।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि–
भाद्रपद कृष्ण पंचमी, वि.सं.–२०७५, शुक्रवार
                 दुर्गतिसे बचो




जो लोग भगवान्‌के मन्दिरमें रहते हैं; गीता, रामायण, भागवत आदिका पाठ करते हैं; भगवान्‌की आरती, स्तुति, प्रार्थना करते हैं, भगवन्नामका जप करते हैं, पर साथ-ही-साथ लोगोंको ठगते हैं, भगवान्‌की भोग-सामग्री, वस्त्र आदिकी चोरी करते हैं, ठाकुरजीको पैसा कमानेका साधन मानते हैं, ऐसे मनुष्य भी मरनेके बाद भगवदपराधके कारण भूत-प्रेत बन सकते हैं । ये किसीमें प्रविष्ट हो जाते हैं तो उसको दुःख नहीं देते । पूर्वजन्ममें भगवत्पूजा, आरती, स्तुति-प्रार्थना आदि करनेका स्वभाव पड़ा हुआ होनेसे ऐसे भूत-प्रेत भगवन्नामका जप करते हैं, हाथमें गोमुखी रखते हैं, मन्दिरमें जाते हैं, परिक्रमा करते हैं, भगवान्‌की स्तुति-प्रार्थना आदि भी करते हैं । परन्तु किसी मनुष्यमें प्रविष्ट हुए बिना ये भगवान्‌की स्तुति-प्रार्थना नहीं कर सकते । वृन्दावनमें बांकेबिहारीजीके मन्दिरमें एक छोटा बालक आया करता था । वह संस्कृत जानता ही नहीं था, पर बिहारीजीके सामने खड़े होकर वह संस्कृतमें भगवान्‌के स्तोत्रोंका जोर-जोरसे पाठ किया करता था । पाठ करते समय उसकी आवाज भी बालक-जैसी नहीं रहती थी, प्रत्युत बड़े आदमी-जैसी आवाज सुनायी दिया करती थी । कारण यह था कि उसमें एक प्रेत प्रविष्ट होता था और भगवान्‌की स्तुति करता था, पर वह उस बालकको दुःख नहीं देता था । भगवदपराधका फल भोगनेके बाद भगवत्कृपासे ऐसे भूत-प्रेतोंकी सद्‌गति हो जाती है, प्रेतयोनि छूट जाती है ।

जैसे मनुष्योंमें जो अधिक पापी होते हैं, दुर्गुणी-दुराचारी होते हैं, हिंसात्मक कार्य करनेवाले होते हैं, वे भगवान्‌की कथा, कीर्तन, सत्संग आदिमें ठहर नहीं सकते, वहाँसे उठ जाते हैं, ऐसे ही भयंकर पापोंके कारण जो भूत-प्रेतकी नीच योनियोंमें जाते हैं, वे भगवन्नाम-जप, कथा-कीर्तन, सत्संग आदिके नजदीक नहीं आ सकते । जो लोग भगवन्नाम, कथा-कीर्तन, सत्संग आदिका विरोध करते हैं, निन्दा-तिरस्कार करते हैं, वे भी भूत-प्रेत बननेपर कथा-कीर्तन, सत्संग आदिके नजदीक नहीं आ सकते अगर वे कथा-कीर्तन आदिके नजदीक आ जायँ तो उनके शरीरमें दाह होने लगता है ।

अगर पुजारियोंके मनमें सांसारिक वस्तुओंका महत्त्व न हो, प्रत्युत ठाकुरजीका महत्व हो, ठाकुरजीके अर्पित चीजोंमें प्रसादकी भावना हो, भगवान्‌की वस्तु प्रसादरूपसे मिलनेपर वे गद्‌गद हो जाते हों और अपनेको बड़ा भाग्यशाली मानते हों कि हमें भगवान्‌की चीज मिल गयी, प्रसाद मिल गया‒इस तरह वस्तुओंमें भगवान्‌के सम्बन्धका महत्व हो तो भगवान्‌के अर्पित वस्तुओंको स्वीकार करनेपर भी उनको दोष, भगवदपराध नहीं लगता । अन्तःकरणमें भगवान्‌का महत्त्व होनेके कारण वे कभी भूत-प्रेत बन ही नहीं सकते । परन्तु जिनके अन्तःकरणमें वस्तुओंका महत्व है, वस्तुओंकी कामना, ममता, वासना है, वे तीर्थस्थानमें, मन्दिरमें रहनेपर भी मरनेके बाद वासना आदिके कारण भूत-प्रेत हो जाते हैं । उन्होंने क्रियारूपसे भगवान्‌की पूजा, आरती आदि की है, इस कारण वे उस तीर्थ-स्थानमें ही रहते हैं । इस प्रकार उनको भगवदपराधका फल (भूत-प्रेतयोनि) भी मिल जाता है और भगवत्सम्बन्धी क्रियाओंका फल (तीर्थ-स्थानमें निवास) भी मिल जाता है ।

