।। श्रीहरिः ।।

आजकी शुभ तिथि—

आषाढ़ शुक्ल द्वादशी, वि.सं. २०६८, मंगलवार

क्रोधपर विजय कैसे हो ?

(गत ब्लॉगसे आगेका)

छोड़नेका उपाय क्या है ? जो लोग आपका कहना नहीं करते, वे तो आपके अभिमानको दूर करते हैं और जो आपका कहना करते हैं वे आपके अभिमानको पुष्ट करते हैं–यह बात आपको जँचती है कि नहीं ? जो कहना नहीं करते, वे आपका जितना उपकार करते हैं, जितना हित करते हैं; कहना करनेवाले उतना उपकार, हित नहीं करते । अगर आप अपना हित चाहते हो तो आपके अभिमानमें टक्कर लगे, उतना ही बढ़िया है । कहना न करनेमें आपके लाभ है, हानि नहीं है । अभिमान पुष्ट करनेके लिये वे बढ़िया हैं, जो कहना करते हैं; परन्तु आपका अभिमान दूर करनेके लिये वे बढ़िया है, जो कहना नहीं करते हैं । इसलिये आपको तो उनका उपकार मानना चाहिये कि वास्तवमें हमारा हित इस बातमें है ।

यद्यपि वे जानकर हित नहीं करते है कि भाई, तुम्हारा अभिमान दूर हो जाय, इसलिये हम आपका कहना नहीं करेंगे । फिर भी आपके तो फायदा ही हो रहा है, वे आपके अभिमानको दृढ़ नहीं कर रहे हैं अर्थात् आपका अभिमान दृढ़ नहीं हो रहा है । आप अपना हित चाहते हो कि अहित चाहते हो ? कल्याण चाहते हो कि पतन चाहते हो ? अगर आप कल्याण चाहते हो तो कल्याण आपका निरभिमान होनेसे है और निरभिमान आप तभी होंगे, जब आपका कहना कोई नहीं मानेगा । अगर कहना मानता है तो आपका कहना सब जगह डटा रहेगा और यही अभिमान है, यही आसुरी सम्पत्ति है–‘दम्भो दर्पोऽभिमानश्च क्रोधः’ (१६/४) । तो जो आपका कहना नहीं मानते, वे आपपर बड़ी भारी कृपा कर रहे हैं । आपकी आसुरी सम्पत्ति हटाकर आपमें दैवी सम्पत्ति ला रहे हैं ।

अब प्रश्न आया है कि कहना नहीं माननेसे तो बालक उद्दण्ड हो जायेंगे ? आपका कहना माननेसे आप अभिमानी हो जायँगे और आपका कहना नहीं मानते तो वे उद्दण्ड हो जायेंगे–इन दोनोंपर गहरा विचार करो । आप नहीं रहोगे तो मनमानी करके उद्दण्ड तो फिर भी हो जायेंगे, परन्तु आपका अभिमान दूर कैसे होगा ? उद्दण्ड तो आपके बिना भी हो जायेंगे, पर आपका अभिमान तो दूर नहीं होगा । इसलिये आपको अभिमान तो पहले दूर कर ही लेना चाहिये ।

दूसरी बात यह है कि आप उनपर रोब नहीं जमाओगे तो आपकी सौम्यावस्था और निरभिमान-अवस्थाका असर उनपर पड़ेगा, जिससे वे उद्दण्ड नहीं होंगे, ठीक हो जायेंगे । आप कह दो कि भाई, ऐसा काम नहीं करना चाहिये फिर भी वे वैसा ही करें तो आप शान्तिसे चुप-चाप रहो । कारण कि वे उद्दण्डता करेंगे तो उनको वैसा फल मिलेगा । फल मिलनेसे उनको चेत होगा, जिससे उनकी उद्दण्डता स्वतः मिटेगी । उनको चेत होकर जो उद्दण्डता मिटेगी, वह आपके कहनेसे नहीं मिटेगी; क्योंकि उनके मनमें तो अपनी बात भरी रहेगी और आपकी बात उपरसे कलई-जैसे रहेगी, वह कलई उतर जायगी तो इससे उद्दण्डता कैसे मिटेगी ? उसकी उद्दण्डता मिटानेका सही उपाय यही है कि आप अपने अभिमानको दूर करो ।

मनुष्यको परिवारमें रहना है तो परिवारमें रहना सीख लेना चाहिये । परिवारमें रहनेकी यह विद्या है कि उनका कहना करो, उनके मनके अनुसार चलो । अपना जो कर्तव्य है, उसका तो पालन करो और उनकी प्रसन्नता लो ।

(शेष आगेके ब्लॉगमें)

—‘जीवनोपयोगी प्रवचन’ पुस्तकसे