।। श्रीहरिः ।।




आजकी शुभ तिथि
आश्विन शुक्ल तृतीया, वि.सं.२०७१, शनिवार
मानसमें नाम-वन्दना



(गत ब्लॉगसे आगेका)
          प्रवचन- २

भगवान् शंकरने रामनामके प्रभावसे काशीमें मुक्तिका क्षेत्र खोल दिया और इसी महामन्त्रके जपसे ईशसे महेश’ हो गये । अब आगे गोस्वामीजी महाराज कहते हैं‒
महिमा जासु जान गनराऊ ।
प्रथम पूजिअत नाम प्रभाऊ ॥
                             (मानस, बालकाण्ड, दोहा १९ । ४)

सम्पूर्ण त्रिलोकीकी प्रदक्षिणा करके जो सबसे पहले आ जाय, वही सबसे पहले पूजनीय हो‒देवताओंमें ऐसी शर्त होनेसे गणेशजी निराश हो गये, पर नारदजीके कहनेसे गणेशजीनेरामनाम पृथ्वीपर लिखकर उसकी परिक्रमा कर ली । इस कारण उनकी सबसे पहले परिक्रमा मानी गयी । नामकी ऐसी महिमा जाननेसे गणेशजी सर्वप्रथम पूजनीय हो गये । आगे गोस्वामीजी कहते हैं‒
जान आदिकबि नाम प्रतापू ।
भयउ सुद्ध करि उलटा जापू ॥
                             (मानस, बालकाण्ड, दोहा १९ । ५)

सबसे पहले श्रीवाल्मीकिजीने रामायण’ लिखी है, इसलिये वे आदिकवि’ माने जाते हैं । उलटा नाम ( मरा-मरा) जप करके वाल्मीकिजी एकदम शुद्ध हो गये । उनके विषयमें ऐसी बात सुनी है कि वे लुटेरे थे । रास्तेमें जो कोई मिलता, उसको लूट लेते और मार भी देते । एक बार संयोगवश देवर्षि नारद उधर आ गये । उनको भी लूटना चाहा तो देवर्षिने कहा‒‘तुम क्यों लूट-मार करते हो ? यह तो बड़ा पाप है ।’ वह बोला‒‘मैं अकेला थोड़े ही हूँ, घरवाले सभी मेरी कमाई खाते हैं । सभी पापके भागीदार बनेंगे ।’ देवर्षिने कहा‒‘भाई, पाप करनेवालेको ही पाप लगता है । सुखके, पुण्यके, धनके भागी बननेको तो सभी तैयार हो जाते हैं; परंतु बदलेमें कोई भी पापका भागी बननेके लिये तैयार नहीं होगा । तू अपने माँ-बाप, स्त्री-बच्चोंसे पूछ तो आ ।’ वह अपने घर गया । उसके पूछनेपर माँ बोली‒‘तेरेको पाल-पोसकर बड़ा किया, अब भी तू हमें पाप ही देगा क्या ?’ उसने कहा‒‘माँ ! मैं आप लोंगोंके लिये ही तो पाप करता हूँ ।’ सब घरवाले बोले‒‘हम तो पापके भागीदार नहीं बनेंगे ।’

तब वह जाकर देवर्षिके चरणोंमें गिर गया और बोला‒‘महाराज ! मेरे पापका कोई भी भागीदार बननेको तैयार नहीं हैं ।’ देवर्षिने कहा‒भाई ! तुम भजन करो, भगवान्‌का नाम लो’, परंतु भयंकर पापी होनेके कारण मुँहसे प्रयास करनेपर भीरामनाम उच्चारण नहीं कर सका । उसने कहा‒यह मरा, मरा, मरा । ऐसा मेरा अभ्यास है, इसलिये  ‘मरा’ तो मैं कह सकता हूँ ।’ देवर्षिने कहा कि ‘अच्छा, ऐसा ही तुम कहो ।’ तो  ‘मरा-मरा’ करने लगा । इस प्रकार उलटा नाम जपनेसे भी वे सिद्ध हो गये, महात्मा बन गये, आदिकवि बन गये । रामनाम महामन्त्र है, उसे ठीक सुलटा जपनेसे तो पुण्य होता ही है, पर उलटे जपसे भी पुण्य होता है ।

उलटा नामु जपत जगु जाना ।
बालमीकि भए ब्रह्म समाना ॥
                                                 (मानस, अयोध्याकाण्ड, दोहा १९४ । ८)

सहस नाम सम सुनि सिव बानी ।
जपि   जेई   पिय  संग  भवानी ॥
                                                 (मानस, बालकाण्ड, दोहा १९ । ६)

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘मानसमें नाम-वन्दना’ पुस्तकसे