।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि–
श्रावण शुक्ल पंचमी, वि.सं.–२०७५, गुरुवार
नाम-महिमा


केवल भगवान् ही मेरे हैं । मैं औरोंका नहीं हूँ तथा मेरा और कोई नहीं है‒ऐसा अपनापन करके साथमें फिर नाम जपो तो उस नामका भगवान्‌पर असर होता है । परन्तु कइयोंसे सम्बन्ध रखते हैं, धन-परिवारसे सम्बन्ध रखते हैं और नाम लेते हैं तो नाम न लेनेकी अपेक्षा लेना तो श्रेष्ठ है ही और जितना नाम लेता है, उतना तो लाभ होगा ही; परन्तु वह लाभ नहीं होगा, जो लाभ सच्चे हृदयसे अपना सम्बन्ध परमात्माके साथ जोड़कर फिर नाम लेनेवालेको होता है ।

‘तुलसी तजि कुसमाजु’ कुसंगका त्याग करो । कुसंग क्या है ? यह धन हमारा है, सम्पत्ति हमारी है‒यह कुसंग है । जो धनके लोभी हैं, भोगोंके कामी हैं, उनका संग कुसंग है । जो परमात्मासे विमुख हैं, उनका संग महान् कुसंग है । वह कुसमाज है, उनसे बचो । नहीं तो महाराज ! थोड़ा-सा कुसंग भी आपकी वृत्तियोंको बदल देगा, एकदम भगवान्‌से विमुख कर देगा । लोग कहते हैं कि भगवद्भजनमें इतनी ताकत नहीं, जो कुसंग इतना असर कर जाय । वह ताकत कुसंगमें नहीं है भाई, प्रत्युत अपने भीतरमें अनेक तरहके जो विरुद्ध संस्कार पड़े हुए हैं, भगवद्भजनके विरुद्ध संस्कार पड़े हैं । वे संस्कार कुसंगसे उभर जाते हैं, जग जाते हैं । इस वास्ते कुसंगका बड़ा असर पड़ता है । आप भजन करोगे तो वे सब संस्कार नष्ट हो जायेंगे, फिर‒‘बिधि बस सुजन कुसंगत परहीं । फनि मनि सम निज गुन अनुसरहीं ॥’ कभी किसी कारणसे कोई सज्जन कुसंगमें पड़ भी जायें तो जैसे साँपकी मणि होती है, उसको जहर नहीं लगता । वह तो जहरके ऊपर रखनेसे जहरका शोषण कर लेती है, पर वह खुद जहरीली नहीं होगी । इसी तरहसे आप भजनमें तल्लीन हो जाओगे, तदाकार हो जाओगे तो फिर आपका मन नहीं बदलेगा, आपके ऊपर कुसंगका असर नहीं पड़ेगा । कारण कि आपके अन्तःकरणमें भगवत्-सम्बन्धी संस्कार दृढ़ हो गये, प्रत्युत कुसंगपर आपका असर पड़ेगा, भजनका असर पड़ेगा । परन्तु इतनी शक्ति होनेसे पहले सावधान रहो । कुसंगका त्याग करके और भगवान्‌के होकर मस्तीसे भगवान्‌के नामका जप करो । चलते-फिरते, उठते-बैठते हर समय करो । इसमें जब मन लग जाता है, फिर छूटता नहीं ।


मैंने एक सज्जन देखे हैं । उनके सफेद ही कपड़े थे, पर वे ‘राम-राम-राम’ करते रहते थे । जैसे चलते-चलते कोई पीछे रह जाता है और फिर दौड़कर आ जाता है, इसी तरहसे वे पहले धीरे-धीरे ‘राम-राम-राम’ करते थे, फिर बड़ी तेजीसे जल्दी-जल्दी करते थे । रातमें भी उनके पास रहनेका मेरा काम पड़ा है तो वे रातमें भी और दिनमें भी नाम जपते । थोड़ी देर नींद आती, नींद खुलनेपर फिर ‘राम-राम-राम’ । हर समय ही ‘राम-राम-राम’ । भोजन करते हैं तो ' राम-राम-राम ' । ग्रास लेते हैं तो ‘राम-राम-राम’ । किसी समय जाकर देखें तो वे भगवान्‌का नाम लेते हुए ही मिलते थे । ऐसी लौ लग जायगी तो फिर नहीं छूटेगी । फिर हाथकी बात नहीं है कि आप छोड़ दें । वह एक ऐसा विलक्षण रस है कि एक बार जो लग जाता है तो फिर वह लग ही जायगा । परमात्मतत्त्व-सम्बन्धी बातें हों, परमात्म-सम्बन्धी नाम हो, भगवान्‌की लीला हो, गुण हो, प्रभाव हो, रहस्य हो‒भगवान्‌का जो कुछ भी समझ आ जायगा, उसको आप छोड़ सकोगे नहीं ।