।। श्रीहरिः ।।

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आजकी शुभ तिथि–
मार्गशीर्ष कृष्ण दशमी, वि.सं.–२०७०, गुरुवार
एकादशी-व्रत कल है
सत्य क्या है ?
 

(गत ब्लॉगसे आगेका)
बहुतोंका यह प्रश्न रहता है कि संसार तो नाशवान् है ही, पर परमात्मा अविनाशी है‒इसका क्या पता ? अरे, अविनाशीके बिना विनाशी दीखता ही नहीं । बिना सत्यके असत्यका भान ही नहीं होता । असत्य तभी असत्य दीखता है, जब आप सत्यमें स्थित होते हैं । तो सत्यमें आपकी स्थिति स्वतःसिद्ध है । बस यहींपर डटे रहो । न जाने सत्य क्या होता है ? प्राप्ति क्या होती है ? तत्त्वज्ञान क्या होता है ? जीवन्मुक्त क्या होता है ? क्या यों सींग हो जाते हैं, कि कोई पूँछ हो जाती है, कि कोई पंख लग जाते हैं, क्या हो जाता है ? न जाने इस प्रकार क्या-क्या कल्पना कर रखी है !
 
कृपानाथ ! आप इतनी कृपा करो । बस इतनी ही बात है कि असत्यका जिसे बोध होता है, वही सत्य है । कोई पूछे कि सब कुछ दीखता है, पर आँख नहीं दीखती ? तो जिससे सब कुछ दीखता है, वही आँख है । आँखको कैसे देखा जाय कि यह आँख है ? दर्पणमें देखनेपर भी देखनेकी शक्ति नहीं दीखती, वह शक्ति जिसमें है, वह स्थान दीखता है । तो सुनने, पढ़ने, विचार करनेसे जो आपको ज्ञान होता है, वह ज्ञान जिससे होता है, वही सत्य है । वही सबका प्रकाशक और आधार है । वही ज्ञानस्वरूप है, वही चेतनस्वरूप है, वही आनन्दस्वरूप है ।
 
जैसे दर्पणमें मुख दीखता है, ऐसे ही यह संसार दीखता है । संसार स्थिर नहीं रहता, बदलता रहता है‒यह अपने अनुभवकी बात है । अब यहीं देखें । पहले यहाँ बिलकुल जंगल था, अब मकान बन गया । यह आपकी देखी हुई बात है । यह कौन-सा सदा रहेगा ! एक दिन सफाचट हो जायगा, कुछ नहीं रहेगा । तो सब मिट रहा है, प्रतिक्षण मिट रहा है । इसे मिटता हुआ ही मान लें ।
जासु सत्यता   तें जड़ माया ।
भास सत्य इव मोह सहाया ॥
                                                                        (मानस १।११७।४)
 
कितनी सुन्दर बात कही छोटे-से रूपमें ! जिसकी सत्यतासे यह जड़ माया मूढ़ताके कारण सत्यकी तरह दीखती है, वही सत्य है । जैसे चनेके आटेकी बूँदी बनायी जाय, बिलकुल फीकी, तो उसे चीनीमें डालनेसे वह मीठी हो जाती है । चनेका फीका आटा भी मीठा लगने लगता है, तो यह मिठास उसकी नहीं है । उन मीठी बूँदियोंको मुँहमें थोड़ी देर चूसते जाओ, तो वे फीकी हो जायँगी, क्योंकि वे तो फीकी ही थीं । तो बताओ कि चीनी मीठी हुई कि बूँदी मीठी हुई ? जो फीकेको भी मीठा करके दिखा दे, वह स्वयं मीठा है ही । ऐसे जो असत्यको भी सत्यकी तरह दिखा दे, वह सत्य है ही ।
 
प्रकाश और अंधकार‒दोनोंका जिससे ज्ञान होता है, वह अलुप्त प्रकाश है अर्थात् वह प्रकाश कभी लुप्त होता ही नहीं । वह क्रियाओं और अक्रियाओको, जाग्रत्-स्वप्न-सुषुप्तिको, सम्पूर्ण अवस्थाओंको प्रकाशित करता है । सब अवस्थाएँ उससे जानी जाती हैं । उसीमें आप हरदम स्थित रहें । उससे नीचे न उतरें ।
 
नारायण ! नारायण !! नारायण !!!
 
‒ ‘तात्त्विक प्रवचन’ पुस्तकसे