।। श्रीहरिः ।।
परमात्मप्राप्तिमें देरी क्यों?


परमात्मप्राप्तिका उद्देश्य लेकर चलनेवाले जितने भी मनुष्य हैं, उन सबको परमात्मप्राप्ति होगी, पर कब होगी ? कितने जन्मोंके बाद होगी ? इसका पता नहीं है । शरीरको अपना और अपने लिए मानते हुए कोई साधन करेगा तो उसको कितने जन्म लेने पड़ेंगे, कितनी योनियाँ भोगनी पड़ेंगी, इसका कुछ पता नहीं है । इसलिए मेरी शुरूसे यही लगन रही है कि मनुष्यको जल्दी परमात्मप्राप्ति कैसे हो ?

यद्यपि किया हुआ साधन निरर्थक नहीं जाता, तथापि परमात्माकी प्राप्ति जल्दी कैसे हो, यह लगन होनी चाहिये । लगन नहीं होगी तो कई जन्म लग जायँगे । जो वस्तु कल मिलेगी, वह आज मिलनी चाहिये, आज भी अभी मिलनी चाहिये । परमात्मा भी मौजूद हैं, फिर देरी किस बातकी ? परमात्मप्राप्तिमें देरीकी बात मेरेको सुहाती नहीं । जो काम जल्दी हो सके, उसके लिए देरी क्यों ? जो काम अभी हो सके, उसके लिए कल क्यों ?

श्रीशरणानन्दजी महाराजने लिखा है कि जीव-ब्रह्मकी एकता कभी हुई नहीं, कभी हो सकती नहीं । इसका तात्पर्य है कि जीवपना छूटनेपर ब्रह्मकी प्राप्ति होती है । यह सूक्ष्म विवेचन है । इसी तरह कहा जाता है कि साधुको परमात्माकी प्राप्ति नहीं होती, गृहस्थको परमात्माकी प्राप्ति नहीं होती, ब्राह्मणको परमात्माकी प्राप्ति नहीं होती तो इसका तात्पर्य है कि साधुपनेका अभिमान रहते हुए परमात्मप्राप्ति नहीं होती । ब्राह्मणपनेका अभिमान रखते हुए परमात्मप्राप्ति नहीं होती । अभिमान छूटेगा, तब प्राप्ति होगी । इन सब बातोंको कहनेका तात्पर्य यही है कि परमात्मप्राप्तिमें देरी मत करो । आपके कैसे ही पाप-ताप हों, आप कितने ही दुर्गुणी-दुराचारी हों, पर आपकी लगन लग जाय तो आज परमात्मप्राप्ति हो सकती है ।

साध्यकी प्राप्ति साधकको ही हो सकती है, ब्राह्मण, साधु आदिकी कैसे होगी ? ब्राह्मणको ब्राह्मण-कन्या विवाहके लिए मिल सकती है, पर परमात्मा कैसे मिलेंगे ? साधुको भिक्षा मिल सकती है, पर परमात्मा कैसे मिलेंगे ? शरीरधारीको परमात्माकी प्राप्ति नहीं होती । साधक शरीरधारी नहीं होता । अपनेको पुरुष या स्त्री मानेंगे तो परमात्मप्राप्ति कैसे होगी ? मैं स्त्री या पुरुष हूँ ही नहीं, मैं तो भगवान् का हूँ—ऐसा भाव होगा तो बहुत जल्दी कल्याण हो जायगा । अपनेको स्त्री या पुरुष मानना तो सांसारिक व्यवहार (मर्यादा)-के लिए है । परन्तु पारमार्थिक मार्गमें अपनेको स्त्री या पुरुष मानेंगे तो बहुत देरी लगेगी । चिन्मयकी प्राप्ति चिन्मयको ही होगी, जडको कैसे हो जायगी ?

समताकी प्राप्तिको बहुत ऊँचा बताया है । सेठजी श्रीजयदयालजी गोयन्दकाने लिखा है कि गीताके अनुसार अगर समता आ गयी तो दूसरे लक्षण भले ही न आयें,परमात्मप्राप्ति हो जायगी और समता नहीं आयी तो भले ही दूसरे बड़े-बड़े लक्षण आ जायँ, परमात्मप्राप्ति नहीं होगी । वह समता ममताका त्याग करते ही आ जाती है !
तुलसी ममता राम सों, समता सब संसार ।
(दोहावली ९४)


श्रीशरणानन्दजी महाराजने साफ लिखा है कि ममताको छोडते ही समता आ जायगी । दूसरी बात उन्होंने लिखी है कि अपने लिए तप करना भी भोग है और परमात्माके लिए झाड़ू लगाना भी पूजा है ! हिरण्यकशिपूने कितनी कठोर तपस्या की ! ब्रह्माजीने यह कह दिया कि ऐसी तपस्या आजतक किसीने नहीं की । परन्तु उसको तपस्यासे क्या परमात्मप्राप्ति हो गयी ? उसका परमात्मप्राप्तिका उद्देश्य ही नहीं था । इन बातोंका तात्पर्य परमात्मप्राप्ति जल्दी करनेमें है ।

—‘सब साधनोंका सार’ पुस्तकसे