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।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि–
भाद्रपद कृष्ण चतुर्थी, वि.सं.–२०७५, गुरुवार
                 दुर्गतिसे बचो




जो स्त्री पर-पुरुषका चिन्तन करती रहती है तथा जिसकी पुरुषमें बहुत ज्यादा आसक्ति होती है, वह मरनेके बाद ‘चुड़ैल’ बन जाती है । भूत-प्रेतोंका प्रायः यह नियम रहता है कि पुरुष भूत-प्रेत पुरुषोंको ही पकड़ते हैं और स्त्री भूत-प्रेत स्त्रियोंको ही पकड़ते हैं; परन्तु चुड़ैल केवल पुरुषोंको ही पकड़ती है । चुड़ैल दो प्रकारकी होती‒एक तो पुरुषका शोषण करती रहती है अर्थात् उसका खून चूसती रहती है, उसकी शक्ति क्षीण करती है; और दूसरी पुरुषका पोषण करती है, उसको सुख-आराम देती है । ये दोनों ही प्रकारकी चुड़ैलें पुरुषको अपने वशमें रखती हैं ।


एक सिपाही था । वह रातके समय कहींसे अपने घर आ रहा था । रास्तेमें उसने चन्द्रमाके प्रकाशमें एक वृक्षके नीचे एक सुन्दर स्त्री देखी । उसने उस स्त्रीसे बातचीत की तो उस स्त्रीने कहा‒मैं आ जाऊँ क्या ? सिपाहीने कहा‒हाँ, आ जा । सिपाहीके ऐसा कहनेपर वह स्त्री, जो चुड़ैल थी, उसके पीछे आ गयी । अब वह रोज रातमें उस सिपाहीके पास आती, उसके साथ सोती, उसका संग करती और सबेरे चली जाती । इस तरह वह उस सिपाहीका शोषण करने लगी । एक बार रातमें वे दोनों लेट गये, पर बत्ती जलती रह गयी तो सिपाहीने उससे कहा कि तू बत्ती बन्द कर दे । उसने लेटे-लेटे ही अपना हाथ लम्बा करके बत्ती बन्द कर दी । अब सिपाहीको पता लगा कि यह कोई सामान्य स्त्री नहीं है, यह तो चुड़ैल है ! वह बहुत घबराया । चुड़ैलने उसको धमकी दी कि अगर तू किसीको मेरे बारेमें बतायेगा तो मैं तेरेको मार डालूँगी । इस तरह वह रोज रातमें आती और सबेरे चली जाती । सिपाहीका शरीर दिन-प्रतिदिन सूखता जा रहा था । लोग उससे पूछते कि भैया ! तुम इतने क्यों सूखते जा रहे हो ? क्या बात है, बताओ तो सही । परन्तु चुड़ैलके डरके मारे वह किसीको कुछ बताता नहीं था । एक दिन वह दूकानसे दवाई लाने गया । दूकानदारने दवाईकी पुड़िया बाँधकर दे दी । सिपाही उस पुड़ियाको जेबमें डालकर घर चला आया । रातके समय जब वह चुड़ैल आयी, तब वह दूरसे ही खड़े-खड़े बोली कि तेरी जेबमें जो पुड़िया है, उसको निकालकर फेंक दे । सिपाहीको विश्वास हो गया कि इस पुड़ियामें जरूर कुछ करामात है, तभी तो आज यह चुड़ैल मेरे पास नहीं आ रही है ! सिपाहीने उससे कहा कि मैं पुड़िया नहीं फेकूँगा । चुड़ैलने बहुत कहा, पर सिपाहीने उसकी बात मानी नहीं । जब चुड़ैलका उसपर वश नहीं चला, तब वह चली गयी । सिपाहीने जेबमेंसे पुड़ियाको निकालकर देखा तो वह गीताका फटा हुआ पन्ना था ! इस तरह गीताका प्रभाव देखकर वह सिपाही हर समय अपनी जेबमें गीता रखने लगा । वह चुड़ैल फिर कभी उसके पास नहीं आयी ।

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।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि–
भाद्रपद कृष्ण तृतीया, वि.सं.–२०७५, बुधवार
                 दुर्गतिसे बचो




प्रश्न‒कौन-से मनुष्य मरनेके बाद भूत-प्रेत बनते हैं ?

