।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि–
अधिक ज्येष्ठ अमावस्या, 
                 वि.सं.-२०७५, बुधवार
 अनन्तकी ओर     


श्रोता‒चुप साधन अर्थात् है’ में स्थित होना भगवान्‌के सगुण-साकारके ध्यानसे बढ़कर है क्या ?

स्वामीजी‒मूलमें सगुण और निर्गुण दो चीज नहीं है ।

जो  गुन रहित सगुन  सोइ  कैसें ।
जलु हिम उपल बिलग नहिं जैसें ॥
                                        (मानस, बाल ११६ । १)

जैसे जल और बर्फ दो चीज नहीं है, एक ही चीज है । देखनेमें दोनों अलग-अलग दीखते हैं, पर तत्त्वसे दोनों एक जल ही हैं । ऐसे ही सगुण-निर्गुण तत्त्वसे एक ही हैं । जिसमें आपकी रुचि हो, उसका ध्यान करो ।

मैंने पढ़ाई निर्गुण-निराकारकी की है, इसलिये मेरी स्वाभाविक रुचि साकारकी कम और निराकारकी ज्यादा है, इसलिये मैं निराकारकी बातें ज्यादा कहता हूँ । परन्तु साकार उससे कम नहीं है । जैसे मानना जाननेसे कमजोर नहीं है, ऐसे ही साकार निराकारसे कमजोर नहीं है । हमने माँ-बापको देखा नहीं है, फिर भी उनको मानते हैं तो यह मानना कमजोर नहीं है; क्योंकि अगर माँ-बाप नहीं हैं तो हम कहाँसे आये ?

तत्त्व एक ही है, चाहे उसको निराकार-रूपसे कहो, चाहे साकार-रूपसे कहो । इनमें कोई बढ़िया-घटिया नहीं है । परन्तु ध्यान करनेवालेको एकका ही ध्यान करना चाहिये; क्योंकि दोका ध्यान करनेसे निष्ठा नहीं बनती । कुछ सम्प्रदायोंमें, साधुओंमें यह बात प्रचलित है कि निर्गुण मायारहित है और सगुण मायामय है; परन्तु मैं इस बातको नहीं मानता । यह बात मेरेको बिल्कुल नहीं जँचती ।


मैं परमात्माके तीन रूप मानता हूँ‒सगुण-निराकार, सगुण-साकार और निर्गुण-निराकार । अगर साकार-निराकार’ की दृष्टिसे कहा जाय तो साकार एक ही प्रकारका (सगुण-साकार) है, पर निराकार दो प्रकारका है‒ सगुण-निराकार और निर्गुण-निराकार । अगर सगुण-निर्गुण’ की दृष्टिसे कहा जाय तो सगुण दो प्रकारका है‒ सगुण-साकार और सगुण-निराकार, पर निर्गुण एक ही प्रकारका (निर्गुण-निराकार) है । इनको आप ठीक तरहसे समझ लें, याद कर लें । परमात्माके तीनों रूपोंमें किसीका भी ध्यान करो, कोई भी कम-ज्यादा नहीं है । एक ही तत्त्व साकार भी है, निराकार भी है, सगुण भी है, निर्गुण भी है । यह प्रत्यक्ष दीखनेवाला संसार भी भगवत्स्वरूप ही है‒ ‘वासुदेवः सर्वम्’ (गीता ७ । १९) ।