।। श्रीहरिः ।।

आजकी शुभ तिथि—

श्रावण कृष्ण प्रतिपदा, वि.सं. २०६८, शनिवार

व्यवहारमें परमार्थ

(गत ब्लॉगसे आगेका)

यं यं वापि स्मरन्भावं त्यजत्यन्ते कलेवरम् ।

तं तमेवैति कौन्तेय सदा तद्भावभावितः ॥

(गीता ८/६)

यह कानून है कि जिस-जिस भावका स्मरण करता हुआ मनुष्य जाता है, वह आगे उसी भावसे भावित होता हुआ उसी जन्मको प्राप्त होता है । अन्तकालके चिन्तनके अनुसार गति हो जाती है । ‘अन्त मति सो गति ।’ यह हुआ भगवान्‌का कानून । भगवान्‌ कहते हैं कि अन्तकालमें मुझे याद करेगा तो मुझे प्राप्त हो जायगा । परमात्माकी प्राप्तिके लिये अन्तकालमें परमात्माका चिन्तन करे, परमात्माकी प्राप्ति हो जाय । इसमें दया यह भरी हुई है कि जितने दामोंमें कुत्तेकी योनी मिले उतने ही दामोंमें परमात्माकी प्राप्ति हो जाय । क्या खर्च हुआ बताओ ? कुत्तेको याद करते हुए मरोगे तो कुत्ता बन जाओगे और परमात्माको याद करते हुए मरोगे तो परमात्माकी प्राप्ति हो जायगी तो इसमें अपने लिये भगवान्‌ने कोई रियायत नहीं की–यह तो न्याय है । कानून है उसका कोई भी पालन कर लो और इस कानूनमें दया भी भर दी । जिस चिन्तनसे चौरासी लाख योनी मिलती है, उसी चिन्तनसे भगवत्प्राप्ति हो जाय, सदाके लिये जन्म-मरण मिट जाय । यह कानूनमें न्याय भी है, दया भी है । इसी तरह व्यवहार ठीक करनेसे परमार्थ भी सुधरता है । व्यवहारका काम ठीक करनेसे परमार्थ नहीं बिगड़ता । झूठ, कपट, बेईमानी, धोखेबाजी करते हो तो उससे परमार्थ बिगड़ता है । लोगोंको इससे लाभ दिखता है, पर लाभ नहीं है ।

किसीके साथ कपट करोगे, द्वेष करोगे, चालाकी करोगे, ठगी करोगे तो जैसे कि कहा है–‘हाँडी काठकी चढ़े न दूजी बार ।’ काठकी हाँडीको एक बार चूल्हेपर चढ़ा दो, तो दुबारा चढ़ेगी क्या ? ऐसे ही एक बार भले ही ठगी कर लो पर उसके साथ खटपट हो जायगी । व्यवहार भी ठीक नहीं होगा । अतः अपने स्वार्थका त्याग और दूसरोंके हितकी भावनासे व्यवहार ठीक होगा और व्यवहार ठीक होगा तो परमार्थ भी ठीक होगा । स्वार्थ और अहंकारका त्याग करनेसे काम ठीक होता है । यह बहुत ही लाभकी बात है ।

भगवद्गीता व्यवहारमें परमार्थ सिखाती है । गीता पढ़ो, गीताका अध्ययन करो, उसपर विचार करो और उसके अनुसार अपना जीवन बनाओ । देखो कितनी मौज होती है ! कितना आनन्द आता है स्वाभाविक ही ! गीता बतलाती है कि व्यवहार ठीक तरहसे करो तो परमार्थ तो स्वतःसिद्ध है । बिगड़ा तो व्यवहार ही है और कुछ बिगड़ा ही नहीं है । न जीवात्मा बिगड़ा, न परमात्मा बिगड़ा, न कल्याण बिगड़ा है । बिगड़ा है केवल व्यवहार । व्यवहार शुद्ध कर लो, सब काम सिद्ध हो जायगा ।

नारायण ! नारायण !! नारायण !!!

—‘जीवनोपयोगी प्रवचन’ पुस्तकसे