।। श्रीहरिः ।।



आजकी शुभ तिथि–
अधिक ज्येष्ठ कृष्ण द्वितीया, 
                 वि.सं.-२०७५, गुरुवार
 अनन्तकी ओर     


आप किसीके चेला बन जाओ तो कुछ फर्क नहीं पड़ेगा, पर भगवान्‌के हो जाओ तो आपका जीवन शुद्ध, निर्मल हो जायगा । आप इतने पवित्र हो जाओगे कि आपके दर्शनोंसे लोग पवित्र हो जायँगे ! आपका सम्बन्ध, आपके वचन, आपकी हवा पवित्र करनेवाली हो जायगी ! युधिष्ठिरजी महात्मा विदुरजीसे कहते हैं‒

भवद्विधा  भागवतास्तीर्थभूताः  स्वयं विभो ।
 तीर्थिकुर्वन्ति तीर्थानि स्वान्तःस्थेन गदाभृता ॥
                                     (श्रीमद्भा १ । १३ । १०)

प्रभो ! आप-जैसे भगवान्‌के प्यारे भक्त स्वयं ही तीर्थस्वरूप होते हैं । आपलोग अपने हृदयमें विराजमान भगवान्‌के प्रभावसे तीर्थोंको भी महातीर्थ बनाते हुए विचरण करते हैं ।’

भक्तोंके चरण-स्पर्शसे अतीर्थ भी तीर्थ हो जाते हैं ! लोगोंके पाप दूर करते-करते तीर्थ कलुषित हो जाते हैं, पर भक्तोंके चरण-स्पर्शसे वे भी पवित्र हो जाते हैं ।

चेला बननेसे आप पवित्र नहीं होओगे, पर भगवान्‌के हो जानेसे आप पवित्र हो जाओगे । भगवान्‌के तो आप पहलेसे हो ही, केवल आपको स्वीकार करना है । आप भगवान्‌के हो जाओ‒यह असली चीज है । आप गुरुके हो जाओ‒यह बनावटी चीज है । आप बनावटी चीजको मानकर असली चीजका तिरस्कार कर रहे हो ! भगवान्‌ने तो आपको अपना मान ही रखा है, आप भी आज स्वीकार कर लो कि हम भगवान्‌के हैं ।

श्रोता‒स्वरूपका बोध कैसे हो ?

स्वामीजी‒जो स्वरूप नहीं है, उसका त्याग कर दो तो स्वरूपका बोध हो जायगा । जड़ताका त्याग होनेपर स्वरूप-बोध हो ही जाता है । कम-से-कम हे नाथ ! मैं आपको भूलूँ नहीं’इसकी भीतरसे रटन लगा दो । स्वरूपका बोध, परमात्मतत्त्वका ज्ञान, जीवन्मुक्ति आदि सब हो जायँगे ! आप करके देखो, बहुत लाभ होगा । जब नींद खुले, तबसे लेकर जब गाढ़ नींद आ जाय, तबतक हे नाथ ! मैं आपको भूलूँ नहीं’यह कहते ही रहो ।

श्रोता‒हम भगवान्‌से दूर क्यों हुए ?

स्वामीजी‒भगवान् अविनाशी हैं, संसार नाशवान् है । आप अविनाशीको छोड़कर नाशवान् भोग और संग्रहमें लग गये, इसलिये भगवान्‌से दूर हो गये । अगर नाशवान्‌में न लगें तो भगवान्‌की प्राप्ति हो जायगी; नहीं हो तो मेरा कान पकड़ना ! आप नाशवान् चीजोंका आदर छोड़ दें । जिसका संयोग और वियोग होता है, जो मिलती और बिछुडती है, वह चीज आपकी होती ही नहीं । उसको आपने अपना मान लिया, इसीलिये भगवान्‌से अलग हो गये ।


सर्वसमर्थ भगवान्‌में भी यह सामर्थ्य नहीं है कि आपसे अलग हो जायँ । आप ही भगवान्‌से विमुख हुए हैं ।

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।। श्रीहरिः ।।



आजकी शुभ तिथि–
अधिक ज्येष्ठ कृष्ण प्रतिपदा, 
                 वि.सं.-२०७५, बुधवार
 अनन्तकी ओर     


