।। श्रीहरिः ।।

आजकी शुभ तिथि
श्रावण शुक्ल तृतीयावि.सं.२०७१बुधवार
दुर्गतिसे बचो



 (गत ब्लॉगसे आगेका)
अगर कोई मनुष्य यह सोचे कि अभी तो मैं पाप कर लूँव्यभिचारअत्याचार कर लूँफिर जब मरने लगूँगा तब भगवान्‌का नाम ले लूँगाभगवान्‌को याद कर लूँगातो उसका यह सोचना सर्वथा गलत है । कारण कि मनुष्य जीवनभर जैसा कर्म करता हैमनमें जैसा चिन्तन करता है,अन्तकालमें प्रायः वही सामने आता है । अतः दुराचारी मनुष्यको अन्तकालमें अपने दुराचारोंका ही चिन्तन होगा और वह अपने पाप-कर्मोंके फलस्वरूप नीच योनियोंमें ही जायगाभूत-प्रेत ही बनेगा ।

अगर कोई मनुष्य काशीमथुरावृन्दावनअयोध्या आदि धामोंमें रहकर यह सोचता है कि धाममें रहनेसे,मरनेपर मेरी सद्‌गति होगी हीदुर्गति तो हो नहीं सकती;और ऐसा सोचकर वह पापदुराचारव्यभिचारझूठ-कपट,चोरी-डकैती आदि कर्मोंमें लग जाता है तो मरनेपर उसकी भयंकर दुर्गति होगी । वह अन्तिम समयमें प्रायः किसी कारणसे धामके बाहर चला जायगा और वहीं मरकर भूत-प्रेत बन जायगा । अगर वह धाममें भी मर जायतो भी अपने पापोंके कारण वह भूत-प्रेत बन जायगा ।

प्रश्न‒प्रेत-योनि न मिलेइसके लिये मनुष्यको क्या करना चाहिये ?

उत्तर‒मनुष्य-शरीर केवल परमात्मप्राप्तिके लिये ही मिला है । अतः मनुष्यको सांसारिक भोग और संग्रहकी आसक्तिमें न फँसकर परमात्माके शरण हो जाना चाहिये;इसीसे वह अधोगतिसेभूत-प्रेतकी योनिसे बच सकता है ।

प्रश्न‒भूत-प्रेत और पितरमें क्या अन्तर है ?

उत्तर‒ऐसे तो भूतप्रेतपिशाचपितर आदि सभी देवयोनि कहलाते हैं*पर उनमें भी कई भेद होते हैं । भूत-प्रेतोंका शरीर वायुप्रधान होता हैअतः वे हरेकको नहीं दीखते । हाँ, अगर वे स्वयं किसीको अपना रूप दिखाना चाहें तो दिखा सकते हैं । उनको मल-मूत्र आदि अशुद्ध चीजें खानी पड़ती हैं । वे शुद्ध अन्न-जल नहीं खा सकतेपरंतु कोई उनके नामसे शुद्ध पदार्थ दे तो वे खा सकते हैं । भूत-प्रेतोंके शरीरोंसे दुर्गन्ध आती है ।

पितर भूत-प्रेतोंसे ऊँचे माने जाते हैं । पितर प्रायः अपने कुटुम्बके साथ ही सम्बन्ध रखते हैं और उसकी रक्षा,सहायता करते हैं । वे कुटुम्बियोंको व्यापार आदिकी बात बता देते हैंउनको अच्छी सम्मति देते हैंअगर घरवाले बँटवारा करना चाहें तो उनका बँटवारा कर देते हैंआदि ।पितर गायके दूधसे बनी गरम-गरम खीर खाते हैंगंगाजल‒जैसा ठंडा जल पीते हैंशुद्ध पदार्थ ग्रहण करते हैं । कई पितर घरवालोंको दुःख भी देते हैंतंग भी करते हैं तो यह उनके स्वभावका भेद है ।

जैसे मनुष्योंमें चारों वर्णोंकाऊँच-नीचका,स्वभावका भेद रहता हैऐसे ही पितरभूतप्रेतपिशाच आदिमें भी वर्णजाति आदिका भेद रहता है ।

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘दुर्गतिसे बचो’ पुस्तकसे

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* विद्याधराऽप्सरायक्षरक्षोगन्धर्वकिन्नराः ।
   पिशाचो गुह्यकः सिद्धो भूतोऽमी देवयोनयः ॥
                                        (अमरकोष १ । १ । ११)