द्वारका चली गयी ! कोई भय नहीं लगा ! शरीर मेरा नहीं है और भगवान् मेरे हैं‒ये दो ही बातें
हैं । दूसरोंकी सेवा कर दो । सेवा करनेका मौका केवल मनुष्यशरीरमें ही मिलता है । आपके
पास जो सामग्री है, वह सुख भोगनेके लिये नहीं है, प्रत्युत सेवा करनेके लिये है ।
(शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘मैं नहीं, मेरा नहीं’ पुस्तकसे
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