मनुष्यमें जो सेवा करनेकी, सबको सुख पहुँचानेकी शक्ति है, वह देवताओंमें भी नहीं है । वह मनुष्योंको भी तृप्त करता है और भगवान्‌को भी तृप्त करता है, उनकी भी भूख मिटाता है ! भगवान् प्रेमभावके भूखे हैं । इसलिये भगवान्‌के दरबारमें ऊँचे-से-ऊँचे मनुष्य हैं ! मनुष्यमें यह शक्ति भी भगवान्‌की दी हुई है, उसकी खुदकी नहीं है । मनुष्यको शक्ति देकर भगवान् खुद छोटे बन जाते हैं‒मैं तो हूँ भगतन को दास, भगत मेरे मुकुटमणि’ ! परन्तु भक्त अपनेको बड़ा नहीं मानता । भक्त भगवान्‌का भक्त होता है और भगवान् भक्तके भक्त होते हैं ! भगवान् भक्तभक्तिमान्’ हैं‒‘एवं स्वभक्तयो राजन् भगवान् भक्तभक्तिमान्’ (श्रीमद्भा १० । ८६ । ५९) । हरेक आदमी दूसरेको चेला बनाता है, पर भगवान् गुरु बनाते हैं ! यह भगवान्‌की उदारता है कि दूसरेको सब कुछ देकर भी उसे अपने अधीन नहीं बनाते, प्रत्युत मालिक बनाते हैं ।

भगवान् कहते हैं कि भक्त ऊँचे हैं, भक्तोंकी भक्ति करो, उनकी शरणमें जाओ और भक्त कहते हैं कि भगवान्‌की शरणमें जाओ, पर भीतरसे दोनों एक हैं ! यह ठगाईकी रीति है ! भीतरसे दोनों एक हैं, पर बाहरसे दूकानें दो हैं । वह कहता है कि उस दूकानमें जाओ, वह दूकान अच्छी है और यह कहता है कि उस दूकानमें जाओ, वह दूकान अच्छी है ! भीतरसे दोनों दूकानें अपनी हैं !

जैसे माँको बच्‍चा प्यारा होता है, ऐसे ही भगवान्‌को भक्त बड़ा प्यारा होता है । भक्तको देखकर भगवान् प्रसन्न होते हैं ! वे भक्तको छिप-छिपकर देखते हैं ‒प्रभु देखैं तरू ओट लुकाई’ (मानस, अरण्य १० । ७) ! दुनियाको आनन्द भगवान् देते हैं, पर भगवान्‌को आनन्द भक्त देता है !

परमात्माकी प्राप्ति चाहनेवालोंके लिये बहुत ही सुगम मार्ग है कि हम जो भी काम कर रहे हैं, भगवान्‌का काम कर रहे हैं । भगवान् कहते हैं‒

यत्करोषि यदश्नासि यज्‍जुहोषि ददासि यत् ।
 यत्तपस्यसि कौन्तेय तत्कुरुष्‍व मदर्पणम् ॥
 शुभाशुभफलैरेवं मोक्ष्यसे कर्मबन्धनैः ।
 सन्न्यासयोगयुक्तात्मा विमुक्तो मामुपैष्यसि ॥
                                             (गीता ९ । २७-२८)

हे कुन्तीपुत्र ! तू जो कुछ करता है, जो कुछ भोजन करता है, जो कुछ यज्ञ करता है, जो कुछ दान देता है और जो कुछ तप करता है, वह सब मेरे अर्पण कर दे । इस प्रकार मेरे अर्पण करनेसे कर्मबन्धनसे और शुभ (विहित) और अशुभ (निषिद्ध) सम्पूर्ण कर्मोंके फलोंसे तू मुक्त हो जायगा । ऐसे अपने-सहित सब कुछ मेरे अर्पण करनेवाला और सबसे सर्वथा मुक्त हुआ तू मुझे ही प्राप्त हो जायगा ।’


भगवान्‌का काम करते ही आपकी अशुद्धि चली जायगी और शुद्धि आ जायगी । आप स्वतः-स्वाभाविक पवित्र हो जाओगे । आपके द्वारा कोई निषिद्ध काम नहीं होगा । आपका हरेक काम भजन हो जायगा । मैं भगवान्‌का हूँ और भगवान्‌का काम करता हूँ‒यह ध्यानसे भी ऊँची चीज है ! कारण कि यह करणनिरपेक्ष है । ध्यानमें मन लगाते हैं, इसलिये वह करणसापेक्ष है । करणसापेक्षवाला साधक योगभ्रष्‍ट हो सकता है, पर करणनिरपेक्षवाला साधक योगभ्रष्‍ट नहीं हो सकता । हमारा मन भगवान्‌में लगा तो हमारे और भगवान्‌के बीचमें मन आ गया ! हमारा भगवान्‌के साथ सीधा सम्बन्ध हो तो यह करणनिरपेक्ष है, पर बीचमें मन-बुद्धि आ जायँगे तो यह करणसापेक्ष हो जायगा ।

