।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि–
  फाल्गुन कृष्ण द्वादशी, वि.सं.-२०७४, सोमवार
मैं नहीं, मेरा नहीं 


(गत ब्लॉगसे आगेका)

मैं अभ्यास करनेका निषेध नहीं करता, पर अभ्याससे तत्त्वकी प्राप्ति हो जायगी, तत्त्वज्ञान हो जायगायह नहीं मानता; क्योंकि अभ्यास करोगे तो जड़ताकी सहायता लेनी ही पड़ेगी । जड़ताके द्वारा चिन्मयताकी प्राप्ति कैसे होगी ? जड़ताके त्यागसे चिन्मयताकी प्राप्ति होगी । जड़ताका सर्वथा त्याग कर दिया जाय तो चेतनके सिवाय क्या रहेगा ?

संसारकी प्राप्तिमें क्रिया और पदार्थकी प्रधानता है । परमात्माकी प्राप्तिमें शरणागति और निष्क्रियताकी प्रधानता है । जो सब जगह परिपूर्ण है, उसको क्रियासे कैसे प्राप्त करोगे, बताओ ? आप जहाँ हैं, वहाँ पूर्ण परमात्मा हैं । क्रियासे प्राप्ति उसकी होती है, जो देश, काल, वस्तु आदिसे दूर हो । परन्तु मैं आपलोगोंको क्रियाका त्याग करनेके लिये नहीं कहता; क्योंकि आपके भीतर ‘करने’ का भाव, संस्कार रहता है । ‘करने’ का भाव रहनेसे कुछ नहीं करो तो भी करना है और करो तो भी करना है !

अगर साधक यह बात भी स्वीकार कर ले कि जो मिलता है और बिछुडता है, वह अपना नहीं है, तो उसको तत्त्वज्ञान हो जायगा, मुक्ति हो जायगी, कल्याण हो जायगा ! अपने परमात्मा हैं, जो सदासे मिले हुए हैं और कभी बिछुडेंगे नहीं । इसलिये उनकी प्राप्तिके लिये क्रिया करना मुख्य नहीं है । हम परमात्माको अपनेसे दूर मानते हैंइस मान्यताको हटानेके लिये क्रिया है ।

श्रोताजब क्रियासे परमात्माकी प्राप्ति नहीं होती, तो फिर आप क्रिया छोड़नेके लिये मना क्यों करते हैं ?

स्वामीजीमनुष्य कुछ करेगा ही नहीं तो आलस्यमें, प्रमादमें, नींदमें समय खराब करेगा ! इसलिये क्रिया छोड़नेके लिये मना करता हूँ । सांसारिक भोगोंकी रुचि, रुपयोंकी चाहना, संसारका आश्रय दूर करनेके लिये अभ्यास करो ।

मुख्य दो ही बात हैप्राप्तकी ही प्राप्ति करनी है और अप्राप्तका ही त्याग करना है । संसार अप्राप्त है; क्योंकि संसार अभीतक कभी किसीको मिला नहीं ! वस्तुके मिलनेकी पहचान यह है कि मिलनेके बाद फिर मिलनेकी इच्छा मिट जाती है, आदमी तृप्त हो जाता है । फिर मिलना कुछ बाकी नहीं रहता । जैसे, बालक रोता है, पर जब माँ मिल जाती है, तब वह माँके साथ चिपट जाता है, उसका रोना मिट जाता है ।


मनुष्यजन्म केवल परमात्माकी प्राप्तिके लिये मिला है । केवल आपकी इच्छा चाहिये । इच्छा जोरदार हो जायगी, दूसरी कोई इच्छा नहीं रहेगी तो परमात्मप्राप्ति हो जायगी । दूसरी इच्छाओंको मिटानेका अभ्यास करो । मनमें किंचिन्मात्र भी कोई चाहना न रहे । जीनेकी भी चाहना रहेगी तो परमात्माकी प्राप्ति नहीं होगी । एक मार्मिक बात है कि चाहनामात्रसे परमात्मा मिलते हैं, पर चाहनामात्रसे सांसारिक चीज नहीं मिलती । सांसारिक वस्तुकी प्राप्तिमें तो प्रारब्ध है, पर परमात्माकी प्राप्तिमें प्रारब्ध है ही नहीं ।

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘मैं नहींमेरा नहीं’ पुस्तकसे