।। श्रीहरिः ।।




आजकी शुभ तिथि
आश्विन शुक्ल चतुर्थी, वि.सं.२०७१, रविवार
मानसमें नाम-वन्दना



(गत ब्लॉगसे आगेका)

          रामनाम सहस्रनामके समान है, भगवान् शंकरके इस वचनको सुनकर पार्वतीजी सदा उनके साथ रामनाम जपती रहती हैं । पद्मपुराणमें एक कथा आती है । पार्वतीजी सदा ही विष्णुसहस्रनामका पाठ करके ही भोजन किया करतीं । एक दिन भगवान् शंकर बोले‒पार्वती ! आओ भोजन करें ।’ तब पार्वतीजी बोलीं‒महाराज ! मेरा अभी सहस्रनामका पाठ बाकी है ।’ 

         भगवान् शंकर बोले‒
राम रामेति रामेति रमे रामे मनोरमे ।
सहस्रनाम तत्तुल्यं राम नाम वरानने ॥

पद्मपुराणके उस विष्णुसहस्रनाममें यह श्लोक आया है । राम, राम, राम‒ऐसे तीन बार कहनेसे पूर्णता हो जाती है । ऐसा जो रामनाम है, हे वरानने ! हे रमे ! रामे मनोरमे, मैं सहस्रनामके तुल्य इस रामनाममें ही रमण कर रहा हूँ । तुम भी उसरामनामका उच्चारण करके भोजन कर लो । हर समय भगवान् शंकर राम, राम, राम जप करते रहते हैं । पार्वतीजीने भी फिर रामनाम ले लिया और भोजन कर लिया ।

नारद-राम-संवाद

अरण्यकाण्डमें ऐसा वर्णन आया है‒श्रीरामजी लक्ष्मणजीके सहित, सीताजीके वियोगमें घूम रहे थे । वे घूमते-घूमते पम्पा सरोवर पहुँच गये । तो नारदजीके मनमें बात आयी कि मेरे शापको स्वीकार करके भगवान् स्त्री-वियोगमें घूम रहे हैं । उन्होंने देखा कि अभी बड़ा सुन्दर मौका है, एकान्त है । इस समय जाकर पूछें, बात करें । नारदजीने भगवान्‌को ऐसा शाप दिया कि आपने मेरा विवाह नहीं होने दिया तो आप भी स्त्रीके लिये रोते फिरोगे । भगवान्‌ने शाप स्वीकार कर लिया, परंतु नारदजीका अहित नहीं होने दिया ।

यहाँ नारदजीने पूछा‒महाराज ! उस समय आपने मेरा विवाह क्यों नहीं होने दिया ?’ तो भगवान्‌ने कहा‒भैया ! एक मेरे ज्ञानी भक्त होते हैं और दूसरे छोटे  ‘दास’ भक्त होते हैं; परंतु उन दासोंकी, प्यारे भक्तोंकी मैं रखवाली करता हूँ ।’

करउँ  सदा  तिन्ह कै रखवारी ।
जिमि बालक राखइ महतारी ॥
मोरे  प्रौढ़  तनय  सम  ग्यानी ।
बालक सुत सम दास अमानी ॥
                      (मानस, अरण्यकाण्ड, दोहा ४३ । ५, ८)

            ज्ञानी भक्त बड़े बेटे हैं । अमानी भक्त छोटे बालकके समान हैं । जैसे, छोटे बालकका माँ विशेष ध्यान रखती है कि यह कहीं साँप, बिच्छू, काँटा न पकड़ ले, कहीं गिर न जाय । वह उसकी विशेष निगाह रखती है, ऐसे ही मैं अपने दासोंकी निगाह रखता हूँ । माँ प्यारसे बच्चेको खिलाती-पिलाती है, प्यार करती है, गोदमें लेती है । परंतु बच्चेको नुकसानवाली कोई बात नहीं करने देती । अपने मनकी बात न करने देनेसे बच्चा कभी-कभी क्या करता है कि गुस्सेमें आकर माँके स्तनको मुँहमें लेते समय काट लेता है, फिर भी माँ उसके मनकी बात नहीं होने देती । माँ इतनी हितैषिणी होती है कि उसका स्तन काटनेपर भी बालकपर स्नेह रखती है, गुस्सा नहीं करती । वह तो फिर भी दूध पिलाती है । वह उसकी परवाह नहीं करती और अहित नहीं होने देती ।

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘मानसमें नाम-वन्दना’ पुस्तकसे