।। श्रीहरिः ।।
भगवान्

आज ही मिल सकते है-४


(गत् ब्लॉगसे आगेका)
भगवान् कैसे मिलें ? कैसे मिलें ? ऐसी अनन्य लालसा हो जायगी तो भगवान् जरुर मिलेंगे, इसमें सन्देह नहीं है । आप और कोई इच्छा न करके, केवल भगवान् की इच्छा करके देखो कि वे मिलते है कि नहीं मिलते हैं ! आप करके देखो तो मेरी भी परीक्षा हो जायगी कि मैं ठीक कहता हूँ कि नहीं ! मैं तो गीताके बलपर कहता हूँ । गीतामें भगवान् ने कहा है—‘ये यथा मां प्रपद्यन्ते तांस्तथैव भजाम्यहम्’ (४/११) ‘जो भक्त जिस प्रकार मेरी शरण लेते हैं, मैं उन्हें उसी प्रकार आश्रय देता हूँ ।’ हमें भगवान् के बिना चैन नहीं पड़ेगा । हम भगवान् के बिना रोते हैं तो भगवान् भी हमारे बिना रोने लग जायँगे ! भगवान् के समान सुलभ कोई है ही नहीं ! भगवान् कहते हैं—

अनन्यचेताः सततं यो मां स्मरति नित्यशः ।
तस्याहं सुलभः पार्थ नित्ययुक्तस्य योगिनः ॥
(गीता ८/१४)

‘हे पृथानन्दन ! अनन्य चित्तवाला जो मनुष्य मेरा नित्य-निरन्तर स्मरण करता है, उस नित्य-निरन्तर मुझमें लगे हुए योगीके लिये मैं सुलभ हूँ अर्थात उसको सुलभतासे प्राप्त हो जाता हूँ ।’
भगवान् ने अपनेको तो सुलभ कहा है, पर महात्माको दुर्लभ कहा है—

बहूनां जन्मनामन्ते ज्ञानवान्मां प्रपद्यन्ते ।
वासुदेवः सर्वमिति स महात्मा सुदुर्लभः ॥
(गीता ७/१९)

‘बहुत जन्मोंके अन्तिम जन्ममें अर्थात् मनुष्यजन्ममें ‘सब कुछ परमात्म ही हैं’—इस प्रकार जो ज्ञानवान मेरे शरण होता है, वह महात्मा अत्यन्त दुर्लभ है ।’

हरि दुरलभ नहिं जगत में, हरिजन दुरलभ होय ।
हरि हेरयाँ सब जग मिलै, हरिजन कहिं एक होय ॥

भगवान् के भक्त तो सब जगह नहीं मिलते, पर भगवान् सब जगह मिलते हैं । भक्त जहाँ भी निश्चय कर लेता है, भगवान् वहीं प्रकट हो जाते हैं—

आदि अंत जन अनंत के, सारे कारज सोय ।
जेहि जिव ऊर नहचो धरै, तेहि ढिग परगट होय ॥

प्रह्लादजीके लिये भगवान् खम्भेमेंसे प्रकट हो गये—

प्रेम बदौं प्रहलादहिको, जिन पाहनतें परमेस्वरु काढे ॥
(कवितावली ७/१२७)

भगवान् सबके परम सुहृद हैं । वे पापी, दुराचारीको जल्दी मिलते हैं । माँ कमजोर बालकको जल्दी मिलती है । एक माँके दो बेटे हैं । एक बेटा तो समयपर भोजन कर लेता है, फिर कुछ नहिं लेता और दूसरा बेटा दिनभर खाता रहता है । दोनों बेटे भोजनके लिये बैठ जायँ तो माँ पहले उसको रोटी देगी जो समयपर भोजन करता है; क्योंकि वह भूखा उठ जायगा तो शामतक खायेगा नहीं । दूसरे बेटेको माँ कहती है कि तु ठहर जा; क्योंकि वह तो बकरीकी तरह दिनभर चरता रहता है । दोनों एक ही माँके बेटे हैं,फिर भी माँ पक्षपात करती है । इसी तरह जो एक भगवान् के सिवाय कुछ नहीं चाहता, उसको भगवान् सबसे पहले मिलते हैं; क्योंकि वह भगवान् को अधिक प्रिय है । वह एक भगवान् के सिवाय अन्य किसीको अपना नहीं मानता । वह भगवान् के लिये दुःखी होता है तो भगवान् से उसका दुःख सहा नहीं जाता ।

कोई चार-पाँच वर्षका बालक हो और उसका माँसे झगडा हो आय तो माँ उसके सामने ढीली पड़ जाती है । संसारकी लड़ाईमें तो जिसमें अधिक बल होता है, वह जीत जाता है, पर प्रेमकी लड़ाईमें जिसमें अधिक प्रेम होता है, वह हार जाता है । बेटा माँसे कहता है कि मैं तेरी गोदमें नहीं आऊँगा, पर माँ उसकी गरज करती है कि आ जा, आ जा बेटा ! माँमें यह स्नेह भगवान् से ही तो आया है । भगवान् भी भक्तकी गरज करते हैं । भगवान् को जितनी गरज है, उतनी गरज दुनियाको नहीं है । माँको जितनी गरज होती है, उतनी बालकको नहीं होती । बालक तो माँका दूध पीते समय दाँतोंसे काट लेता है, पर माँ क्रोध नहीं करती । अगर वह क्रोध करे तो बालक जी सकता है क्या ? माँ तो बालकपर कृपा ही करती है । ऐसे ही भगवान् हमारी अनन्त जन्मोंकी माता है । वे भक्तकी उपेक्षा नहीं कर सकते । भक्तको वे अपना मुकुटमणि मानते हैं—‘मैं तो हूँ भगतन को दास, भगत मेरे मुकुटमणि’ । भक्तोंका काम करनेके लिये भगवान् हरदम तैयार रहते हैं । जैसे बच्चा माँके बिना नहीं रह सकता और माँ बच्चेके बिना नहीं रह सकती, ऐसे ही भक्त भगवान् के बिना नहीं रह सकता और भगवान् भक्तके बिना नहीं रह सकते ।
—‘मानवमात्रके कल्याणके लिये’ पुस्तकसे

http://www.swamiramsukhdasji.org/swamijibooks/pustak/pustak1/html/mannavmatr%20ke%20kalyan%20ke%20liye/manav001.htm