।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि–
  फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी, वि.सं.-२०७४, बुधवार
मैं नहीं, मेरा नहीं 


(गत ब्लॉगसे आगेका)

श्रोताआप कहते हैं कि किसीको बुरा समझें, यह बात समझमें नहीं आयी; क्योंकि किसीको बुराई करते हुए देखते हैं तो हमारे मनमें उसके प्रति बुरा भाव जाता है !


स्वामीजीवह बुरा नहीं है, भगवान् कलियुगकी लीला कर रहे हैं । आप बताओ, भगवान् कलियुगकी लीला कैसे करें ?

श्रोताअन्यायका प्रतिकार करना चाहिये या नहीं ?

स्वामीजीअन्यायका प्रतिकार अवश्य करना चाहिये । परन्तु अन्यायका प्रतिकार करते हुए भी भीतरमें दूसरेके हितका भाव पक्का रहना चाहिये । अन्याय आगन्तुक चीज है, मूलमें नहीं है ।

श्रोताहमने अपनी ओरसे किसीको कष्ट नहीं दिया, पर दूसरेको दुःख हो गया तो हमें क्या करना चाहिये ?

स्वामीजीहाथ जोड़कर माफी माँग लो । अपना कोई कसूर न हो तो भी माफी माँगनेमें कोई हर्ज नहीं । इससे आपकी बड़ी शुद्धि होगी, निर्मलता होगी । इसमें संकोच नहीं करना ।

खास बात है कि संसारमें हमारा कुछ भी नहीं है.......कुछ भी नहीं है.......कुछ भी नहीं है ! परन्तु लोग सांसारिक वस्तुओं-व्यक्तियोंमे अपनापन छोड़ते नहीं, छोड़ना चाहते भी नहीं ! भीतरसे असली चाहना बहुत कम आदमियोंकी है ! सुनना एक व्यापार-सा समझ रखा है । इतना भी अच्छा है ! कुछ न करनेकी अपेक्षा कुछ करना अच्छा है‘अकरणात् मन्दकरणं श्रेयः’ । भीतरसे छूटनेकी परवाह ही नहीं है ! परवाह हो तो भगवान्को पुकारो ‘हे नाथ ! हे मेरे नाथ ! हे मेरे प्रभो ! हे मेरे स्वामिन् !’ भगवान्की कृपासे ही ठीक होगा । हम तो इतना भी अच्छा समझते हैं, बहुत बड़ी बात समझते हैं कि आप सत्संगमें आकर बैठ गये ! सज्जनो ! समय बीत जायगा, काम बनेगा नहीं ! सावधान हो जाओ । अपने भीतर लगन लगाओ और इसके लिये भगवान्से प्रार्थना करो कि ‘हे नाथ ! हे मेरे स्वामिन् ! आपमें सच्चे हृदयसे लग जायँ’ ।


   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘मैं नहींमेरा नहीं’ पुस्तकसे