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।। श्रीहरिः ।।



आजकी शुभ तिथि–
अधिक ज्येष्ठ पूर्णिमा, वि.सं.-२०७५, मगलवार
 अनन्तकी ओर     


अभ्याससे राग-द्वेष नहीं मिटते । अभ्यास करनेसे फायदा तो होगा, पर सीमित फायदा होगा । अभ्यास न करके अपने स्वार्थका त्याग तथा दूसरेके हितका भाव होगा तो राग-द्वेष मिट जायँगे । अभ्यासमें वस्तुओंकी आवश्यकता होती है । वस्तुओंकी आवश्यकता होनेसे राग होता है । परन्तु किसीके भी अहितका भाव न होनेमें वस्तुओंकी आवश्यकता नहीं होती ।

रचना अपने रचयिताको नहीं जान सकती । सबके रचयिता परमात्माको न जाननेके कारण आज लोगोंमें यह वहम हो गया है कि हम जो करते हैं, ठीक करते हैं । परमात्मामें अपार, असीम शक्ति है । संसारका सब कार्य ठीक करनेके लिये ब्रह्मा, विष्णु और महेश‒तीनोंकी रचना की गयी है । इतनेपर भी चिन्ता करते हैं कि मनुष्य ज्यादा हो जायँगे, कम करो ! यह (परिवार-नियोजन) मनुष्यका कर्तव्य ही नहीं है । यह मनुष्यकी अनधिकार चेष्टा है । परिवार-नियोजनकी बात किसी इतिहासमें नहीं आती । क्या बुद्धिमान् आदमी अभी पैदा हुए हैं । क्या पहले कोई बुद्धिमान् पैदा ही नहीं हुआ ? गायोंको मार देना और मनुष्योंको पैदा नहीं होने देना‒यह बड़ा भारी अन्याय है ! इसका नतीजा बहुत बुरा होगा ! मैं भविष्यको जानता नहीं हूँ, पर चाल ऐसी दीखती है कि बहुत अहित होगा, मारकाट होगी ! शान्तिसे रह नहीं सकोगे ! बड़ी दुर्दशा होगी !

लोगोंकी प्रवृत्ति पाप करनेकी तरफ जोरोंसे हो रही है । मातृशक्तिका सबसे अधिक आदर होना चाहिये, पर आज इसका महान् तिरस्कार हो रहा है । लड़कियोंको जन्मने ही नहीं देते ! लड़कियाँ नहीं होंगी तो विवाह किससे होगा ? सृष्टि कैसे चलेगी ? सन्तान नहीं चाहते हो तो संयम रखो । संयम न रखकर शरीरका भी नाश कर रहे हो । लड़के-लड़कियोंके भीतर ऐसी भावना हो गयी है कि पहले पाँच-सात वर्षतक भोग भोग लो, पीछे सन्तान पैदा हो । परन्तु पीछे होनेवाली सन्तान कमजोर होगी । पहले होनेवाली सन्तान बलवान् होती है । पीछे होनेवाली सन्तान नाश करनेवाली होगी । उनमें बुद्धि तेज नहीं होगी । वृक्षोंमें पहले बड़े-बड़े फल लगते हैं । फिर वह ज्यों पुराना होता है, त्यों फल भी कमजोर, छोटे-छोटे लगने लगते हैं ।


भगवान्‌को याद करो, भगवान्‌का भजन करो, जिससे आपकी बुद्धि शुद्ध हो जाय । बुद्धि शुद्ध, निर्मल होगी तो आपके हृदयमें अच्छी बातें पैदा होंगी । अच्छी बातोंकी तरफ आपका ध्यान जायगा । संसारमें रचे-पचे आदमियोंकी बुद्धि शुद्ध नहीं होती । भोगोंमें लगे हुए आदमियोंकी बुद्धि मारी जाती है । इसलिये हर समय भगवान्‌को हे नाथ ! हे नाथ !’ पुकारो । चलते-फिरते, उठते-बैठते भगवान्‌को याद करो । हरिस्मृतिः सर्वविपद्विमोक्षणम्’ (श्रीमद्भा ८ । १० । ५५)‒भगवान्‌को याद करनेसे सम्पूर्ण विपत्तियोंका नाश होता है, सब पाप नष्ट होते हैं, सब विलक्षण दैवी शक्तियाँ पैदा होती हैं ! भगवान्‌की विस्मृति महान् पतन करनेवाली है ।

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