उत्तर‒जिन मनुष्योंका खान-पान अशुद्ध होता है, जिनके आचरण खराब होते हैं, जो दुर्गुण-दुराचारोंमे लगे रहते हैं, जिनका दूसरोंको दुःख देनेका स्वभाव है, जो केवल अपनी ही जिद रखते हैं, ऐसे मनुष्य मरनेके बाद कूर स्वभाववाले भूत-प्रेत बनते हैं । ये जिनमें प्रविष्ट होते हैं, उनको बहुत दुःख देते हैं और मन्त्र आदिसे भी जल्दी नहीं निकलते ।

जिन मनुष्योंका स्वभाव सौम्य है, दूसरोंको दुःख देनेका नहीं है; परन्तु सांसारिक वस्तु, स्त्री, पुत्र, धन, जमीन आदिमें जिनकी ममता-आसक्ति रहती है, ऐसे मनुष्य मरनेके बाद सौम्य स्वभाववाले भूत-प्रेत बनते हैं । ये किसीमें प्रविष्ट हो जाते हैं तो उसको दुःख नहीं देते और अपनी गतिका उपाय भी बता देते हैं ।

जिनको विद्या आदिका बहुत अभिमान, मद होता है; उस अभिमानके कारण जो दूसरोंको नीचा दिखाते हैं, दूसरोंका अपमान-तिरस्कार करते हैं, दूसरोंको कुछ भी नहीं समझते, ऐसे मनुष्य मरकर ‘ब्रह्मराक्षस’ (जिन्न) बनते हैं । ये किसीमें प्रविष्ट हो जाते हैं, किसीको पकड़ लेते हैं तो बिना अपनी इच्छाके उसको छोड़ते नहीं । इनपर कोई तन्त्र-मन्त्र नहीं चलता । दूसरा कोई इनपर मन्त्रोंका प्रयोग करता है तो उन मन्त्रोंको ये स्वयं बोल देते हैं ।

एक सच्ची घटना है । दक्षिणमें मोरोजी पन्त नामक एक बहुत बड़े विद्वान् थे । उनको विद्याका बहुत अभिमान था । वे अपने समान किसीको विद्वान् मानते ही नहीं थे और सबको नीचा दिखाते थे । एक दिनकी बात है, दोपहरके समय वे अपने घरसे स्नान करनेके लिये नदीपर जा रहे थे । मार्गमें एक पेड़पर दो ब्रह्मराक्षस बैठे हुए थे । वे आपसमें बातचीत कर रहे थे । एक ब्रह्मराक्षस बोला‒हम दोनों तो इस पेड़की दो डालियोंपर बैठे हैं, पर यह तीसरी डाली खाली है; इसपर कौन आयेगा बैठनेके लिये ? दूसरा ब्रह्मराक्षस बोला‒यह जो नीचेसे जा रहा है न ? यह आकर यहाँ बैठेगा; क्योंकि इसको अपनी विद्वत्ताका बहुत अभिमान है । उन दोनोंके संवादको मोरोजी पन्तने सुना तो वे वहीं रुक गये और विचार करने लगे कि अरे ! विद्याके अभिमानके कारण मेरेको ब्रह्मराक्षस बनना पड़ेगा, प्रेतयोनियोंमे जाना पड़ेगा ! अपनी दुर्गतिसे वे घबरा गये और मन-ही-मन सन्त ज्ञानेश्वरजीके शरणमें गये कि मैं आपके शरणमें हूँ, आपके सिवाय मेरेको इस दुर्गतिसे बचानेवाला कोई नहीं है । ऐसा विचार करके वे वहींसे आलन्दीके लिये चल पड़े, जहाँ संत ज्ञानेश्वरजी जीवित समाधि ले चुके थे । फिर वे जीवनभर वहीं रहे, घर आये ही नहीं । सन्तकी शरणमें जानेसे उनका विद्याका अभिमान चला गया और सन्त-कृपासे वे भी सन्त बन गये !

