।। श्रीहरिः ।।

आजकी शुभ तिथि
माघ शुक्ल दशमी, वि.सं.२०७१, गुरुवार
एकादशी-व्रत कल है
समयका मूल्य और सदुपयोग

      


(गत ब्लॉगसे आगेका)

लक्ष्य और मार्ग स्थिर कर लेनेपर भी साधकके लिये एक बहुत बड़ी आवश्यकता है‒भगवान्‌पर भरोसा रखनेकी । हृदयमें यह विश्वास सुदृढ़ होना चाहिये कि ‘मेरा वह कार्य अवश्य ही सिद्ध होगा, क्योंकि मुझपर भगवान्‌की बड़ी भारी कृपा है ।’ भगवान्‌के मार्गपर चलनेवालेके लिये बड़े भारी आश्वासनकी बात तो यह है कि इसमें घाटा (नुकसान) तो कभी होता ही नहीं‒

तुलसी सीताराम कहु दृढ़ राखहु बिस्वास ।
कबहूँ  बिगरे  ना  सुने   रामचन्द्रके  दास ॥

इसलिये हमें परमात्माकी प्राप्तिके मार्गकी ओर बड़े जोरोंसे उत्साहपूर्वक लग जाना चाहिये, क्योंकि समय है बहुत थोड़ा और काम है बहुत अधिक । संसारके भोगोंका तो कोई अन्त ही नहीं है‒

दुनिया के जो मजे हैं हरगिज भी कम न होंगे ।
चरचे  यही  रहेंगे     अफसोस  हम  न  होंगे ॥

तब फिर हमारा कौन होगा ? अतएव‒

तूर्णं यतेत न पतेदनुमृत्यु याव-
न्निःश्रेयसाय विषयः खलु सर्वतः स्यात् ।

‘कल्याणके लिये अतिशीघ्र यत्न करे और मृत्यु-पर्यन्त कहीं भी मार्गसे च्युत न हो, इसके लिये सदा सावधान रहे; क्योंकि विषय-पदार्थ तो सर्वत्र ही उपलब्ध हो जाते हैं ।’

इस भगवद्-वाक्यके अनुसार शीघ्रता करनी चाहिये; क्योंकि अन्य सब वस्तुएँ और बातें तो सभी जगह मिल जायँगी, पर भगवत्प्राप्तिका सुअवसर तो केवल इस मानव-शरीरमें ही है‒

श्रीभर्तृहरिजीने कहा है‒

यावत् स्वस्थमिदं  कलेवरगृहं   यावच्च  दूरे  जरा ।
यावच्चेन्द्रियशक्तिरप्रतिहता  यावत् क्षयो नायुषः ॥
आत्मश्रेयसि तावदेव विदुषा कार्यः प्रयत्नो महान् ।
प्रोद्दीप्ते भवने  तु  कूपखननं   प्रत्युद्यमः  कीदृशः ॥

‘जबतक यह शरीर स्वस्थ है और जबतक वृद्धावस्था दूर है तथा जबतक इन्द्रियोंकी शक्ति नष्ट नहीं हुई है एवं जबतक आयुका क्षय नहीं हुआ है, तभीतक समझदार मनुष्यको आत्मकल्याणके लिये महान् प्रयत्न कर लेना चाहिये; अन्यथा घरमें आग लग जानेपर कूआँ खोदनेके लिये परिश्रम करनेसे क्या लाभ ?

नारायण !     नारायण !!     नारायण !!!

‒‘जीवनका कर्तव्य’ पुस्तकसे