।। श्रीहरिः ।।



आजकी शुभ तिथि–
शुद्ध ज्येष्ठ अमावस्या, वि.सं.-२०७५, मंगलवार
भौमवती अमावस्या
 अनन्तकी ओर     



संसारका जो सुख आप चाहते हो, उस सुखमें दुःख-ही-दुःख भरा हुआ है । उस सुखको आप छोड़ते नहीं, दुःख आपको छोड़ता नहीं । विषभरे लड्डुओंको आप छोड़ते नहीं, विष आपको छोड़ता नहीं ! जो दूसरोंके सुखसे सुखी होता है, उसका दुःख मिट जाता है । परन्तु जो अपना सुख चाहता है, वह उतना ही दुःख भोगता है ।

परिवार-नियोजन, गर्भपात, नसबन्दी आदि सब शास्‍त्र-विरुद्ध, प्रकृति-विरुद्ध काम हो रहे हैं । इनसे प्रकृति कुपित हो रही है । सभी जीव-जन्तुओंको मारने-ही-मारनेकी तरफ दृष्टि हो रही है ! मनुष्योंको मार सकते नहीं, इसलिये उनको जन्मने ही मत दोयह दृष्टि हो रही है ! खेतोंमें जहरका छिड़काव करते हैं कि अन्न बहुत पैदा होगा । जीव तो मर जायँगे, पर उस अन्नको खानेवालोंकी क्या दशा होगीयह सोचते ही नहीं ! परिणाममें सब जगह जहर-ही-जहर फैल रहा है । नदियोंका जल दूषित हो गया है । अन्न और जल भी जहरीले हो गये हैं । घास भी जहरीली हो गयी हे ? जानवरोंका मांस भी जहरीला हो गया है । इस कारण गीध भी बहुत कम हो गये हैं । इतना ही नहीं, माँके दूधमें भी जहर आ गया है ! अन्न, जल और हवातीनोंमे जहर फैल रहा है । इसका नतीजा यह होगा कि जीना मुश्किल हो जायगा ! उल्टे कर्मोंका फल सुल्टा नहीं मिलेगा....नहीं मिलेगा....नहीं मिलेगा ! दुःख पा रहे हैं, कष्ट उठा रहे हैं, फिर भी प्रचार जहरका ही कर रहे हैं ! परिवार-नियोजनको बड़ा आवश्यक मानते हैं, पर इसका परिणाम देखना ! सन्ताप होगा, आफत आयेगी, दुःख पाना पड़ेगा, रोना पड़ेगा ! घरोंमें लड़ाइयाँ होंगी, आपसमें कलह होगी । हम भविष्यको जानते नहीं हैं, पर चाल ऐसी है कि आपसमें बड़ी भारी मारकाट होगी !!

जिन लोगोंने भजन-स्मरण किया है, आध्यात्मिक विचार किया है, उनको शान्ति मिली है । उनमें भी दुःख आता है तो दुःख दूर करनेके लिये दुःख आता है । उसका परिणाम अच्छा होगा, उनको शान्ति मिलेगी । पहले जो उल्टा काम किया है, उसका फल दुःख मिलेगा । अब आप सुल्टा काम करो, धर्मका पालन करो, पुण्यकर्म करो, भजन-स्मरण करो । आप कहोगे कि यह हमारे भाग्यमें नहीं है तो यह भाग्यसे नहीं होता, प्रत्युत करनेसे होता है; क्योंकि यह नया कर्म है । भाग्यसे रोटी मिलेगी, धन मिलेगा, भोग मिलेगा ।


मनुष्योंका प्रायः यह भाव रहता है कि हमारे अनुकूल परिस्थिति बन जाय, प्रतिकूल परिस्थिति न रहे । जो होता है, वह प्रारब्धके अनुसार ही होता है । प्रारब्धसे इधर-उधर होता ही नहीं । आप कितना ही उद्योग करें, जो होनेवाला है, वह होगा हीयह सिद्धान्त है । परन्तु अपना उद्योग कभी छोड़ना नहीं चाहिये । अच्छे कामके लिये अपना उद्योग करते रहना चाहिये, पर चिन्ता नहीं करनी चाहिये । जो होनेवाला है, वैसा ही होगायह जो प्रारब्धकी बात कही जाती है, यह चिन्ता दूर करनेके लिये है, अपना उद्योग छोड़नेके लिये नहीं ।