।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि–
श्रावण शुक्ल सप्तमी, वि.सं.–२०७५, शुक्रवार
गोस्वामी तुलसीदास-जयन्ती
नाम-महिमा


कारण क्या है ? आपका सम्बन्ध पहलेसे भगवान्‌के साथ है और संसारके साथ आपका सम्बन्ध है नहीं । अभी भी बचपन, जवानी और वृद्धावस्था‒इनका आपके साथ निरन्तर सम्बन्ध कहाँ है ? ये निरन्तर बदलते हैं और निरन्तर रहते हैं तो इनका आपसे साथ नहीं है । बहुत-से लोग मर गये । बहुत-से मर रहे हैं । सभी जा रहे हैं । कोई भी अपने साथमें रहनेवाला नहीं है । पर प्रभु हरदम साथमें रहते हैं । प्रभु कभी हमसे वियुक्त हुए नहीं और हो नहीं सकते । यह जीव ही भगवान्‌से विमुख हुआ है । सभी जीव भगवान्‌को प्यारे हैं, सब भगवान्‌के पैदा किये हुए हैं । इस वास्ते भगवान् जीवको कभी भूलते नहीं हैं‒‘सब मम प्रिय सब मम उयजाए ।’

संसारकी कोई भी वस्तु स्थिर नहीं रहती । जो आप रखते हो, नहीं रहता । अनुकूल परिस्थिति रखना चाहते हो, नहीं रहती । धन रखते हो, नहीं रहता । कुटुम्ब रखते हो, नहीं रहता । आप उनका भरोसा करते हो तो विश्वासघात होता है; क्योंकि वे साथ रह सकते ही नहीं । यह क्या है ? यह भगवान्‌का निमन्त्रण है, भगवान्‌का आह्वान है, भगवान्‌की बुलाहट है । भगवान् आपको बुला रहे हैं कि तुम कहाँ फँस गये हो ? वे तुम्हारे नहीं हैं । तुम देख लो कि ये बेटा-पोता, पड़पोता, माँ बाप, भाई, सम्बन्धी, मित्र, कुटुम्बी तुम्हारे साथ कैसा व्यवहार करते हैं ? ये तुम्हारा साथ देनेवाले नहीं हैं‒

संसार साथी सब स्वार्थके हैं,
पक्के   विरोधी    परमार्थ   के   हैं ।
देगा न कोई दुःख में सहारा,
सुन तू किसी की मत बात प्यारा ॥

और बात तू मत सुन, एक नाम ही ले । उपनिषदोंमें आता है‒‘श्रवणायापि बहुभिर्यो न लभ्यः’ बहुत-से आदमियोंको तो भगवत्सम्बन्धी बातें सुननेके लिये भी नहीं मिलतीं । उम्र बीत जाती है, पर सुननेके लिये नहीं मिलतीं । सज्जनो ! आपलोगोंको तो मौका मिल गया है । आपलोगोंपर भगवान्‌की कितनी कृपा है कि आप वाणी पढ़ते हैं, सन्तोंके प्रति श्रद्धा है, भावना है‒यह कोई मामूली गुण नहीं है । आज आपको इसमें कुछ विशेषता नहीं दीखती, पर है यह बहुत विशेष बात, क्योंकि‒

विष्णवे भगवद्भक्तौ प्रसादे हरिनाम्नि च ।
अल्पपुण्यवतां  श्रद्धा  यथावन्नैव जायते ॥


भगवान्‌के प्यारे भक्त, भगवद्भक्ति आदिमें थोड़े पुण्य-वालोंकी श्रद्धा नहीं होती । जब बहुत अन्तःकरण निर्मल होता है, तब सन्तोंमें, भगवान्‌की भक्तिमें, प्रसादमें और भगवान्‌के नाममें श्रद्धा होती है । जिनमें कुछ भी श्रद्धा-भक्ति होती है, यह उनके बड़े भारी पुण्यकी बात है । वे पवित्रात्मा हैं । नहीं तो, उनमें श्रद्धा नहीं बैठती । वह तर्क करेगा, कुतर्क करेगा । वह उनके पास ठहर नहीं सकता ।