।। श्रीहरिः ।।



आजकी शुभ तिथि–
अधिक ज्येष्ठ प्रतिपदा, वि.सं.-२०७५, बुधवार
 अनन्तकी ओर     



मनुष्यशरीर मिला है तो सच्‍चे हृदयसे उद्योग करते रहना चाहिये, पर चिन्ता नहीं करनी चाहिये । चिन्तासे होनेवाला दुःख अपनी मूर्खतासे होता है, प्रारब्धसे नहीं । गीताका आरम्भ ही चिन्ता मिटानेकी बातसे हुआ है अशोच्यानन्वशोचस्त्वं..... (गीता २ । ११) । अपना कर्तव्य-कर्म करते रहो, पर चिन्ता मत करो । चिन्ता करनेसे कुछ भी लाभ नहीं होता, आप मुफ्तमें ही दुःख पाते हो ! सब आदमी मिलकर धनकी चिन्ता करें तो क्या एक कौड़ी भी पैदा हो जायगी ? इसलिये प्रारब्धकी बात केवल चिन्ता मिटानेके लिये है, उद्योग न करनेके लिये कभी है ही नहीं.....है ही नहीं.....है ही नहीं ! चिन्ता मिटानेके लिये ही सत्संग है । अगर चिन्ता होती है तो आपने सत्संग ध्यान देकर सुना नहीं ।

करनेमें सावधान और होनेमें प्रसन्नयह छोटी-सी बात आप मान लो तो निहाल हो जाओगे, आपकी चिन्ता मिट जायगी ! इसको लिख लो, याद कर लो । जो होनेवाला है, वह होकर ही रहेगा, फिर चिन्ता करनेसे क्या लाभ ?

सुनहु भरत भावी प्रबल  बिलखि कहेउ मुनिनाथ ।
 हानि लाभु जीवनु मरनु जसु अपजसु बिधि हाथ ॥
                                         (मानस, अयोध्या १७१)

मुनिनाथ वसिष्ठजीने दुःखी होकर कहा कि हे भरत ! सुनो, भावी (होनहार) बड़ी बलवान् है । हानि-लाभ, जीवन-मरण और यश-अपयशये सब विधाताके हाथमें हैं ।

एक वर्ष अकाल पडनेपर क्या किसानलोग खेती करना छोड़ देते हैं ? व्यापारमें घाटा लगनेपर क्या व्यापार करना छोड़ देते हैं ? व्यापारमें इतना ध्यान रखो कि कभी घाटा लगे तो कर्जा न हो । इतना खर्च नहीं करना चाहिये, जिससे सिरपर कर्जा हो जाय । कर्जा बहुत खराब चीज है । रूखी रोटी खा ले, पर कर्जा मत करे । इससे जीवन सुखी रहेगा । परन्तु कर्जा करनेवाला दुःखी होगा ही ।

मनमें हलचल, चिन्ता होना प्रारब्ध नहीं है, प्रत्युत आपकी मूर्खता है । यह मूर्खता सत्संगसे मिटाई जा सकती है । परन्तु प्रारब्ध नहीं मिटेगा, वह तो आयेगा ही । प्रारब्धसे जीवन-निर्वाह होगा, पर थोड़ा दुःख पाना पड़ेगा । काम करोगे तो सुगमतासे जीवन-निर्वाह होगा । प्रारब्धमें होगा तो रोटी जरूर मिलेगी, और प्रारब्धमें नहीं है तो अरबपतिको भी नहीं मिलेगी ! ऐसी बीमारी हो जायगी कि डॉक्टर खाने नहीं देगा ! इसलिये करनेमें सावधान रहो और होनेमें प्रसन्न रहो । जो हो रहा है, वह बहुत ठीक हो रहा है । बेठीक है ही नहीं । उसे बेठीक मानना गलती है ।


आपके पास संसारकी जितनी चीजें हैं, वे ऐश-आराम, शौकीनीके लिये नहीं हैं । उनसे निर्वाह करो और दूसरोंकी सेवा करो । शौकीनी महान् पतन करनेवाली चीज है । उसके लिये धन इकट्ठा करोगे तो महान् दुःख होगा, सन्ताप होगा । धनका खर्च बढ़िया है, धन बढ़िया है ही नहीं ।