।। श्रीहरिः ।।




आजकी शुभ तिथि
वैशाख शुक्ल नवमी, वि.सं.२०७२, सोमवार
श्रीसीतानवमी
बार-बार नहिं पाइये मनुष-जनमकी मौज



प्रपन्नपारिजाताय   तोत्त्रवेत्रैकपाणये ।
ज्ञानमुद्राय कृष्णाय गीतामृतदुहे नमः ॥

सच्चिदानन्दघन पूर्णब्रह्म परमात्माको तथा संत-महापुरुषोंको सादर अभिवादन करके कुछ बातें कहनेकी चेष्टा करता हूँ । इन बातोंमें जो आपको अच्छी लगें, सुन्दर दीखें, उन बातोंको तो संत-महात्माओंकी, शास्त्रोंकी और भगवान्‌की माननी चाहिये तथा जो त्रुटियाँ हों, उन्हें मेरी । त्रुटियोंकी ओर ध्यान न देकर अच्छी बातोंकी ओर ध्यान दें, कारण, जो महापुरुषोंके और भगवान्‌के वचन हैं, वे मेरे और आपके लिये परम हित करनेवाले हैं, उन वचनोंके अनुसार आचरण करनेसे निश्चित कल्याण होता है । आप आचरण करेंगे तो आपका हित और कल्याण है तथा मैं करूँगा तो मेरा कल्याण है ।

सबसे पहली एक विशेष ध्यान देनेकी बात यह है कि यह मानव-जीवनका समय बहुत ही दुर्लभ है और बड़ा भारी कीमती है, श्रीमद्भागवतमें बताया है‒
दुर्लभो मानुषो देहो देहिनां क्षणभंगुरः ।
तत्रापि दुर्लभं मन्ये वैकुण्ठप्रियदर्शनम् ॥

‘दुर्लभो मानुषो देहः’यह मनुष्यसम्बन्धी देह‒यह मानव-शरीर अत्यन्त दुर्लभ है । इसकी प्राप्तिके लिये बड़े-बड़े देवता भी ललचाते रहते हैं; क्योंकि इससे बड़ी-से-बड़ी उन्नति हो सकती है । परमात्माकी प्राप्ति हो सकती है जीवका कल्याण हो सकता है और सदाके लिये उसे परम शान्तिकी प्राप्ति हो सकती है । ऐसे दुर्लभ शरीरको प्राप्त करके जो इसे व्यर्थ ही खो देता है, उसे फिर बड़ा पश्चात्ताप करना पड़ता है; क्योंकि यह सर्वथा अलभ्य, अमूल्य है । अतः इस मनुष्य-जीवनके एक-एक क्षणको ऊँचे-से-ऊँचे काममें बितानेकी चेष्टा करनी चाहिये । समयके समान कोई अमूल्य वस्तु नहीं है । संसारमें लोग पैसोंको बड़ा कीमती समझते हैं, आवश्यक समझते हैं, किंतु विचार कीजिये, जीवनका समय देनेसे तो ‘पैसे’ मिल जाते हैं, पर पैसे देनेसे यह ‘समय’ नहीं मिलता है । हमारे जीवनके लिये हमारे पास हजारों, लाखों, करोड़ों रुपये रहनेपर भी यदि हमारी आयु नहीं है तो हमें मरना पड़ता है, किंतु यदि हमारी आयु बाकी हो और हमारे पास एक भी कौड़ी न हो, तो भी हम जी सकते हैं ।

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)

‒‘जीवनका कर्तव्य’ पुस्तकसे