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।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि–
भाद्रपद कृष्ण द्वितीया, वि.सं.–२०७५, मंगलवार
                 दुर्गतिसे बचो




अगर कोई मनुष्य यह सोचे कि अभी तो मैं पाप कर लूँ, व्यभिचार, अत्याचार कर लूँ, फिर जब मरने लगूँगा तब भगवान्‌का नाम ले लूँगा, भगवान्‌को याद कर लूँगा, तो उसका यह सोचना सर्वथा गलत है । कारण कि मनुष्य जीवनभर जैसा कर्म करता है, मनमें जैसा चिन्तन करता है, अन्तकालमें प्रायः वही सामने आता है । अतः दुराचारी मनुष्यको अन्तकालमें अपने दुराचारोंका ही चिन्तन होगा और वह अपने पाप-कर्मोंके फलस्वरूप नीच योनियोंमें ही जायगा, भूत-प्रेत ही बनेगा ।

अगर कोई मनुष्य काशी, मथुरा, वृन्दावन, अयोध्या आदि धामोंमें रहकर यह सोचता है कि धाममें रहनेसे, मरनेपर मेरी सद्‌गति होगी ही, दुर्गति तो हो नहीं सकती; और ऐसा सोचकर वह पाप, दुराचार, व्यभिचार, झूठ-कपट, चोरी-डकैती आदि कर्मोंमें लग जाता है तो मरनेपर उसकी भयंकर दुर्गति होगी । वह अन्तिम समयमें प्रायः किसी कारणसे धामके बाहर चला जायगा और वहीं मरकर भूत-प्रेत बन जायगा । अगर वह धाममें भी मर जाय, तो भी अपने पापोंके कारण वह भूत-प्रेत बन जायगा ।

प्रश्न‒प्रेत-योनि न मिले, इसके लिये मनुष्यको क्या करना चाहिये ?

उत्तर‒मनुष्य-शरीर केवल परमात्मप्राप्तिके लिये ही मिला है । अतः मनुष्यको सांसारिक भोग और संग्रहकी आसक्तिमें न फँसकर परमात्माके शरण हो जाना चाहिये; इसीसे वह अधोगतिसे, भूत-प्रेतकी योनिसे बच सकता है ।

प्रश्न‒भूत-प्रेत और पितरमें क्या अन्तर है ?

उत्तर‒ऐसे तो भूत, प्रेत, पिशाच, पितर आदि सभी देवयोनि कहलाते हैं[1], पर उनमें भी कई भेद होते हैं । भूत-प्रेतोंका शरीर वायुप्रधान होता है; अतः वे हरेकको नहीं दीखते । हाँ, अगर वे स्वयं किसीको अपना रूप दिखाना चाहें तो दिखा सकते हैं । उनको मल-मूत्र आदि अशुद्ध चीजें खानी पड़ती हैं । वे शुद्ध अन्न-जल नहीं खा सकते; परंतु कोई उनके नामसे शुद्ध पदार्थ दे तो वे खा सकते हैं । भूत-प्रेतोंके शरीरोंसे दुर्गन्ध आती है ।

पितर भूत-प्रेतोंसे ऊँचे माने जाते हैं । पितर प्रायः अपने कुटुम्बके साथ ही सम्बन्ध रखते हैं और उसकी रक्षा, सहायता करते हैं । वे कुटुम्बियोंको व्यापार आदिकी बात बता देते हैं, उनको अच्छी सम्मति देते हैं, अगर घरवाले बँटवारा करना चाहें तो उनका बँटवारा कर देते हैं, आदि । पितर गायके दूधसे बनी गरम-गरम खीर खाते हैं, गंगाजल‒जैसा ठंडा जल पीते हैं, शुद्ध पदार्थ ग्रहण करते हैं । कई पितर घरवालोंको दुःख भी देते हैं, तंग भी करते हैं तो यह उनके स्वभावका भेद है ।

जैसे मनुष्योंमें चारों वर्णोंका, ऊँच-नीचका, स्वभावका भेद रहता है, ऐसे ही पितर, भूत, प्रेत, पिशाच आदिमें भी वर्ण, जाति आदिका भेद रहता है ।



[1] विद्याधराऽप्सरायक्षरक्षोगन्धर्वकिन्नराः ।
   पिशाचो गुह्यकः सिद्धो भूतोऽमी देवयोनयः ॥
                                        (अमरकोष १ । १ । ११)

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