।। श्रीहरिः ।।


स्त्रीयोंके प्रति-२



मेरेको आश्चर्य होता है कि गर्भपात, नसबंधीके लिए प्रचार करती है, ऐसे ही बहनें प्रचार करती है कि गुरु बना लो । जिन्होंने गुरु बनाया है उसमें क्या विलक्षणता आयी है ? आप कोई बताओ ? अभिमान एक और बढ़ गया कि हमने गुरु बना लिया, तुमने नहीं बनाया । अभिमान खास पतनका कारण है । आसुरी संपत्ति है खास बंधनके लिए । आप तर्क करो हमारे सामने ! शास्त्रसे, युक्तिसे काटो हमारी बात ! अपना कल्याण करना है कि अभिमान बढ़ाना है ? नरकोमें जाना है ? बताओ क्या विचार है आपका ? कल्याण करनेका विचार है वह कभी अभिमान नहीं बढ़ाएगा । अभिमान छोडेगा, अहंकारका त्याग करेगा । अभिमान बढ़ाना है कि हमारा गायत्रीमें अधिकार है, हमारा ॐ में अधिकार है । इससे हम बड़े हो गए । तुम जिसको लेकर बड़े हो गए वह शरीर क्या है ? आश्चर्य आये ऐसी बात है । शरीर क्या है बताऊ ? यह मल-मूत्र बनानेकी मशीन है । भगवानको भोग लगे ऐसे बढ़िया-बढ़िया पदार्थ ले लो और विष्टा बना लो । गंगाजी, जमनाजीका पवित्र जल इसको पीला दो और पेशाब बना देगी ! बताओ; काटो, खंडन करो कोई भी ! उस शरीरमें अभिमान करना कि ‘मै बड़ा हूँ’, तो मल-मूत्रकी मशीनका अभिमान हुआ । इससे कल्याण, उद्धार होगा ? कभी संभव नहीं है ।

देखो एक मार्मिक बात बताऊ । वस्तु कोई अच्छी और खराब होती ही नहीं । सदुपयोग कल्याण करनेवाला है और दुरुपयोग पतन करनेवाला है । हरेक वस्तुका सदुपयोग करो । सदुपयोगकी महिमा है, दुरुपयोगकी निंदा है । उत्तरकाण्डमें काकभुशुण्डिजी और गरुड़जीका संवाद है । उसमें सात प्रश्न है, जिसमें पहला प्रश्न है कि सबसे दुर्लभ शरीर कौनसा है ? ध्यानसे सुनना कृपा करके ! तो उसका उत्तर दिया ‘सबसे दुर्लभ मानुष देही जीव चराचर जाचत जेही’ उस मनुष्य देहकी महिमा करते हुए आगे कहते है कि ‘नरक स्वर्ग अपवर्ग निसेनी, ज्ञान विराग भक्ति शुभ देनी’ । मनुष्य शरीरकी महिमामें पहला नंबर है नरक ! नरककी प्राप्तिका साधन है, तो यह महिमा हुई कि निंदा हुई ? मनुष्य शरीरका ऐसा फल है कि सीधा नरकोमें जाय । अगर इसका दुरुपयोग करेगा तो नरकोमें जायेगा । और सदुपयोग करेगा तो मुक्ति हो जायेगी । महिमा मानव शरीरकी नहीं है, महिमा सदुपयोगकी है । इस वास्ते चाहे भाईका शरीर हो चाहे बहनका शरीर हो, इसका सदुपयोग करो तो कल्याण हो जायेगा और दुरुपयोग करोगे तो नरक हो जायेगा । अधिकार पुरुषको ज्यादा दिया तो यह महेनत ज्यादा करे और जो मिले वह बहनोंको सुगमतासे मिल जाय । पति-पत्नी होते है तो पति जो शुभ काम करता है – संध्या करता है, गायत्री करता है, वेद पढता है, उसके धर्मका आधा अधिकार पत्नीको मिलता है । महेनत तो करे पुरुष और स्त्रीको मुफ्तमें मिले कल्याण । और स्त्री धर्म करें तो उसका आधा फल पतिको नहीं मिलता है, पर पाप करें तो पतिको फल भोगना पडता है । स्त्रीके किये हुआ पापका भागी पति होता है और पतिके धर्मका भाग लेती है पत्नी । धर्मपत्नी कहा है, पाप-पत्नी नहीं कहा है । धर्मका भाग लेती है मुफ्तमें, घर बैठे हुए । प्रत्यक्षमें देखो, कमाता पुरुष है और स्त्री मौजसे खाती है । पति पंडित हुआ और पत्नी पढ़ी हुई नहीं है पर पंडितानी कहलाती है । पढना एक अक्षर भी नहीं आता ! तो इससे अधिक अधिकार लेकर क्या कर लोगी ? माँ का दरज्जा श्रेष्ठ है, उतना पिताका नहीं है ।

हमने सुना है कि प्रणव पढ़ेगा और ॐ का ठीक उच्चारण ओम......ओम....ओम ऐसे करेगी तो गर्भपात हो जायेगा —यह बात मैंने सुनी है । तो अनर्थ होगा न ! आपका खास काम है गर्भ धारण करना उसमें बाधा होगी । अब आपको क्या कहूँ ? अन्नदाता हो आप हमारी ! हमें रोटी आपसे मिलती है, इनसे (पुरुष) नहीं मिलती है । आप सबको घरमें रोटी कौन खिलाता है ? आप जिससे जीते हो वह अन्न कौन देता है ? कमाकर आप लाते है पर सुधारकर आपके कामकी चीज बना देती है वरना रुपये खाओ, नोट चबा लो ! हमारे तो भाई ! इनसे भिक्षा मिलती है । फिर कृतघ्न क्यों होंगे ? ॐ, गायत्री, वेदोंका उच्चारण करना छोडो, राम-राम करो कल्याण हो जायेगा ।

कलकत्तेमें एक ब्राह्मणने मुझे बात पुछी कि कल्याण कैसे हो ? तो मैंने बताया कि भगवानके नामसे होता है, गायत्रीसे भी होता है । परन्तु मैंने एक बात कही, पंडितजीने काटी नहीं । मैंने कहा कि गायत्री जपोगे तो साथमें ब्राहमणपनेका अभिमान होगा और नाम-जप करोगे तो नम्रता, सरलता आ जायेगी । अंतःकरण निर्मल जितना रामनामसे होगा उतना गायत्रीसे नहीं होगा; शक्ति, तेज आ जायेगा । शाप-वरदान दे दोंगे । हम ब्राह्मण है—यह अभिमान होगा और अभिमानीका पतन होता है । आसुरी संपत्ति है —यह बात है महाराज ! इस वास्ते आपको अधिकार नहीं दिया तो शास्त्रने कृपाकी है, पति वेद, गायत्री पढ़े उसका आधा भाग आपको मुफ्तमें मिल जायेगा । यदि आप पापमें सम्मति देंगे तो आपको पाप होगा । इस वास्ते अधिकार तो केवल अभिमानके लिए है ।


—दि.२७/०१/१९९२, सायं ३ बजेके प्रवचनसे
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