।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि–
शुद्ध ज्येष्ठ प्रतिपदा, 
                 वि.सं.-२०७५, गुरुवार
 अनन्तकी ओर     


कोई भी साधक हो, सबकी उपासनाएँ सगुण-निराकारसे ही आरम्भ होती हैं । आपको परमात्माके विषयमें यही बात दृढ़ कर लेनी चाहिये कि परमात्मा है’ परमात्मा है’इसका ध्यान मैं बहुत बढ़िया और बहुत सुगम मानता हूँ । राम, कृष्ण आदि साकार-रूपकी उपासना निराकारसे कभी, किसी भी अंशमें कम नहीं है । मैं ऐसा कभी नहीं कहता कि सगुणको छोड़कर निर्गुणकी उपासना करो अथवा निर्गुणको छोड़कर सगुणकी उपासना करो । गीताने सब कुछ परमात्मा ही है’ऐसा जाननेवालेकी बहुत प्रशंसा की है और उसे सबसे दुर्लभ महात्मा कहा है‒‘वासुदेवः सर्वमिति स महात्मा सुदुर्लभः’ (गीता ७ । १९) । केवल निर्गुण अथवा सगुणको माननेवालेको गीता दुर्लभ महात्मा नहीं कहती ।

आप कहते हैं कि मकान है, ईंट है, चूना है, पत्थर है, पशु है, पक्षी है’ आदि, पर मैं एक नयी बात कहता हूँ कि है मकान, है ईंट, है चूना, है पत्थर, है पशु, है पक्षी’ आदि । ऐसा पहले किसी आचार्यने कहा हो, ऐसा देखा नहीं ! पहले एक है’ है । उस है’ के अन्तर्गत सब कुछ है । वह है’ सबका आधार है । उस है’ के अन्तर्गत ही संसारकी उत्पत्ति, स्थिति और प्रलय होता है । हम उस है’ के हैं और वह है’ हमारा है । वह है’ ही ‘मैं’ के कारण हूँ’ हुआ है । हरदम उस है’ की तरफ ख्याल रखो । उस है’ में चुप हो जाओ । यह बहुत बढ़िया साधन है । स्वतः-स्वाभाविक शान्ति मिलेगी । इसमें नींद आना और संसार ज्यादा याद आना‒ये दो (लय और विक्षेप) बड़ी बाधाएँ हैं । संसार याद आना उतना बाधक नहीं है, जितना नींद आना बाधक है । नींद आये तो नामजप, कीर्तन करो । है’ और कीर्तन एक ही है, दो चीज नहीं है । है’ का नाम ही राम और कृष्ण आदि है ।


परमात्माको सगुण, निर्गुण, साकार, निराकार आदि किसी भी रूपसे मानो, ‘है’रूपसे उसकी सत्ता माननी ही पड़ेगी ।